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चरण वंदन करने वी बोल्या-भगवन् ! गृहस्थी नै काई अवधिज्ञान हुय सके।
गौतम कह्यो-हां ! हुय सके ।
प्रानन्द बोल्या-म्हनै अवधिज्ञान हुयग्यो । म्है पूरब, पश्चिम अर दखण दिसा में लवण समुद्र रै पांच-पांच सौ जोजन ताई, उत्तराध में हिमवंत पर्वत ताई, ऊर्ध्वलोक में सौधर्म देवलोक ताई, पर अधोलोक में लोलच्चुन नाम रै नरकावास ताई रा सगळा पदारथ देखू हूं।
इण पर गौतम बोल्या-आनन्द ! गृहस्थी नै अवधिज्ञान हुवै तो जरूर. पण इतरी दूरी रो नी हुवै । थांने इण मिथ्या कथन पर आलोचना करणी चाइजै।
गणधर गौतम रा भै सबद सुण विनयपूर्वक दृढ़ सवदां में आनन्द बोल्या-भगवन् ! म्हूँ जो भी कांई कैयर्यो हूं वो यथार्थ पर सांच है । आप इण नै झूठ मत समझो । झूठ बोलण रो प्रायश्चित म्हनै नी, आपनै ईज करणो पड़ेला।
आनन्द री आ बात सुण गौतम दुगध्या में पड़ग्या। वां महावीर रै कनै आय सगळी बांत बताय दी। गौतम री बात सुरण महावीर कह्यो-गौतम ! आनन्द रो कैवणो सांचो है। थां वीके सत्य नै असत्य बतायो है। आ थांरी गलती है, ई वास्ते थांबेगासा' आनन्द रै कनै जानो अर वींसू माफी मांगो।
परम सत्य रा खोजणहार गौतम पग पाछा फेरिया पर आनन्द रै कनै जा'र वीसू माफी मांगी। एक श्रावक रै साम्है श्रमणसंघ रा सबसू बड़ा मुनि नै ! माफी मांगता देख आनन्द गद्गद् हुयग्या अर मन में सोचण लागा-निनथ धरम में सांच रो कित्तो महत्त्व है।