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THE FREE INDOLOGICAL
COLLECTION
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-The TFIC Team.
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भर्यालयोनम और शोर की दर
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अनुकता
श्रीअवधनासीमपउपनाम
लाटा भोनागम बी ग
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नेशनल में प्रयाग
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मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरी की नबील
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श्रोि कामाया और ज
अनुवादकर्ता
पू
भाषा
श्रीश्रवधवासी भूपउपनाम
लाला सोनाराम श्री ए
प्रकाशक
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नेशनल प्रेस-प्रयाग
मन्य)
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मर्या
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प्राचीनमणिजा
महारा
मीर की नका
के प्रसिद्ध मंत्र ऋषा और कानों में अनुष
महाकोष
अधम्
तीसरी बार ]
अनुवादका
श्रीश्रवधवासी भूपणनाम
लावा सीताराम श्री. ए.
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प्रकाशकः
नेशनल प्रेस - प्रयाग
सन् १६२२ ई०
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সতাঃ দীৰল, শoto, ৰঙ্কিল খ
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মান্না
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নীল মনি শিব হয় না, তা না
দি সৰু হাই লাখ, চুন ধা। লাল
•• ••• ••• লৰ ক্ষ। গুপ্তা কাল ভাই, দু কলহ
রূহ, স্থা । ৯ জি চাল, দুল, নাস্থ্যস্থা।
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সামু কি ক্ষমা সুতিঃ
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সুৰঞ্জলস মনে হল । হাম ছিল ল সুহান । অনন্ত কামুৰি ল করে ঈ = { হী ছ ল ম ল ক ন্তু কে
লা লিঃ লিঃ ক + সুমী। নিল হলজ স্লি জলি ও ও বিল সাইজ ম হ ল ৰলৈ নাই । ৪াল শ ল ক ন পু ছুজ গন চুহি গুলি ও শ্রী শ্রুতি া । চুল্ফি ঈ ক্ষ # ন হ ক্ষ ।
* হলুদ হ ৰ? উঃ ? । কাস্তু সক্ষণ মুন্ত ভন স্মিয় নিলো।
, লাক্ষ কুনি ভ্রল। গনান্স ঃ ।
১লল মা হ”ি ।
জুলহাস নল উচ্ছ । সুল ৰঙ্গ হয়।
ছিঃ ই ব শ্রী শ্রী । ৰূল গুণ না মানা । অঞ্জ লাঃ অলিজা !
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འཚུ་”ཆུ
ང་ཙཱུ ཆུ ཨོ་ཀ ཙ་ཡ༔ !
སྨཚེ ''ག་ ཙྩལཱ ཙ ཚུ་པ་ ཁབ་ཀ་ག་* 1 जो प्रमुकायायाने जा माही।
चलमिटै जई :
"काकात मार समान कस्यभेड हरिरित लोहाए। नौति अनेक मुवीस কলিন রুহেল ল ল ভালছি।
चितविनोद निज धर्म जानी। मैं यहि बिधि हरिकथा बधाही ! पदि नहिं सकत संलकुल साई । लहैं 'तु अन्यमियरस सोई कै जो मोह बस रहत मुलाने । पड़े देखि यह अन्थ पुराने । समुस सुनें रामगुनमामा। निजहि जानिही पूरलकामा
कानपूर फाल्गुन शिवरात्रि
सं १९५४
श्रीवासी सीताराम
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শা= জাম
মশ পুশুন # গাই ঈ বগঞ্জ। #ম। ঔ পাত্র চাই শান্ত করা লিলি? = साहायक महारा ঈদ ই ? বাথ কি = নাই
*
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হাজ গুলি । লাক্ষ লিঃ
লজঃ ক ষ্টুনি সলিঃ স্লা নিংপ্লাশি ? ? সুপ্তা জানা দুখৰ কঁ যা। যখন কাকা গুলী কা হল? গুলি কী ঃ बालिका तड़का বুকুৰা কঁ দাবি
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दो गिद्ध
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বা ক্ষা ৰষুণ জ্য মন্ত্রী বালু জ শুনানি
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समाय
माननि
इन्द्र का सारथी कुशध्वज का लारथी
एक पली एक कंचुकी
स्त्री
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जनक की पुत्री और नाटक की नायिका
नायिका की छोटी बहिन कौशल्य: नायिका को माता कैकेयी भरत की माता मित्रा लक्ष्मण की माना अस्थनी
