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भक्ति भाव सूप्रभु रा दरसण करण ने आया। धर्मोपदेस सुणन सू दोन्यून संसार सूविरक्ति हुई अर वां पापणे राज रो भार भागज गांगळी नै संभळाय दीक्षा अंगीकार करी। कामदेव रो समभाव :
पृष्ठचम्पा सू भगवान चम्पा नगरी र पूर्णभद्र चैत्य में पधारिया। अठ कामदेव श्रावक प्रभू री धरम देसना सुरगन खातर प्राया। धरम देसना फरमायां पछै भगवान श्रमरणां सू कह्यो कैकामदेव श्रावक गृहस्थपणां में रैयर भी घणाइ उपसर्ग समभाव सू सहन करिया ।
एकदा जद वी पीपध में हा, आधी रात में एक मायावी देव, दैत्य, हाथी, सरप आदि रा विकराळ रूप धारण कर कामदेव ने घरम सूविचलित करण रा घणाई प्रयास किया पण कामदेव धरम मारग सूकिंचित् भी नी डिगिया । उणारी धरमनिष्ठा, सहनशक्ति पर समभाव दख दैत्य परास्त हुयग्यो अर आपणे असली रूप में आर वी कामदेव सूअापणे दुष्कृत्यां री माफी मांगी। कामदेव रो श्रो समभाव श्रमणां खातर भी अनुकरणीय है पर ई सू साधुमां ने प्रेरणा लेणी चाइजै।
दसारणभद्र नै आतमबोध :
चम्पा सू विहार करर भगवान दसारणपुर पधारिया । अठा रो राजा दसारणभद्र प्रभु महावीर रो बड़ो भगत हो। वो चतुरङ्ग सेना पर राजपरिवार र साग बड़ी सजधज सूप्रभु वंदण ने निकल्यो। वी रै मन में प्रो विचार आयो कै-म्हारै समान ठाटबाट सूप्रभु-वंदरण नै कुरण पायो वेला? या बात इन्द्र जाप ली। दसारणभद्र नै नीचो दिखावरण खातर इन्द्र उगवत्ती रिद्धसिद्ध रै सांग प्रभु-वन्दरण नै आयो । जद दसारणभद्र इन्द्र री आ रिद्ध-सिद्ध