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विदेह भाव: __महावीर जिण दिन सूप्रवजित हुया, उरण दिन सू सरीर री मोह ममता छोड़ दी ही। आपण साधनाकाळ में वी एकान्त गुफा, निर्जन झूपड़ी पर धरमसाळा में ध्यानस्थ रैवता। कड़कड़ाती सरदी अर बळतै तावड़े में वा नै घणी तकलीफां झेलणी पड़ती। सरप, बिच्छू जिसा जहरीला कीड़ा अर कागळा, गिरजड़ा जिसा नुकीली चोच आळा जिनावर वां रै सरीर नै नोंचता पण महावीर कदै वासूदुखी हो'र आपणा ध्यान सूविचलित नी हुया।
साधना काळ में महावीर नै एकला विचरण करतां देख लोग वां नै चोर, ठग समझ'र मारता-पीटता, घरणी नकलीफा दैवता पण महावीर देह भाव सूमुक्त अचल, अडोल र्या।
___ साधना काळ में महावीर नींद लैणी छोड़ दिवी। आहार खातर वी घर-घर गोचरी जावता । अमीर-गरीब रो उरणारे मन में काई भेद-भाव नी हो। मौका पर रूखो-सूखो जिसो सुद्ध निरदोस आहार मिल जावतो वी बी नै निस्पह भाव सू ग्रहण कर लेवता। मांदहाज में वी काई पोखद नी लैवता। इण भांत वां रो देह रे प्रति मोह भाव नी हो। साधना काल रो पैलो बरस :
कोल्लागसन्निवेस सू विहार कर महावीर मोराक सन्निवेस पधारिया । बठे दुईज्जतक तापसियां रो एक आश्रम हो। उरण प्राश्रम रा कुळपति राजा सिद्धार्थ रा भायळा हा । महावीर नै आश्रम कांनी प्रावता देख पाश्रम रा कुळपति उरणा सू इण आश्रम में चौमासौ करण री विनती करी। महावार विनता मजूर कर बठे एक झूपड़ी में ध्यान साधना में लीन हुया।
महावीर रै हिरदै मे जीव मातर रैप्रति दया पर मैत्री री