अलिष्ठ की स्त्री श्रममा
एक सिद्ध शवरते हंका. अलका दो नगरदेवियाँ मन्दोदरी
रावण की रानी पणखा रावण की बहिन ताड़का
एक राक्षसी গিল। एक राक्षसी सिपाही, चेरे, प्रतीहारी, सखियाँ, किनरी, इत्यादि
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श्रीमहावीरचरितभाषा
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प्रस्तावना
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( नाम्दो)
से जो रहित स्वस्थदेव जगवील :
क्रम नित्य ज्योति चैतन्य प्रभु ताहि नाश्य सीस
| नाली के पीछे सूत्रधार बात है )
सूत्र -- प्राजके महा मिली है कि ऐसा नाटक खेती. संगम पुरुष महान की जहाँ रहें अनि घर | बात रहेमा अर्थ समेत कठोर
रहे अलोकिकपात्र में जहाँ पर एक 1 निभिन से लखपरै प्रति बाधारविवेक ||
तो इसका अभिप्राय यह है कि महावीरचरितनाटक खेलन चाहिये, जिसको
ऐसे कवि रचना करी रहे जासु यस वानि । कथा मानुकुलचन्दको जग मंगनको खानि ॥
सो मैं हाथ जोड़ के निवेदन करता हूँ कि दक्षिण देश में पद्मपुर नाम नगर था जहाँ तैत्तिरीयशाला के अवलम्बन करनेवाले. चरणगुरु, पंक्तिपावन, सोमयज्ञ करनेवाले पंचान्नि, काश्यपगोत्र के, वेदपाठी gufers त्राह्मण रहते थे । उन में से वाजपेयीजी यात्रा का मत है सौ गुरू इत्यादि मूल
मात्र श्रीका
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नाटक मणिमाला
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पशुधाई में महाधि सट्टगोपाल थे। उनके पौत्र और
समें नीलकंड और जाकीदेवी के पुत्र भवभूति नाम हिडकी र मिली थी,
तिरस परमहंत गुनधाम
मनासपुर छागि ज्ञानतिधिमान॥ ही निधन भजन माला।
बाहना प्रताप प्रकाला यह रघुपतिवरिल सुहाबा
RIEन अति स्य बनाया शुभ र अन्धका श्रीअवधयालीभूएशनाल लाला सीताराम में शक्ति सरल भाषा में अनुवाद किया है. उसे अप लोन * इन कक्षार्थ ; नरभूतिजी ने कहा भी था,
জী ? বাঙ্গা ।
ইঃ দি জলিং এলিলা । जानु मत मारिह तह बानी । सुने मुक्तिमान पंडित ज्ञानी
(नट पाता है। न-समके लोग नो प्रसन्न है, पर प्रवन्ध कभी देखा तो है • इल ने यह जानना चाहते हैं कि कथा का प्रारंभ कहाँले है। सन- महात्मा कौशिक जो यज्ञकरना चाहते हैं सा वसिष्ट जी जमान महाराज दशरथ जो के घर से अभी लोटे पाते हैं और दिन र कहि नान वासुदीरता जगावन । ना मंगल के काजमीय सँग व्याह करायन !! ढलमुल विसि करें जब पूरनकामा। अनुज सहित ले रामचन्द्र लाये निज प्रामा !! ,
नेत्यो मिथिलापति मुनिराई! करत यह पठयो तिन भाई।
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महावीरक
नार कुशव यि कलिना
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हिङ हट
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कोनों बजर आई है
पहिला अङ्ग
: पहिला स्थान-सिद्धाश्रम के पास एक कू
गदर बढ़े हुये दो कल्या समेत राजा - देवी सीता अलि बा विश्वामित्रो को बड़ी वहा ले प्रणाम करो | दोनों का बहुत अच्छा बाबा मी राजा - यह ऐसे वैसे ऋषि नहीं है । वह तो यशशि बोथी मनहुँ पञ्चव
राजा और है : तुमको चाहिये कि महात
तीरथ जग विचरत फिरत धर्म घरे जद रूप
सूत --- महाराज सांकास्यनाथजी, आपने वहुन ठीक कहा . विश्वामित्र से कर तेजधारी कौन होगा : त्रिशंकु को आकाश में रोकना, शुनःशेक के प्राण बचा लेना, रम्मा को निश्चत करना बड़े 2 अखरज के कार इन्हीं इतिहासों में लिखे हैं । प्रदेश जिन वेद तेज के परमनिधाना। दोन्ही जाहि विरंचि व परमारथज्ञाना सो विद्यानिधिसंग करत तुम कुलाचारा । रहि गृहस्थ को धन्य आप सम याहे संसारा :
राजा ---वाह सूत, चाह, बहुत ठीक कहते हो। यही महर्षि लोग हैं जिनके द्वारा वेद प्रगट हुए हैं। इनके दर्शन ही से कल्याण होता है |
एक वार भेंट ते छुटै सफल महान । fer शिराय दो लोक में रहे तासु कल्यान
客
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कपि
