________________
४०
घबराया । वी आपण ध्यान में बराबर लीनरया । महावीर री आ हिम्मत पर मजबूती देख सांप भी कई दफा वांनै 'डसियो पण महावीर तो उणीज भांत अडोल, अकम्प ऊभा रह्या । महावीर री प्रा असाधारण वीरता देख सरप रो विश्वास डोलग्यो। वीर डसण री ताकत नष्ट हुयगी।
सरप नै यूं लाचार देख महावीर सांत भाव सू कयो-सरपराज! जाग, आपण किरोध नै सांत कर। इण किरोध रै कारण ईज थनै सरपरी जूण मिली है । अबै थू आपणै मन में प्रेम अर मित्रता रा भाव ला । जै मन में शुद्धि नी लावला तो थारी प्रातमा यूईज अंधारा में भटकती रेवैली।
महावीर रा इमरत वचन सुरण'र चण्डकौसिक रो किरोध सांत व्हैग्यो । वो टकटकी लगा'र महावीर कांनी देखतो रह्यो । अब वीनै ज्ञान रो प्रकास मिलग्यो हो । बीनै पापणा कियोडा खोटा करम एक-एक कर याद आवण लाग्या। प्रातमगलानि अर पछतावो करता थकां उरणरो हिरदय पळटग्यो । उपरी द्रष्टि रो सगळो जहर इमरत में बदलग्यो । महावीर रै डसियोड़े चरणां री ठौड़ सू खून री जगां दूध री धारा बेवण लागी। महावीर रै समभाव अर वत्सलता सू सारो वातावरण प्रेममय बणग्यो।
चण्डकौसिक नाग रो उद्धार कर महावीर उत्तर वाचाला मांय पधारिया। अठै नागसेन रै घरै पन्द्रह दिन रै उपवास रो पारणो कियो। वठासू महावीर श्वेताम्बिका नगरी पधारिया। अठ राजा परदेसी आपरा दरसरण कर घणा प्रभावित हुया अर पक्का भगत बरणग्या।
नाव किनारे लागी:
महावीर श्वेताम्बिका नगरी सूसुरभिपुर कांनी विहार