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चार भांत रा मानवीय करम करण सू आतमा मिनख जनम प्राप्त करें - सहज सरळपरणो सहज, विनम्रता, दयालुता अर अमत्स
रता ।
२१. अप्रमाद
आचारांग ||२|४|
प्रलं कुसलस्स पमाएणं प्रज्ञाशील साधक नै प्रापणी साधना में किंचित् भी प्रमाद नीं
करणो चाइजै ।
भारण्डपक्खी व चरप्पमत्तो ।
उत्त० ४६ भारण्ड पक्षी री भांत साधक अप्रमत्त ( जागरूक ) भाव सू विचरण करें |
सव्वनो पमत्तस्स भयं,
सव्व अपमत्तस नत्थि भयं ।
आचा० १|३|४|
प्रमत्त आतमा नै चारूकांनी सूं भय रैवे । परण अप्रमत्त श्रातमा नै किरणी भी श्रोर सूं भय नी रैवै ।
आचा० ११२/१
धीरे मुहुत्तमवि णो पमायए धीर साधक मुहूर्त भर है खातर भी प्रमाद नी करें । असंखयं जीविय मा पमायए ।
उत्त० ४।१
जीवन असंस्कृत (क्षणभंगुर ) है । वोरो धागो टूट जाबा पर दुबारा जोड़ियो नीं जा सके । आ सोच र जरा भी प्रमादनीं करणो चाइजै |
उट्ठिए नो पमायए
आचा० १५/२
जो साधक एक'र प्रापणै कर्तव्य मारग पर बढभ्यो है, उरणने फेर प्रमाद नीं करणो चाइजै ।
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