प्रक्षेत्रे दक्ष तुरत सहित फल देत ! दिन हिनौ दिन उग बाई मृत-महाराज, पोशियों के किनारे सिफर का महा की ही है, चारों और हरे हरे झाड सजे है। वह देखिये Heer वालिक को दो सड़के और हाथ लिए आप से
मिलने के चार है ।
उतर
- को के साथ हैसियों से कह दो कि साक्षर के सावै ॥ द--दो अज्ञा एक फैल से लेकर बाहर जाता हैट से दोनों कम्पास राजा बाहर जाते हैं ।
हम
[ इसरार-सहाश्रम
विश्वामित्र उपय और तक आते हैं।
६
विश्वामित्र - आपको आप )
शुभकाज राकसमा हित करि अस्त्रमंत्र सिखाइये । वैहि रघुकुलere care gae पर दहराइये || करवाइये जब म दिन शुभ चरित श्री रघुवीर स परिणाम लखि सुख बहत चित मतिन्यन कारज भर सो रानी को हमने कहला भेजा था कि आप आप हो यज्ञ कर रहे हैं, ती मावारके अनुसार आएको न्योता दिया जाता है, सो आप सोना और ऊर्मिला को कुशध्वज के साथ भेज दीजिये। इसी को प्रीति ऐसी है कि उसने वैसाही किया ।
दोनों कुमार - महाराज as sta है जिनसे मिलने को आप जो आगे बढ़ रहे हैं।
विश्वातुमने सुना होगा कि निधि कुल के राजा विदेह देश में राज करते हैं ।
राजत तिनके बस महूँ व सीरध्वज भूप । यासियो जिनहिं पूरन येद अनूप ॥
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ཚུལ་ཚུ་ བྱཱ ཨཱལཡ་ दोनों कुमार-
जीत के मुह में नहादेव का घर
कि एक हत्या की है जो माकेलेलही जन्मी विनोक- के हो है और
नाम बाले हि । अदुमय से ओलहिन बने ।। बाई अल्बदो शाजा है. इनके सामने विजय से रहना। बोलो कुमार--बहुत का ।
दोनों कन्या उमेत रजा कुमाया भने हैं। राजा--(दोनों के खेलके )
धारे तेज बुलन कौन जानि इतनाह पर।
नहे यजमात ए क्षत्रिय बालक । बोट हैं चूमत बान के मुख दो दिलिप कसे है नुनीरा ! ओढ़े हैं खाल हरू, मृग को अति पाइन भस्म लगाये शरीर ! मूसी और पले काटे तन बांधे जोट के रंग को चीरा॥ अक्षको माल लाईक हाथ में पोपलोड गहे वनु धीरा दोनों कन्या--- कुलार तो बड़े सुन्दर है! राजा-- आगे बढ़ने महात्माजी प्रसाम । विश्वा-या बड़े प्रानन्द की बात है कि तुम कुशलसमेत आगये। कहो तो,
करत यज्ञ निजवंशगुरु शतानन्द के साथ।
हैं निर्वन कुशल लाहेत कै मिथिलापुरनाथ राभा-तपली धुरोहिन लोन माई की कुशन्त में क्या सन्देह है। जिसके भला चाहनेवाले आपसे सिद्ध महात्मा हैं। दोनों कन्या महाम हम तुम्हारे प्रणाम करती हैं
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MP:
अरावलले
अरज है कि कुमारी
--REATी,
से पराकार बघुन मन धन Karate-महाराज दशरथ के लड़के राम और लक्ष्मण है।
राजा--बड़े भानन्द की बात है कि महाराज दशरथ के लड़के हमने देख लिये गले नाके)
करे उपॐ और कुल ऐसे दूगसुखकन्द ।।
धीरसिन्धु नये कौन्तुसमनि अरु बन्द हमने यह पहले ही सुनाया।
अध्यनंग जब विधि अनुरूप कोह यह सब कोसलपा । लहे पुण्यामूरति सुत बारी
अतुलस्तापतेज बलधारी॥ शो अब हम इतनीही अलीस देस हैं कि आपके मादि से इनके लव मनोरथ पूरे हो । रघुकुल के लड़कों की उन्नति तो
ওই স্কুলে প্রতি নিল কুল বিনি িকন । जिन सरिल कोड माहिं नप नहिं मजापालन धर्म में।
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आशियल मस नई बस र जिन
:
विश्वासपात्रा सहजरत निजा
भाई लाल यह है कि विना कर फिर सीन करते है. इस विकसी :
जय
श्रीरामचन्द्र जी की. जमीन की ?
विश्वा२बह उतथ्य के पुत्र गौतमी संपली हत्या है : इन्हींके शतानन्द हुए थे। इन र इन्द्र प्रेस या इसी से सोनम की स्त्री के सतशियाईनेवाले इन्द्र ग्रह का यार कहते हैं । इस पर महात्माजीक बड़ा को हुा और अपनी श्री को शाप दिया कि जान एत्थर ही जासेमा भैव: TEE के तेज से इसके पाप छूटे। ཙཱ་ཡག འ * ཨུཙྪ ནུ་ ཀཱ་ཨཔྤཡྻ ཨཱི ཀྱི་ཡུ་ ང་:
सीता--(श्लेह और अनुरसा से ही प्रापजैसा तप है बैला ही प्रभाव भी है। বা?-~~-সুংসক সুলনা ;
देने प्रवास सुरामाई सीता धनुमंजन मह बल अधिकाई । करते नदि जो बरगुन भाई।
(एक तपसी आता है। तपसी-रावण का पुरोहित सर्वनाय नाम एक बूढ़ा सक्षल माया है। सो राजकाज से आप से मिलना चाहता है।
दोन कन्या-रे रान!
