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सालिभद्र राजा श्रेणिक से मिलरण खातर नीचे भायो । राजपरिवार समेत राजा श्रेणिक सालिभद्र रे रूप र वैभव ने देख राजी हुआ । पण सालिभद्र पर इण मुलाकात रो कांई असर न पड़ियो । वी ने इसो जोवन जोवरणा चावता हा जठे सांची स्वतंत्रता मिलै घर किरगी री अधीनता नीं हुँने ।
श्रातम कल्याण रे नारग पर बढ़रण री वांरै मन में भावना जागी । वां ने विषय सुखां सूं विरक्ति हुवरण लागी । वो नित हमेस एक-एक राणी अर सुख-सेजां रो त्याग कररण लागा ।
सालिभद्र ने त्याग मारग पर चालतां देख उरणारी छोटी वहन सुभद्रा ने धरणो दुख हुयो । सुभद्रा उणीज गांव रं धन्ना सेठ री पत्नी हो । एक दिन सुभद्रा ने उदास देख धन्ना सेठ उण ने उदासी रो कारण पूछियो । सुभद्रा बोली- म्हारो भाई सालिभद्र नित हमे एक-एक पत्नी अर सुख-सामग्री रो त्याग कर भोग सू योग कांनी बढ़ है | श्रा बात कैवतां-कैवतां सुभद्रा रे प्रख्या मांय त्रसू त्रायया ।
सुभद्रा री आख्या मांय आसू देख धन्ना सेठ व्यंग्य सू बोलियाथारो भाई कायर है । एक-एक स्त्री रो बारी-बारी सूं त्याग करण आळो कर्द साधुपणो नी लैय तकै । इसा कमजोर मनोवळ रो पुरुष वैराग रे मारण पर नीं चाल सकै ।
धन्ना सेठ रा सब्द सुरण सुभद्रा परण व्यंग्य सूं बोली- नाथ ! कंत्रग्गो सरळ है, करणो मुस्किल है । आप सू तो एक भी पत्नी नीं छूटं ?
सुभद्रा रा मजाक में कयोड़ा में सवद धन्ना रै हिरदय में गेहरो असर करग्या । वीं बोलिया - लो, आज सूं म्हू सगळी पत्नियां श्रर धन सम्पत्ति रो त्याग करू घर प्रातम कल्याण खातर संजम मारग पर वढण रो निश्चय करूं ।