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वीं घर श्रादर मान सूं महावीर नै नमन करियो । बठा सू' विहार कर प्रभु राजगृह पधारिया । अठे चातुर्मासिक तप कियो ।
नवमो बरस :
राजगृह सू विहार कर' र महावीर फेरू अनार्य देसां में विचरिया । अठारा लोग अज्ञानी पर निरदयी हा । वां महावीर नै घरणी यातना दीवी । उणां रे उघाड़ सरीर पर भाला, लाठी भाटा श्रादि सु वार करिया । महावीर लहूलुहान हुयग्या पण समता भाव सू वां से तकलीफां सहन करी । वांने ठहरण खातर पड़ी तक नी मिली। वी रूखांरै हेठे ध्यान मगन रेय' र चौमासो पूरो करियो ।
दसमो बरस : गोसालकरी रक्षा :
अनार्य देसां सू विहार कर महावीर करमगांव पधारिया । गोसाळक परण इण समे वारे सागै हो । अठे गांव रे बारे वैस्यायन नाम रो एक तापस सूरज रै सामै दीठ कर, दोन्यू हाथ ऊपर उठा'र आतापना लेर्यो हो । उपरै लाम्बी - लाम्बी जटावा ही। सूरज री गरमी सू तपर उगरी जटावां सू घणकरी जू वां हे गिर री ही । वो उगानें उठा'र उठा'र पाछी जटावां मे राखरयौ हो । तापस री ना हरकत देख गोसाळक ऊरणरे कनै आयो श्रर बोल्यो – अरे, तू कोई तापस है या जू वां रो घर ? तापस मौनरयो । पण जद गोसाळक वार-बार श्री बात दोहराई तद तापस नै किरोध आयग्यो । वी गोसाळक नै भसम करण खातर आपण तपोबळ सू ं प्राप्त करयोड़ी तेजोलेश्या (आग बरसावण आळी लब्धि) उरण पर फेंकी । गोसाळक इरण सू' डर र भाग्यो अर महावीर रै चरणां मांय छिपग्यो । वीं महावीर सू अरज करी - प्रभु ! म्हारी रक्षा करो, म्हनै बचाओ । गोसाळकरी करुण कातर पुकार सुण महावीर गोसाळक काँनी देखियो । महाबीर है तप-त्याग अय
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