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१२१ प्रादर्श है । जीभ रे मुवाद पर विजय पावणी घणी मुसकल है। इण कारण इण साधना नै भो तप मानियो है । इण तप रो साधक सवाद पर विजय पा'र अभक्ष्य चीजा रे ग्रहण सू बचे ।
५. कायक्लेस:
पांचमो कायकलेस तप है। कलेस रो अर्थ है-कष्ट । प्रातम कल्याण खातर शरीर नै कष्ट देवरणो कायाकलेस तप है। इण तप में प्रातमा रा करम मळ दूर करण खातर सरीर नै भूख, तिस, सर्दी, गरमी, ध्यान, आसन आदि धार्मिक क्रियावां सू तपायो जावै । इण क्रिया सूपातमा में स्थिरता, शुद्धता अर सहनशीलता जिसा गुणां रो विकास हुवे। ६. प्रतिसंलीनता:
__छटो प्रतिसलोनता तप है। इन्द्रियां नै असद्वृत्तियां सू हटा'र सद्वृत्तियां में प्रवृत्त कराणो प्रतिसंलीनता तप है। इण रा मुख्य रूप सूचार भेद है।
इन्द्रिय प्रतिसंलीनता तप में पांचू इन्द्रियां (प्रांख, नाक, कान, जीभ, सरीर) नै विषय विकारां सूदूर राखण री कोसिस हुवै । कषाय प्रतिसंलीनता में कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) री प्रवृत्ति रो निग्रह कियो जावै। योग प्रति संलीनता में मन, वचन अर काया नै असुभ भावां सूसुभ भावां कांनी मोडयो जावै । मन नै एकाग्र कियो जावै, मौन राख्यो जानै । विवक्त सय्यासन सेवना तप में इसी ठौड़ रैवरण री मना हु जिसू काम, क्रोध आदि मनोविकारां नै उत्तेजना मिले। प्राभ्यन्तर तप:
आभ्यन्तर तप री साधना सू सरीर नै कष्ट तो कम मिले पर मन री एकाग्रता, सरळता, भावां री शुद्धता रो प्रभाव बेसी रैन।