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सुदर्शन, माता रो राणी महादेवी पर निर्वाण स्थळ सम्मेदसिखर हो । आप पण पापण समै रा चक्रवर्ती सम्राट हा । इणीज काळ में नंटिपेण बळदेव, पुण्डरीक वासदेव अर बळि प्रतिवासुदेव हुया । प्रापरै निर्वाण पछै आपरै घरमतीरथ में सुभूम नाम ग चक्रवर्ती हुया । परसुराम अर सहस्रवाहु र संघर्ष रो पोइज काळ है।
१६. मल्लिनाथ :
उन्नीसमा तीर्थ कर श्री मल्लिनाथ हुया। इणांरो जनम मिथिला नगरी में हुयो । प्रापरं पिता रो नाम महाराज कुभ अर माता रो प्रभावती हो । प्रापरो लांश्रण कळस पर निवारण स्थळ सम्मेदसिखर है। आपरै तीरथ काळ में पदम नाम रा चक्रवर्ती सम्राट, नन्दिमित्र वळदेव, दत्त वासुदेव अर प्रहलाद प्रतिवासुदेव हुया।
श्वेताम्बर परम्परा मान है के तीर्थ कर मल्लिनाथ स्त्री रूप में जनमिया हा । वाळिका मल्ली धरणी रूपाळी पर गुणवती ही। आपर रूप पर गुण री चरचा चारूंकानी फेल्योड़ी ही। जद मल्ली कुंवरी बड़ी हुई तो वार रूप पर गुणां सूमोहित हो र छ देसां रा राजावां मल्ली कुवरी रे पितारै कनै दूता लारै संदेसो मोकल्यो के म्हां मल्ली रै सागै ब्याव करणो चावां ।
मल्ली रा पिता कुंभ लाचार हा। छ राजा रे सागै एक राजकंवरी रो व्याव कोंकर हो सके, प्रा सोच राजा कुंभ सगळा राजावां रा दूतां नै नां दे दीवी। नां रा समीचार सुरण छऊ राजा बेगजी हुयग्या। वां राजा कुभरी नगरी मिथिला पर धावो बोल दियो । कुंभ छऊ राजावां सू मुकावलो करण में समरथ नी हा । ई कारण वी दुगध्या में पड़ग्या अर उदास रैबा लाग्या । पिता ने उदास देख राजकवरी बोली-पाप किरणी भांत री चिन्ता