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________________ देखी तो वीं रो गरब चूर-चूर हुयग्यो । पण वीं हार नीं मानी। वी री दीठ बदळगी । वी नै प्रा बाहरी रिद्ध-सिद्ध निस्सार लागण लागी । वी आत्मिक रिद्ध-सिद्ध नै प्राप्त करण रो निश्चय कर लियो पर राजपाट छोड़'र प्रभु महावीर कनै दीक्षा अङ्गीकार करी। दसारणभद्र री आ हिम्मत अर धरमनिष्ठा देख इन्द्र लाजां मरग्यो अर वां नै नमस्कार कर लौटग्यो। सोमिल री तत्त्व चरचा : दसारणपुर सूप्रभु वाणिजगांव पधारिया। अठ सोमिल नाम रो एक पडित हो । वो सास्त्रां रो आछो जाणकार हो । वी रै पांच सौ शिष्य हा । महावीर जद दूतिपळास उद्यान में पधारिया तो सोमिल वांकै दरसण खातर आयो। वीं भगवान सूघणाई द्वैत, अद्धत, नित्यवाद, क्षणिकवाद जिसा गूढ़ दार्शनिक सवाल पूछिया । महावीर अनेकान्त सिद्धान्त सूसगळा सवालां रा पडूतर दिया। सही समाधान पा'र सोमिल घणो राजी हुयो। वीं घरणी सरधा सू प्रभु री धरम देसना मुणी अर प्रभु सू श्रावक धरम अङ्गीकार करियो। उगरणीसमो बरस : अम्बड़ री निष्ठा : कौसल, साकेत, सावत्थी होता हया प्रभु पांचाळ कांनी पधारिया। अठै सू विहार कर'र कपिळपुर रे सहस्राम्र वन में विराजिया । अठै अम्बड़ नाम रो एक ऋषि सात सो शिष्यां रै सागै रैवतो हो । वो घणो चमत्कारी महात्मा हो। वीं नै कई लब्धियां प्राप्त ही । इण र प्रभाव सूजद वो भिक्षा खातर जावतो, सौ घरों सूएकै सागै आहार लेवतो वी रो सरूप लोग देखता। इन्द्रभूति गौतम जद आ बात सुणी तो वां भगवान सू पूछियो -भगवन् !
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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