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-बड़े अबकी बा है : बिस --- : : हाय ! पली बार
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अपनर है :
पटक मोहि मिथलारअयानो।
T के यश समता हुआ पाया, उसके कहने यालय न कुमादक पास या है। इधर उधर
राम और सीता और इमिला को ओर देख कर असा RAM और अपही आय)बह कौन है जो अमृत की सलाई की माने कि नर रही है।
सीता और टर्मिना-( उसी प्रकार से उनकोनों की ओर अलग प्रा घर है जो इसे देख मुझे इतना सुख मिलता है।
जल---(माले बदकर देख के अरे यही सीता है। यह निःसन्देह महाजा की रानी हानेके जोश है। { आगे बढ़कर )
विश्वास और राजा-आह !
झाकी आमातिर धरत खसत मुकुट सिर नाय । सुरति लाइ कुसलसकेकापुराय ? राजल-स्वामी कुशल से है । महाराजने यह सनेसा भेजा हैं।
aanो भूमि मैं पाई के म है तनया एक भूप तुम्हारो। इन्द्रह पास जो रत रहे सो मिले हम को यदि साह हमारी। सोहम जाचत छापहि मायब सुपनकी जग रीति विधारी। कीजिए, वधु पुलायबलको शीरति त्रामु सदा उनियारी
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तीनहाय हाय रामनगट करता है।
इमराना
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ལྕེ་ – སf པ་,
नाही तुजन हैजा जनम के बैरी निवार ही इतनी बड़ाई करते है।
सूरत जिन सन्दकवि दोन्ही जो विभारि ।
मारवं सबैयो अन जो मानि बाम-ठीक है, साने लेबह इस के जोग है कि हम लोrr इले मारे। पर बड़े पर्वः, बबीर, अमावारनरीक्षो की सा. रन मनुष्य की मानि नहीं मानना हि ।
MERI-जिसने वीरोंचा प्राचारध कर दिया उसने
रामदासीवान कहो । है बीर शुद्ध कुबीन जो निज धर्म एच एन लेटर वैद्धि निन्दिये जनि कहुँ, नहि इको गुन सत्र लखिा। जिन खेल मे जनु जाति लीन्हो मानवीय कुमार के। सोरान तजि रावन वरिल शाहु कीर एहि संसार को ? राक्षस--अजी क्या सोचते हो? এই লাল সার কাইল গ্ৰায় সু হল । जाई तारि नन्दलफूल माल बनाइ सुररान धरत हैं । ज, देवपतिमातंगदन्नन बाद जयहि मई। सई बोरवर पर महिमुताश्रिय समिनित मय हई ।।
(परदे के पीछे हवा होता है)
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मशाल ? ཚེ་
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होते हैं।
अली के तार झपारी हाइन ताहि बजाति है। भूपयर के सारस से शामाई गुडि उति है र बानि बहु और जोर औ डाक लावति है
और भयंकर देह पर कौर श्रौं काल सो आवति है वि ~~ लुकेतलाया ललिय सुन्द्रासुर की जोइ !
मायाकी दम ताड़का होई दोन कन्यावा इसे डेख बड़ा बर लगता है। ཁྱབ་གསལ་བཨཔྤཙེ ཨུ ག विजा-रान की टुइही कर भैया इसे मार दो। सीला~हाद झाब यही इस काम को थे । राम-गुरुजी यह ली हैं। समिर ----सुजा तुमने। सीता बिल्लय और अनुराग)बह कुछ और सोच रहे हैं राजा-वाह वाह को न हो इधाकुवंशी झो।। सास--अरे शरथ का लड़का रामचन्द्र यही है । विपुल माइका रूप मनि जाहि ने भय नाहिं।
मारन मह तेहि नारि ललि कटु सकुचत मन माहि ॥ विश्वाड-भैया जल्दी करो देखो आये कितने ग्राहण मारे गये हैं राम तो आप जानिए छोरलेश बिन नित्य रहि भये जो वेद समान । पुण्य पापके विषय यह प्रापहि रहैं प्रमात । ( बाहर जाता है। सोता-हाय इनके ऊपर तो वह प्रलयके बवंडल की नाई आही है।
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Pakad
महाranate
राजा - ( धनुष उठाकर अड़ी रह बाई ब
हृदय (मुलाखজীन । क्यों हो परीवारीक
मत्त सन जनधार समावः । सरि तजे मोटामा ?
है।
दोनों का बड़ा पुछा रामः-वाह वाह राजकुमार के कड़ा हाथ मारा है। गजल ---हाय वाटुका हम यह क्या हुआ. सोका ही मिल उताई।
यह अपमान मक्षुत्र सत पाई : वटी हाय रावन प्रभुताई । जिन सुबन्धुकर तास निहारा ।
दाय में अद्दु बस बगत हमारा |
विश्व-यहो तो श्रीगणेश हुआ है ।
राह--अजी हमारी बातका का उत्तर देते हो ? विश्व१२-- इस बात मैं
सीरध्वजहि प्रमान कुल
बोर्ड माय है।
कुलके पुरुपप्रधान कन्या के पिनु सूप ले !
