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________________ १६२ खंति सेविज्ज पंडिए । उत्त० १९ पंडित पुरुष नै क्षमा धरम री आराधना करणी चान। पियमप्पियं सव्वतितिक्खएज्जा। उत्त० २१११५ साधक प्रिय अप्रिय सब शान्ति सूसहन करै । खमावरणयाए णं पल्हायणभानं जरणयर। उत्त० २६।१७ सूअातमा में अपूरव हरख रो भाव प्रगट हुवै । १५. मृत्यु-कला न संत मरणंते, सीलवंता बहुस्सया। उत्त० ५।२६ शीलवान अर बहुश्रुत भिक्षु मौत रै क्षणां मांय भी दुखी नी हुवै। मरणं हेच्च वयंति पंडिया। सूत्र० १।२।३।१ पंडित पुरुष इज मौत री दुर्दम सीमा लांघ'र अविनाशी पद नै प्रात करै। कालं अणवक्रख माणे विहरई। उपा० ११७३ आत्मार्थी साधक कस्टां सूजूझतो हुयो मौत सूअनपेश वण'र रवै। माराभिसंकी मरणा पमुच्चइ। आचा० ११३६१ जो मिनख मौत सू सदा सावचेत रैवै वोईज उणसू मुगति पाय सके। १६. कपाय-विजय अहे वयन्ति कोहेणं, मारणेणं अहमागई। माया गइ पडिग्यायो, लोहोरो दुहानो भयं ।। उत्त० ६।४५ क्रोध सूजीव नीचे पड़े, मान सूजीव नीत्र गति पावै, माया सूजीव सद्गात रो नाश कर अर लोभ सू जीव नै इण लोक अर परलोक में भय उत्पन्न हवै।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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