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१७.
• जिनावरां री हत्या हुवै, एडौ व्याव म्हूंनी करूंला। यूं केयर
नेमिकुमार प्रापरो रथ तोरण सूपाको मुड़वा लियो। .
अब तो नेमिकुवर मुनि घरम अंगीकर करण रो निश्चम कर लियो । आपणां कीमती गैरणा-गामा उतार सारथि नै दे दिया पर खुद संयम मारग पर चालवा खातर पग वढा दिया। सब जणा वांसू व्याव करण खातर घरणी विनती करी, पण धरमवीर नेमिनाथ किरणीरी बात कोनी मुणो। दीक्षा अंगीकार कर प्रभु गिरनार परवत री ऊंची चोटी पर जाय कठोर तपस्या करी।
महाराज उग्रसेन री पुत्री राजुळ नै जद आ मालूम पड़ी के जिनावरां रो करुण क्रन्दन सुरण अहिंसा रा पुजारी प्रभु नेमिनाथ तोरण पर पाया थका पाछा मुड़ग्या, तो वा मन में संकल्प कर्यो के म्हूं अवै किणी दूजा पुरुष र सागै ब्याव नी करू ला। राजकुंवर नेमि इज म्हारा पति है। वी राजसी सुखों ने छोड़ मुनि धरम अंगीकार करर्या है तो म्हू भी वणारे मारग रो इज अनुसरण करू ला । पछै राजूळ पण दीक्षा लेय नै गिरनार परवत पर घोर तपस्या करी।
केवळज्ञान पाम्या पछ प्रभु जगां-जगा विचरण कर अहिंसा घरम रो उपदेस दियो अर गिरनार परवत सूनिर्वाण पायो।
यादवकुमार अरिष्टनेमि विशिष्ट व्यक्तित्व रा धरणी हा। महाभारत, स्कन्दपुराण, श्रीमद्भागवत जिसा पुराणा ग्रंथा में इणांरो उल्लेख मिले । महाभारत रै 'शान्तिपर्व' में प्रभु रा दियोड़ा उपदेसां रो वर्णन आवै । अरिष्टनेमि प्रभु राजा सगर नै उपदेश देतां कयौ के संसार में मगति रो सुख इज सांचो सुख है। जो मिनख धन दौलत पर विषय सूखां में रम्यौ रैवै बो अज्ञानी है, जो मिनख प्रासस्ति सूअळगो है बोइज इण संसार में सुखी है। हरेक