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________________ रा पूजनीक है। दिव्य वारणी सुणर पुष्य रा अन्तर्चक्षु खुलग्या । बीरो माथो सरधा अर विनय भाव सूप्रभु रै चरगां मे झुकना। गोसालक रो प्रसंग: विहार करता-करतां चौमासौ करण खातर महावीर नाळन्दा नगर पधारिया । वी एक तन्तुवाय साळ (जुलाहै री दुकान या कारखानो) में ठहरिया। अठै मंखलीपुत्र गोसाळक नाम रो एक तापमा पैला सू ईज ठहरियोड़ो हो। गोसाळक घणो मुह फट, जीभ रो चटोरो पर झगड़ालू सभाव रो हो । बो ईर्ष्यावश भगवान री कयोड़ी बातां नै झूठी पटकणो चावतो हो । एकदा गोसाळक भगवान नै पूछयो-हे तपस्वी ! आज म्हनै भिक्षा में काई-कांई चीजां मिलेला। महावीर सहज भाव सू कयो-कौदू रो बासी भात, खाटी छाछ अर खोटो रीपियो। महावीर री वाणी नै झूठी साबत करण खातर गोसाळक बड़ा-बड़ा सेठां रै घरै भिक्षा सारू गयो, पण वीं नै खाली हाथ प्रावणो पड्यो । पाखर में एक लुहार रै घरै वीनै कौटू रो बासी भात, खाटी छाछ पर खोटो रीपियो मिल्यो । प्रभु रा वचन सांचा जाण गोसाळक नियतिवाद रो समर्थक बरणग्यो अर महावीर रै तप त्याग सूघणो प्रभावित हुयो। महावीर चौमासी पूरो कर नाळन्दा सू कोल्लाग सन्निवेस पधारिया । गोसाळक उण समै भिक्षा खातर बाहर गयौड़ो हो । भिक्षा लेयनै पाछौ पायो तो तंतुवायस ळ में महावीर नै नी देख वो घणो दुखी हुयो अर प्रापरणा कपड़ा, कुडिका, जिसी चीजां ब्राह्मणानै देय'र माथो मुडवाय खुद भगवान री खोज मे निकळ पड्यो ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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