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श्रातमा इज प्रापण करियोडा दुखांरी भोगणहार है । तुट्ट ति पावकमाणि, नवं कम्ममकुव्वनो ।
सूत्र० १|१५||६| जोन वा करमनीं बांधे. उगरा पैल्योड़ा बंध्या पाप करम जावै
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कतारमेय श्ररगुजाइ कम्मं
उत्त० १३/२३
करम सदा कर्त्ता (करमाळा) रे पाछे-पाछें चालै । सयमेव कडेहि गाइ, नो तस्स मुच्चेज्जऽपुट्ठयं ।
नष्ट हुय
सूत्र० १।२|१|४
जीव आपणे खुद रे बरणायोड़ करमजाल में आवद्ध हुवै कियोड़ा करमा सू उरणांनै भोग्यां विगर मुगति कोनी |
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१६. शिक्षा र व्यवहार
विवत्ती प्रविणीयस्स, संपत्ति विणियस्स य,
दश० | २|२१|
श्रविनीत ने विपत्ति प्राप्त हुवै श्रर सुविनीत ने सम्पत्ति । ग्रह पंचहि ठाणेहि, जेहि सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पसाएणं, रोगेणालस्सएर य ॥
उत्त० ११।३। अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग र आलस इरण कारणां सू शिक्षा प्राप्त नी हुवै।
कह चरे ? कह चिट्ठे ? कहं मासे ? सहं सए ? कह भुजन्तो, भासन्तो, पाव कम्मं न बंधइ ?
दश० ४|७|
भंते ! किरण भांत चालां, किरण भांत ऊभा रेवां, किरण भांत बैठां, किरण भांत सूवां, किण भांत खावां, किरण भांत बोलां, जिस पाप करमां से बंधरण नीं हुवै ।