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जावतां-जावतां कोल्लाग सनिवेस में ध्यानस्य महावीर रा दरसरण करिया । वठे बहुल ब्राह्मण रे दान री महिमा सुणी तो वी को दिल महावीर रै प्रति सरघा सू भरग्यो । वो सोचरण लाग्यो प्रो महावीर र तप पर साधना रो फळ है। वी हाथ जोड़ महावीर सू वदना नमस्कार करीअर कयो~-प्राज सू आप म्हारा धरम गुरु हो अर म्हें आप रो चेलो। तीजो बरस :
कोल्लाग सन्निवेस, सुवर्णखळ, वामगागांव होता हुया महावीर चपा नगरी पधारिया। अठं चीमासे माय दो-दो मास री कठोर तपस्या करता हुया महावीर प्रापरणी ध्यान साधना में लीन रैया। चौथो बरस :
गांव-गांव विहार करता या महावीर चौराक सन्निवेस पवारिया । उणां दिना उठ चोरां रो घणो डर हो। पैरेदार रातदिन पैरो देवता हा । महाबोर नै देव पैरेदारों वांको परिचय पूछयो पण महावीर मौन हुवरण सूकाई नी चोल्या। इस कारण पैरदारां नै संका हुई । वी वांनै चोर पर भेदू समझ घरणी तकलीफां दीवी। श्रा वात उत्पल निमितज्ञ री वैनां सोमा अर जयन्ती नै मालम पड़ी तो वी पैरेदारां कनै गई पर उणान महावीर री सांचो अोळखाण कराई । महावीर नै ऊँचो महात्मा जागर पैरेदारांपापणी गलती पर घणो पछतावो करियो पर महावीर सू माफी मांगी।
चौराक सन्निवेस सू महावीर पृष्ठचंपा पधारिया पर पो चौमासो अठई पूरो करियो । ई काळ मे महावीर चार महिना री लम्बी तपस्या कीवी। पांचमो बरस :
पृष्ठचंपा सूविहार कर श्रमण महावीर कयंगळा होता हुया