________________
१२०
सगळा तपां में पैलो है आहार र प्रति सगळा प्राणियां री आसक्ति हुनै । भूख पर विजय पाणो सबसूदोरो है । आहार त्याग रो मतलब हुनै प्राणां रो मोह छोड़णो, मौत रै डर नै जीतणो। आहार त्याग सू मानसिक विकार दूर हुनै । ओ तप उपवास कहीजै। उपवास सबद दो सबदां सूबण्यो है। उप+वास । उप रो अरथ हुवै समीप पर वास रो अरथ है-रैवरणो । अर्थात् आत्मा रै नैड़ेरैवणो । पातमा रो सुभाव आनन्दमय अर ज्ञानमय है। इण आनन्द री अनुभूति वोईज कर सके जो राग-द्वेष आदि विकारा सूअळगो रैर समभाव में रमण करे। २. ऊरणोदरी :
तप रो दूजो भेद ऊरणोदरी है। इण रो मतलब है भूख सू कम खावणो । इण तप सू खाद्य-संयम री भावना नै बळ मिले पर अनावश्यक धन संचय करण री प्रवृत्ति पर अंकुस लागे । ओ तप धार्मिक दृष्टि रै साग-सागै आर्थिक र सामाजिक दृष्टि सू भी घणो उपयोगी है। ३. भिक्षाचरी:
तीजै तप भिक्षाचरी रो सम्बन्ध निरदोस आहार ग्रहण करण री विधि सू है । इण तप रो सम्बन्ध विशेष कर मुनियां सू है । मुनि निरदोस आहार ग्रहण करबा खातिर भिक्षावृत्ति करै । वीं कई घरां सूथोड़ो-थोड़ो भोजन लै'र प्रापणो गुजर-बसर करै। इण तप में साधक रै खातर विधान है के वो अभिग्रह आदि नियमां सूलूखो-सूखो जिसो भी निरदोस आहार मिल जावै, समभाव सू ग्रहण करै । श्रावक नोतिपूर्वक जोवननिर्वाह रा साधन जुटावै। ४. रसपरित्याग :
चौथै रस परित्याग तप में सूवाद वत्ति पर विजय पावरण रो