राक्षस - मौर वह कहते है कुशन जा
विश्वा०-- ( आपही बाप | दिव्य देने का अवसर यही है। मुरतो मा है। प्रकाश ) भाई कुहने महात्मा कुशाश्वाजी की बड़ी सेवा की; तब उन्हों ने मेले दिव्य दिये जो मन्त्र से चलते है और जिनके मारने से सेना बेसुध हो जाती है । इस समय हम मैा रामचन्द्रजी को बोते हैं।
ars सहखन तप किया ब्राह्मादिक इन हेत । तय देखे ए मनु निज तप वेज समेत
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चना
रिमाला
रघुकुल पर बड़ी
- हवा जा रहे है
हुई
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-क्या ताकी के विरुवात देवकः
ये है कहिल
इ अकाल उठ सौ साल फैलतनम डोती में तनिक विला
शारजा ||
महं मातुश्री जोतिबाये ।
जरत किरन
मंगल तेज परमाप प्रकालन । रिक्ति
फैलाये !
की मालत ||
कन्या-चारों ओर विजली चमक रही हैं, अर किला पड़ती है।
-दिव्यrat का तेज भी फैला प्रचण्ड होता है, व और इन्द्र की लड़ाई याद आती है । जब इन्द्र भरि शक्ति हम्यो तिज बजे प्रचण्डा राक्षसपति कर वापत भये ताके सतखण्डा | ऐसेहि तथै करोरि बिज्जु जनु नभ महँ काई । मिलत नाथको हाँसि रोषज्दाना की नाई ||
भैया रामचन्द्र इनको नमस्कार करके विसर्जन काल अनि अरु वायु वरुन ब्रह्मा अरु धनपति । रूद्र इन्द्र प्राचीनवर्हि बारे प्रभाव अति ॥ मन्त्र सहित ए नत्र घोर तपबल को नाई । एकहु इन सह सकै जगत सब नासि, बधाई
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གཙཱཡཱ ཙགྲྭ – ཀུ
ཙྪཱ ཙྩུ ཤུཊིཀཱ ར ལྕཡོམྨཊྚཎྜཔ་ ཡཾ ཨུཙྪཱཡཱ མ ཛ པ
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ཙཱqyg? - ན – : ཙུ་ ཚུལ་ ཨཱ་ཎཱ ཡ ཚུ༔
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གླུ་ བྷཱ་ རོསུ སུ ཡུག ཡ ང་ མ ;
པ དེ ཙྩ rསྨན ཤུ རྒྱུ ཚཚུ་ ; ; * མྱུལ་བཨམཱུ ཚུ • ཡི་༼ཚོུ, ཨཱ་ཚུ་ དངུw རྗེ
ལྷགྲུང་པ་ཏ་ཡཱ ཙྩ rལས ཚེ་ན་ན ཀྐ ཀྐ Y; ནེུug rgཚ ཛ བྱཱ་ བློ ་པ ས བ ཙ ––, དྷ་ཀཱ ཀ ཀཱ ཀྐཎྜལ ་
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काममा महिला किन हो पर यकी ऐनी कृपा है। इस लोगों के तो का कुछ किया जोखाना दिया।
: - अशी प्रारको विश्वास नहीं है।
र अनिशिबालादालन जोय ।
के लए लोकायगर अध्छ होट राज - बहुत प्रा । यान करना है। - - पट्टी , इन झोनोंले कुछ और विचारा!
को धारक दिवार कोश ! मानते है कदमाई जाने। रह-रका दिया। वह कहते है कि कुशवज जानें!
