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री बात सुरण अठा रो एक श्रद्धावान प्रमुख श्रावक मदुक प्रभु दरसरण जायरो हो। चरचा करणियां परिव्राजकां नै मालूम हयो के मद्दुक नै भगवान महावीर रै सिद्धान्तां रो पाच्छो ज्ञान है तो उणां मद्दुक सूघणाई तात्विक प्रश्न पूछिया। मद्दुक सगळां प्रश्नां रो तरक संगत उत्तर दियो।
मद्दुक र इण तत्वज्ञान री महावीर पण घरणी प्रशंसा करी। ओ चौमासो महावीर राजगृही में ही पूरो करियो । अठ प्रभु री धरम देसना सुरण लोगां घणाई व्रत-नियम अङ्गीकार करिया।
बाइसमो बरस : पेढालपुत्त उदक री जिज्ञासा !
राजगृही सूजुदी-जुदी ठौड विचरण करता हुया प्रभु पाछा राजगृही पधारिया अर गुणसील चैत्य में विराजिया । प्रभु सू प्रापरणी तात्विक संकावां रो समाधान पार काळं दायी तैर्थिक घणा राजी हुया। वां भगवान सू उपदेस सुरगण री इच्छा परगट करी। महावीर रै उपदेसां सू प्रभावित हुयर वी निग्नथ धरम मे दीक्षित हुया।
एकदा प्रभु महावीर नाळन्दा रै हस्तियाम उद्यान में ठहरियोडा हा । अठै पार्श्वपत्य श्रमण पेढालपुत्त उदक री भेट इन्द्रभूति गौतम सूहुई । उदक गौतम सूबोल्या-म्हारै मन में थोड़ी संकावा है। आप उरणांरो समाधान करो। गौतम उदक रा लाम्बा-चौडा प्रश्नां रो सांति र सागै समाधान करियो। इतरा में अठ पार्श्वपत्य परम्परा रा बीजा स्थविर पण आयग्या। वी भी चरचा सुणण लागा। उदक पापणी संकावां रो समाधार पा'र बिगर आवमादर करियां पर बिगर बोल्यां वठा सूजावा लागा तद गौतम कह्यो