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रतन तीन भात रा हुवै-(१) दर्शन रतन (२) ज्ञान रतन (३) चारित्र रतन । रतन घणा प्रभावशाली है। जै कोई इणां वे धारण करै वीरो रो लोक अर परलोक दोन्यू सुधर जावै। द्रव्य रतनां रो प्रभाव सीमित है। वीसू बाहरो चमक-दमक रैवै । परण भाव रतनां सूअन्तरमानस जगमगा उठे अर सांचे सुख-सान्ति री अनुभूति हुनै ।
भगगन री न्तनां विषयक या चरत्रा पुण किरातराज घणो प्रभावित हुयो । - भगवान सूप्रार्थना करी-प्रभु! म्हनै भाव रतन प्रक्षन करो । प्रभु महाबीर उणनै आतम कल्याण रो मारग बतायो अर वो उणां रै श्रमण संघ में दीक्षित हुयो। पच्चीसमो बरस कालोदारी रा प्रश्न :
मिथिला नगरी में चौमासो पूरो कर र भगवान मगध कांनी सूविहार करता राजगृह पधारिया पर गए.सील चैत्य में विराजिया । अठै काळोदायी श्रमरण प्रभु सूकई संकावाँ रो समाधान करियो । वां प्रभु सू पूछिगे-भगवन् ! जीव खुद असुभ फल देण माळा करम किरण भांत करै?
भगवान बोलिया-काळोदायी ! ज्यू दुसित पकवान पर मादक पदारथ सेवन करती वगत घणा रु अर खावरिणयां लोग सुवाद में मस्त होर वां सूवरण आळा नुकसान बीसर जावै, पण उणारो नतीजो घणो खोटो हुदै । सेहत पर बुरो प्रभाव पड़े । इणीज भांत जद जीव हिंसा, भूर, चोरी जिसा पाप करम करै अर रागद्वेष र वशीभून होर क्रोध, मान, माया, लोभ जिसी प्रवृत्तियां में जून्योड़ो रेवे, उरण ताळ असगळा काम घणा रुचिकर अर मन मोबणा लागै परम इण बंच्योड़ा करम घरमा अनिष्टकारी हुवे । अर करता नै भोगणा ईज पड़े।