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गुणतीसमो बरस :
महासतक अर रेवती :
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मिथिला सूर विहार कर' र मगध कांनी होता हुया प्रभु राजगृही पधारिया र गुणसीळ चैत्य में बिराजिया । वां दिनां प्रमुख श्रावक महासतक अनसन व्रत कर राख्यो हो । संयम र तप सुद्धि रे प्रभाव सू वीने अवधिज्ञान हुयग्यो ।
महासतक री पत्नी रेवती दुष्ट प्रकृति री ही । वींरी धरम मे रुचि नी ही । महासतक री तपसाधना पर धरम क्रिया सूं वा खुस नी ही। एक दिन पौषधशाला में जा' र गुस्से में प्राय वीं महासतक नै खरी खोटी सुरगाई, जिस महासतक रो ध्यान टूटग्यो । बो रेवती र इण बैवार सूं घणो दुखी हुयो पर बोल्यो- रेवती ! तू इसी खोटी चेप्टा क्यूं कर री है ? खोटा करमां रो आछो फल नीं मिले। तू इसा खोटा करम करण सूं सात दिनां माय अलस रोग सू दुखी हुय' र असमाधि भाव सूं मरेली । महासतक रा वचन सुरण रैवती डरगी । वा सोचरण लागी - महासतक ने सांचैई म्हारे पर किरोध है । कुरण जाणे म्हने और कोई दण्ड मिलसी ? या सोचता- सोचता रेवती उठा सू व्हीर हुयगी । महासतक री बात सांची निकली।
महासतक ध्यान सू विचलित होणे री बात जद भगवान महावीर जाणी तो वी गणधर सू बोल्या - गौतम ! श्रठे म्हारो अन्तेवासी महासतक पौषधशाला में अनसन वरत में है। वीने रेवती बुरा सबद कया है जिसू रूष्ट हो वीं रेवती ने असमाधि मरण जैड़ी खरी बात कही है। श्रावक महासतक नैऐड़ा सबद नीं बोलणा चाइजै । थां जा'र उगने केवी के प्रपणे इण कथन री वीने मालोचना करणी चाइजै ।
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