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१५८ हे प्रातमन् ! तूं खुदइज आपणो निग्रह कर। इसो करबा सूतूदुखां सूमुक्त हुय जावैलो।। ___ अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे । नोपरकडे।
भग० ७१ प्रातमा रो दुख आपणो खुद रो कर्योड़ो है । प्रो दूजां रो दियोड़ो कोनी। दुज्जयं चेव अप्पाणं, सव्वमप्पो जिए जियं। उत्त० ६३६
एक दुर्जय प्रातमा नै जीत लेवा पर सब कुछ जीत लियो जावै।
११. मोक्ष नाणं च दंसरणं चेव, चरित्त च तवो तहा। एस मग्गुत्ति पन्नतो, जिणेहि वर दंसिहि ॥
उत्त० २८ार ज्ञान, दर्शन, चारित्र पर तप इज मोक्ष रो मारग है। आ बात सर्वदर्शी ज्ञानीजण बतावी।
नादंसरिणस्स नाणं नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा। अगुरिगस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं॥ उत्त० २८।३०
सरधा रै बिना ज्ञान नी हुने, ज्ञान रै बिना आचरण नी हुवै अर पाचरण रै बिना मोक्ष नी मिलै । सयमेव कड़ेहि गाहइ, नो तस्स मुच्चेज्जऽपुठ्ठयं
सूत्र० १।२।१।४। प्रातमा प्रापणा खुद रा बांध्योड़ा करमा सू बध । करियोड़ा करमा नै भोगियां बिना मुगति नी मिलै ।
आहंसु विज्जाचरणं पमोक्ख । सूत्र० १।१२।११