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साधनामय जीवन रै प्रभाव सूदेखतापांण गोसाळक री जळन सांत हुयगी।
___करमगांव सूसिद्धार्थपुर होता या महावीर वैसाळी पधारिया पर नगर रै वारै ध्यान मगन हया । आता-जाता लोग महावीर नै भूत-परेत समझर घणी तकलीफां दीवी । महावीर से तकलीफां सांत भाव सू सहन करी । संयोग सू राजा सिद्धार्थ रा दा मित्र संख पर भूपति उण रास्ता सूनिकळिया । वां महावीर नै ओळख लिया। वां उपसर्ग देवरिणयां लोगों ने समझा'र बठा सू अळगा किया अर प्रभु चरणों में वन्दना करी । खेवट रो किरोध :
वैसाळी सूमहावीर वाणिजगाम कांनी आया। रास्ते में गंडकी नदी पड़ती ही । नदी पार करण खातर प्रभुनाव में बैटिया। जद नाव किनार लागी, खेवट महावीर सूकिरायो माग्यो, पण महावीर काई देवता ? महावीर नै मौन देख खेवट नै घणो किरोध प्रायो। वी प्रभु नै खरीखोटी सुणाई अर तपती वाळू पर ले जाय वांने ऊमा कर दिया । प्रभु महावीर वठे जाय ध्यानलीन हयग्या। अचाणचक उठी नै राजा संख रो भाररोज चित्र आयो। वो महावीर नै जारणतो हो । वीं खेवट नै परण महावीर री अोळखाण कराई। वाणिजगाम सूसावत्थी पधार र प्रभु चौमासो पूरो करियो । ग्यारमो बरस :
महावीर सावत्थी सूविहार करता-करता सानुलठ्ठिय सन्निवेस पधारिया । अठ तपस्या करर ध्यान साधना मे लीन हुया। एक दा पारणे रै दिन भिक्षा खातर महावीर आनन्द गाथापति रै धरै गया । उरण समै दासी बहुला बच्योड़ो वासी अन्न फेकण खातर बारे पाई। बा'रै साधु नै उभो देख वीं पूछियो- महाराज ! थाने