परदे के पीछे बना होता है। महासमा जनु चनो शंकरतेज बहोत ।
सन्दके नौह अधबाप प्रगट लो होत। सीता--- दुई कर के अब मुझे बड़ा डर लगता है। विश्वा- राजा से)
न्यो परबत बेटी परत कोपि नारा हड दाप! त्यो निज हाथ लगाइ सोई॥ कर्मिन:-अपमान करें ऐसा ही हो ।
मिला-- अति प्रसन्न और लजित सीता के गले लाकर )
राज:---- आश्चर्यले)
दूटत बाप ॥ राक्षस-~पर इल पापी रामचंद्रका प्रसाच तो सब से बढ़ा है।
ज्यों रविवसविनूपन राम माधो निज हाथ सों शमुखोदडा
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= अन्नपुर और जब हो जस्मा तच गोदान करके
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शिक्षा —–भैया नाफा जी और हनी
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यह संरेखा कही । हमने तारिति जो
शेती कुमार - ( सापही बाप ) -- (दोनों बहुत अच्छे कर पड़ीं।
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की ओर से ही हैं।
के रूप ऋ ऋषियों का न्योता देकर महाराज दशरथ के
और जनक ओ का वक्ष कुमारों का व्याह होना । { शुनःशेक बाहर जाता है } यह और भी मछी बात है। है कि बारों बहनें एक
পহর ১
पनि खारि निधि पदी धारि
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राम सुनते ही हो सुनो हमारी बात । तुमने यह लड़की का रे तो दी।
पौलस्त्य कुतनूपण दशानन सुता मांगन जातिके । तुम कीन्ह आवरता हि संबंध अनुचित मानिके ॥ तो और को विधि अवसि अब यह सte लंका जाइहै । सुर सरिस न तुम सब बन्दी करन औसर बाइहै ! ( परदे के पीछे सोर होता है । )
राजा- ए फोन हैं जो मोड़ के साथ दौड़ रहे है । विश्वा०-- पुत्रखुद उपसुन्द के ए सुवाह मारोच । दावन के अनुचर दोऊ वनविनाशक नीच
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महा सिंह सौ बार माली नुवाद।
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लित जाति : र्षन :
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शूर-जाना की जय हो। बाल्य-माओ बेटी है। कहा जा के यहाँ से का
अर्प सोचा है पाया और महर्षि प्रास्त्य ने चन्द्र के पास नंगहा की नमान्नु अनुहा है।
पाल्य:--जे बड़े राय के हथियार बार में है महर्षि लेाग रमही को दे रहे है ( लेबके :
विग्रह जन हित सदले प्रमाण दृश्यार :
ब्रह्मतेज रूह बनवल हो। अमेय अपार शूर्प:--मानुग्द ही तो है तो कौन चिन्ता है। माल्या-वेटो ऐसी बात न कही।
लेा ऊपो नरोह यद्यपि तास अद्धत रूप है। सो मनुज किमि सुरवृन्दावत जासुसुजस अनूप सुर मुनिन समलहि शक्ति अद्धत वस्तु साधारन ले वरदानसमय विरचि र हम मन पयो॥
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2.जानकार अर्थसाहन दह र शाहि सारे विचार गर्व:- मा. ले र बन के के मिनी में
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करि नाम रिा ब्रह्मा न पर बनाई
क्यों मान इनानि बिन लिचिरलाई ! यह को हो सकता है,
मामाचिनिइनस कत्रा सा नाँगी व राहिलेदेत जलमबह बासन Are is पर की वृद्धि पाइतियानि अपनी यह हानी। महै कही जगनाथ किमि राजन मभिमान ।।
तो:-जिसे आपने लनेका लेके परशुराम जी के पास भेजा था वह यह ताइपत्र लाया है !
माल्य:- उठाकर पढ़ना है)
बस्ति लंकाराज्यासाय श्री मालपवान का लीः परशुराम ने महेन्द्र द्वीप से"
शूर्पक--अरे यह तो प्रभु की नाई लिखते हैं।
मालय-पड़ता है। महाराजाधिराज कश्वर का अभि. लन्दन पूर्वक प्रा विदित हो कि हमने दण्डकारस्यावासी तपखिधों को अभर किया है । में हमने सुना है कि विराध दनु आदि कई राक्षस वहाँ फिरते हैं। उनके मना करके इमाग हित मौर, महादेव की प्रीति स्थिर राक्षप
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२०
प्राचीन कविला
विक्रम के बड़े नत्र फान अ
नाही तो यह तो
कल है मुति दिन तुम्हारइति" केला की हुई है।
मात्यदेवी
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बाइस से कहने की और बात है परशुराम जी है न जब जोग विद्या बीर्थ जति विज नहं भाषिकै । हो सो पैक मिल्ट र शान्ति विचारिकै ॥ विशतिलक मित्र से इमलन है। करु कष्टुं कान शिवारि है निठुर के हम लन क है । ( सेवा है)
सधै न शंकरशिष्य है से तिगुरु । प्रिय हमार है सुबह से जूही दो संग
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है। तो कोई जो हमारा भला हो हैं । जो कमियों का नाशकरनेवाला जो तो बिना उसे नारे उसका कोध क्यों शान्त होना । यस रान मारा गया और हमारा काम सिद्ध हो गया। जी राजकुमार जीते तो वह महर्षि को कैसे मारेगा ! परशुराम की मुक्ति हुई तो चला भी जैन से हर लेगा। यह और भी बुरा है। शूर्य:- कैले,
