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मारग पर वढण से पूरो अधिकार है । चन्द्ररणा महावीर री पैली शिष्या अर साध्वी संघ री प्रमुख वरणी ।
कानां में कीला :
साधना काळ रैतैरमां वरस र सरुप्रात मे महावीर छम्मारिण गांव वा'रै ध्यान मे ऊभा हा । सांझ एक गवाळियो वळदां नै महावीर कनै छोड' र किरणी काम सूं प्रापणे गांव गयो । पाछो प्राय जद वी प्रापरणां वळदा नै जोया तो वी नी मिल्या । गवाळियै महावीर सू पूछियो - म्हारा वळद कठै गया ? महावीर तो आतमचिन्तन में लीन हा । वी की नी बोलिया । महावीर ने मौन देख गवालियै नै रीस ग्रायगी। वो बोल्यो - ढोगी बावा ! तुम्हारी बात सुरग्य है के नी ? कठं तू बहरो तो नी है ? परण महावीर की उत्तर नी दियो । गवाळियै रो किरोध श्रोरू बढ़ग्यो । वीं कनै पडियोड़ी तीखी सळाका उठा'र महावीर रै कानां में आरपार ठोक दीवी । डग सळाका - छेदणा मूं महावीर ने घणी वेदना हुई। पर ई परीसह नै वी सांत भाव सू सहन करताय ।
छम्मारण गांव सू विहार कर'र महावीर मध्यम पावा पधारिया । अठा सू भिक्षा खातर घूमता-घामता सिद्धारथ नामक वणिक रै घरै श्राया । इरण वगत सिद्धारथ से मित्र खरक वैद्य परण ग्रहो । प्रभु नै प्राया जारण खरक वैद्य वां नै वन्दना करी । वीं देख्यो के महावीर से चेहरो अपार तेज सूपं चमक है पर ग्रांख्या में गहरी वेदना झळकै । खरक भांपग्यो के भगवान र सरीर मे सळाका चुभरी है । ग्राहार लेवती वगत बी भगवान रे सरीर नै देखियो । बी नै झटठा पड़गी के प्रभु रे कानां में किणी कीला ठोकिया है ।
दोन्यू मित्र प्रभु सू रुकरण सारु अरज करी पण महावीर रुक्या कोनी | वी पाछा गांव रै बा'रै जाय ध्यान में लीन हुयग्या ।