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भावना ही। किणी प्राणी नै किणी भांत रो कष्ट देणो वी नी चावता। उरण बरस पाणी कम बरस्यो हो, चारा री कमी ही। जिनावर भूखा मरता अठी-उठी मूडौ मारता रैवता । महावीर जिरण झूपड़ी मे साधना रत हा वा घास फूम री बणियोड़ी ही। भूखी मरती गायां आश्रम री झू पड़ियां रो चारो खावा लागती। झुपड़ियां में रंगमाळा दूजा तापसी गायां ने भगा-भगा'र झुपड़ियां री रक्षा करता । महावीर जिण झूपड़ी में साधनारत हा, वीरी घणकरी घास गायां खायगी परण महावीर निश्चिन्त होय आतमचिंतन में लोन हा।
महावीर री झूपडी र प्रति इण उदासीनता नै देख तापसी कुळपति सू वांकी सिकायत करी । कुळपति पण महावीर नै ओळमो दैरण खातर पाया पर कवण लागा- कुंवर ! इतरी उदासीनता किरण कामरी ? पछी पण आपण घोंसला री रक्षा करै फेर आप तो राजकुवर हो। कांई झुपड़ी री रक्षा प्राप सूनी हुय सकै? महावीर कैवण लाग्या-किरणरी झूपड़ी? किरणर, राजमहल ? पांच प्रतिज्ञा :
महावीर ने अनुभव हुयो के इस आश्रम मे माधना सू बत्तो महत्त्व चीजां रो है । अठ म्हारै रैवरण सूतापसियां रै मन में ईर्ष्या री भावना पैदा हुए। अब म्हनै अठ नो रैवरणो चावै । यूं सोच'र महावीर वठा सूविहार कर दियो। इण समै वा पांच प्रतिज्ञावां करी
(१) इसी जगां नी रैबूला जठै म्हारै रैवण सू लोगां नै किणी भात रो कष्ट, ईर्ष्यादि हुवे ।
(२) साधना खातर पाच्छो स्थान खोजबा री कोसिस नी करूंला पर सदा ध्यान में लोन रेऊला।