माल्य० - जामदग्न्य तो जङ्गल का रहने वाला है, वह जो रामचन्द्र को मारे तो फिर वह वैसाही रहा। और जो राजपुत्र उसे बहुत प्रसन्न करके उत्साहयक्ति से उसे जीने तो सब उसे विजयी कहेंगे। उसी लमय देवता लोग उसकी अधिकार दे देंगे। क्योंकि असुरजीतनेवालों का अपमान के साथ सदा कोच लगा दी रहता है
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मधि दसकंधर बात नही कोरति जग जाई । क्षत्रियत्रास मरम कोन्ह इनि व्यञ्जन सोई
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मृतिका
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सो अव जनसहित पा सर्प तो बार उसे है।
शुक सूर्य और यह के फोन से है
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तो पीकर कुरान की हि
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श्री ऋष खलो शिथिमा जाने के लिये को होप
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ऋतिक सुजन महामर नाट पर गंभीर सकल सुखद जनुष्य की राख वीर कति वीर प्रति विशुद्ध जल मिस प्रमुख प्ररताप
दरसन बचत तेज बस निकास पा कर ले जाते हैं ;
| दोनों
इति ।
दुखमा प
1 पहिला स्थान--- जनकपुर राजमविलें श्री
एक कमर
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(परदे के पीछे ) हे ओ विदेहराज के दाम वासिय चन्द्र कन्या के महल में घुसा बैठा है, उससे जाके कहो तो जोति त्रिलोक जो गर्वित होय महल समेत पहार उठावा | से घर को अभिमान से खेल से न सह नावा ऐसहुँ हैहय के म नरेस की कोपि जो पारि विराया | काटि के डार से बाहु हजार के पेड के ठूंठ समान धनाचा ॥*
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बनारकलामामा
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अब है रिकेपा अधारा
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हे वे बिन शुद्ध भुके शिष्य प्रधान मला तिलौमायके के पनन लिन
बखन लाहि, हाँ जामुन्यानो
इलन भारी सोहि हवन बरजन लापी॥ माता-री ललिया यह क्या हुआ समिर-कुवरजी भापो मन ।
राम-देखो इन उनसे मिलने की बाइबड़ी है। रोकना अच्छा नहीं लगता किलो के उत्साह को रोकना न चाहिये।
सलिया-हार परसुराल का तो हम लोगों ने सुना है कि उसने शार बार संसार में धूम के ऋत्रियों का नास करके अपना লীস্থ পুৰক্ৰিয ??
राम--- एक काम ने उनका महातम का हो सकता है
निज बाहुबल नजीति हैहयनाथ आदिहि जस लिया। पुनि भूमि वार इकीस माह यह लोक विननिय कियो। ह्यनेबद्वार लनेत महि निज गुरू कश्यप केा दई । महि सिन्यु समता करन हेत हटाय जल अमन लई ।
परदे के पोछे ) तजि धीर दुख सन जाल बद सद द्वारपाल निहारही। जेहिं ओर चितवन रकत सूखत देह बदन विगारही। परिवार हा हा करत सब चहुँ ओर सन चिल्लात हैं। किये क्रोध भृगुपति हाय
मीतर जात है।
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रोज कुरई की गई। लीत:-- प्रार्थनाई है हो अन्दा लिने ।
(चमतो है र स्थानश्रीसंभाजी के स्ल इस क्रम
आगे पीछे नत और जस्लिम बानी है। सखियां देखिए कुबरी, कुमारोजो अब हुई मानही है।
- प्रेम और दया लौट के , देखिये यह बहुत बड़ाई है लोग समझाइये।
भारया--सरी नुम नो लदा ज हमसे कहती धा कि कुँ जी र असुर जोतने की सामर्थ रखते है. इन में तीन तक के मंगल करदेशले जथ के लक्षण है, तो तुम्हारा मुंह हिल जाता था। अब जय करने जाने हैं तो क्यों होती हो।
सीत...हाय, यह सब कवियों का नाश करने वाला रसराम है।
रामप्यारी तुम मुख ले लौट जात्रो ! सुन्दरता नियोरि अने जनुमंतु मधूक केल के रंगार। सालो बाद से नि शॉप' विमा नुम्हरे सब अंधार होत ले डलासरे होऊ कदुक से उसरे उ संगा। भूटीही झाल लो मोरो जिया तब टूटे नहीं निलो के रंग परदे के पीछे । ह ह वासयो प्रशरथ का मटका कहाँ है।
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सखिहाया इ मारने हैं।
TE TEE र कार के करके ही बोल्ट का “ ; ཨ ཁཾ་ཀེ ལྷ་ཀཱཡ་ ཨུ ཨུལུ་ ཨཱ་ལེ་ཚ ཛི ༔ - अ . ! मनु- पकार के प्रार्यधुक जान
, शादी। सधियी सलीम छोड़ दी।
---ा है. स्नेह तो जीते लेता है काश) लोहा
हा
(परई के कोई वाह वालियों इत्याधिकिर पड़ता है। सीता गुन्हें हम जोर लेकर राम-हाय हाम। तपको बम की सिकोच की उस आवत ! बरसान हर्ष मोहि तेहि ओर बढ़ाजत । होकत है इत माहि किये वेतन जनु भन्दा !
हरिचन्दन लम लगत अंग सिमपरस्सअनदा | বিলা-ই অঃ দাখিী ? দু দু মা, স্ত্র की जाति सा चमकता परसा लिए है, आग की लव की तरह ऊपर जा लपेटे है. भारी टांगों को चढ़ा बढ़ा कर ऐसा चलता है मानों धरती धबड़ाई जाती है । यह तो आ पहुचा। राम---निनुबन के इक डोर यही गुपति मुनिराई।
दरलत अमित महात्म तेज लाहलसमझाई । बलत मन मिति एक सप तप तेज प्रखंडा !
