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प्रभु महावीर प्रातमा री अोळखाण करावतां कयौ- आतमा अमूर्त है। वा प्रांख्यां सूदेखी नी जा सके । वा शुद्ध चैतन्य स्वरूप है। सरीर में चेतना री अनुभूति प्रातमा रै कारण सू इज है। करमा रै मुताबिक पातमा मिनख पर जिनावरां रो सरीर धारण करै अर उणां रै कारण इज कदै नारकी रो दुख भोगै तो कदै देवलोक रो सुख । प्रातमा इज आपण सुख-दुख री कर्ता है अर वाइज उणां री भोक्ता।
____ महावीर री दृष्टि में प्रातमा अर सरीर जुदा-जुदा है। जठा ताई पातमा संसार सूमुक्त नी हुवै वा एक सरीर नै छोड' र वीजो सरीर धारण करती रैवै । भगवान महावीर परमातमा री कल्पना सृष्टि री रचनाकरण आला रे रूप में नी करी। वारी दृष्टि सूपरमातमा वीतरागी हवै। वांनै संसार सू काई लेगोदेणो नी । आतमा रो चरम विकास इज परमातमा हैं । इण दृष्टि सूजितरी आत्मावां तपसंयम रै मारग पर चाल' र आपणा करम क्षय कर देवै, वी सब परमातमा वा जावै। परमातमा बगियां पछै भी उणारो स्वतंत्र अस्तित्व रैवे । किणी एक जोत में मिल' र वी पापणो अस्तित्व नष्ट नी करै। स्वातंत्र्य बोध री आ मान्यता महावीर रै आतमवाद री खास विशेषता है।
महावीर री दृष्टि में आतमा अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, पर अनन्त बळ री धरणी है। वींनै ओ बळ किरणी बीजी शक्ति सूनी मिलै । वा खुद आपणी साधना सू आपण में छिप्यौड़ा इण बळ नै जागृत करै। चार घातिक करम (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अर अन्तराय) आतमा री मूळ शक्ति रै स्रोत नै रोक लैवै । जद नै घाती करम नष्ट हुय जावै तद प्रातमा रो विकास पर उगरी अनन्त शक्ति रो बोध हुवै ।
श्रातमा री तीन अवस्थावां 1. बहिरातमा :
आतमा री तीन अवस्थावां मानी-बहिरातमा, अन्तरातमा