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ज्ञान भर करम सू' इज मोक्ष प्राप्त हुवे । कडारण कम्मारण न मोक्ख श्रत्थि ।
उत्त० ४।३।
बांध्योडा करमां रो फळ भाग्यां बिना मुगति नी मिलें । बन्धप्प मोक्खो तुज्भज्भ त्येव । आचा० ५|२| १५० वन्ध सू' मुक्त हवणो थांरे इज हाथ है।
परीस हे जितस्स, सुलहा सुगइ तारिसगस्स । दश० ४ |२७| जो साधक परिसहां पर विजय पात्रै, उगरे वास्ते मोक्ष सुलभ है।
१२. विनय
विरए ठविज्ज प्रणां इच्छतो हियमप्पणो ।
उत्त० १६
प्रातमहिन करण श्राळी साधक आपने खुद नै विनय घरम में
स्थिर राखे ।
सिया ह से पावय नो डहिज्जा, सीविसो वा कुविओो न भक्खे |
सिया विसं हालहलं न मारे,
न यावि मुक्खो गुरु हीलरखाए ||
दश० ६१७
संभव है कदाच आग नी जळावे, संभव है किरोधी नाग नीं उसे अर ओ भी सम्भव है के हलाहल विष मिनख ने नीं मारै। परण गुरु री अवहेलना करणिय साधक खातर मोक्ष सम्भव कोनी | रायखिए विषय पर जे ।
दश० ८१४०
वडेरा रे सागै विनयपूर्ण वैवार करणो चांइजं ।
मूला खवप्पभवो दुमस्स,
खोज पच्छा समुवैन्ति साहा ।