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चमरेन्द्र रै दे मारियो । वज्र आग उगलतो थको चमरेन्द्र कांनी आवा लाग्यो । वीनै देख असुरराज डरपग्यो । वो ध्यानस्थ भगवान रैकन जाय उरणार पगां में पड़ियो अर कवा लागो-भगवान म्हने शरण दो।
देवराज इन्द्र अवधि ज्ञान सूदेखियो के चमरेन्द्र प्रभु महावीर रे चरणों में पड़ियो है । कठे म्हारै छोड्योड़े इण वज्र सू भगवान ने तकलीफ नी हवे, या सोच वो भगवान रै कनै पायो पर बम चार पांगळ दूरी मवज्र नै पाछो पकड लियो। भगवान रे चरणासरणा में होवरण सू देवराज इन्द्र चमरेन्द्र नै माफ करियो।
कठोर अभिग्रह :
सुन्सुमारपुर, भोगपुर नन्दिग्राम, मेढ़िया ग्राम होता हुया प्रभु महावीर कोसाम्बी पवारिया । अठ पोस वदी एकम र दिन महावीर एक कठोर अभिग्रह धारियो-छाजळे रे कूणे में उड़द रा वाकुळा लियां देहरी रै वीचे कोई राजकुवरी दासी वणियोड़ी ऊभी हुवे । वीके हाथों में हथकडियां पर पगां मांय वेड़ियां हुवै । माथो मूडियोड़ो हुदै । पाख्या मांय आँसूअर होठां पर मुळक हुदै । वीक तेला (तीन दिन री भूखी) री तपस्या हुवै । भिक्षा रो समय बीतग्यो हुदै । अड़ी वगत इसी कवारी राजकन्या म्हनै भिक्षा देवला तद म्ह' आहार करूंला पर नी तो छह महिना ताई भूखो रेऊ ला।
श्रा कठोर प्रतिज्ञा ले'र महावीर नित हमेस भिक्षा खातर जावता । पर अभिग्रह पूरो नी हुवरण रै कारण विना काँई लियां पाछा पाय जावता । लोग अचभा मे हा के महावीर आहार कांनी लेवै ? इण नगर में इसी काँई कमी है, कांइ बुराई है, जिसू भगवान विना अन्न-पाणी लियां पाछा-पाछा फिर जावै ? इण भांत बिना पाहार करियां पांच महिना पर पच्चीस दिन बीतग्या। अचाणचक