भयः सिमिटि एक पिच बोररल सन प्रचंडा॥ ६ अचरज ले ) पावन बेद म अनशामा!
कीन्हें जरात भयंकर मामा घोर मंड गुन सूति माहीं। वेद सरिस लवाहों ।
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साफ महिमाला
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नजर विना बलुप हा
सुन मानिनन्द लोई निन तंज पनि जोब असिमान जनावर। जगप्रसिद्ध करि रोष सोमुनि मोहि टेरस प्रावत ये सिने अनुदान न काम करने को
न है भो हाथ बहन हिल पटि चाल
परदे के दाड अरे हाम्लो, दशरथ का लड़का राम पर जो हम यह हैं । इधर प्राए ।
परशुराम पाते हैं। g:-शाह, राजकुमार तू पूरा इन्माकुवंशी है ।।
नोहितन धन हेतुनाव हुदायत । मान्ने क्षत्रिय तेज हमाचल पात्रत। निजहि मन्तजपाट सिंह नानज्यों डा।
जो गिरिजाभवन सम नखन बिदार सखिया--लगवान कुसल कर यह क्या कहते है। पशु: आप ही आप राजकुमार तो बड़ा सुन्दर निर हिलत पाँवसिखंत्रमंडल नवल सुघड़ शरीर है। माश्रियन सहज जनु नसत रुचिर भोर है मनोहना बहु निरखत विश्वलोचन चार है। तेहिमारियेच अननिहा! यह बोरस कडोर है। का सके नहीं जगवीर भाजुलों जो धनु तोरी।
ला के इरत कोध बांह प्रेरी अब मोरी। अपर कहि लोक गहत जेहि शिवहि चूकार। सो यह परशु कठोर कठ पर तब फसि मारे ।
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राम-- बड़े मान और कौनकले हैज में, म १ अहो पर है जिसे हमें हमारे མ... ཡུ་ཀེ= ཝ་ལེ་ ག 《 སྒོ ལ མ ཀ མཱ་ ཝ
बखिया कुमारी देवी को जन - ATTE हुआ है १२.पनी यो
हार भी रीति के ईसी मर है ।
लोत:- अक्षर से परामद है, प - आप आप बड़ा है वह नीबादी
रता लाथ ही है। समाश बान, हाँ यह वही रा है .
सखिया--कुछ तो श्रीरे हुवे । पशु-नत मजल माहारा
अब जीन्यों मन सहित कुमार हाय प्रलल हादः डर लीन्हा :
दक यह परशु मोहिं शुरु होन्हः । राम-- आप ही आप इतने पर भी यह कहते हैं. बड़ा गई इनको है (प्रकाश) इसीले नो महमानी तीनों लोकमैं तुम्हारी बीरता प्रसिद्ध है.
जेहि सन डिना मानाना। खंडपरशु कहि लय जम जान लहि साइनाररिपुहि हाई ।
परशुराम पद तुम पाई। क्योंकि-उत्पत्ति है जननि सन शुरु चंडपति भगवान है।
बल तेज के ऋहि सकत कर्दन बिदित सकल जहान हैं ? महि दोन्हि सात समुद्र बेरी, जानि मानियन को है सत्य लौकिक कम गुन ८ लतित्रानेधन को .
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साबीन पावक प्रशियाला
यि कुरामा करना रहे हैं। रामोशा भात. दिन सुलन बस अभिराम । मेरे लिये सोहि लेकिन शेति होति विसेषि ॥ कुपने किए जहाँ उशन महारा । तेहि शर मारि कुमारा ।
मी जर तु वीर कि पुलकित । सावन नहीं कहीं चांबी तित
सखियाँ कुमारी जो देखो तो कुरजी कैसे तेजकारी हैं तुम की मदा हो सकती हो।
सीता-" कालू कर के सांस लेती है ।
-महात्मा जी पेंट तो जिन के लिये आप आये हैं उनके विरुद्ध है।
कवियों-कुर जी का विलय घोरता के साथ कैसा अच्छा बनता है.
परशु
आप ही आप ) अरे यह क्षत्रिय का लड़का कैसा सुजन है। अपने और पराये गुणों को कैसा लगता है और उन का कैसा भाइर करता है । विनय इतना बढ़ा हुआ है कि उस के आने अहंकार द्विप सा गया है।
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ना अचरज है
यदपि न मोहिं लौकिक नर मानत | मेरे सुन खरित्र सब जानत ॥ न बोलत निघरक तजि मासा | यदपि बिनय मन करत प्रकासा ||
हे कौन यह बालक बोरा । कुन महिमालन रच्यो शोरा | त्रिभुवन प्रभव देव के काजा । यहि को देह लेखिय सब साजा ॥ नाम विनय बल धर्म समेता । प्रिय सात्विक युन तेत्र निकेता |
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मोहनहितहरि कन उन सात ! बेटे कोषि देकि उनकी शिसे वक दिवाका । के जो यह कोई दुःख पाद:
है कि
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जान
पशु-त्रीच्या कलिन
यह तरल का रहे हैं
इन पहल
के परि सेकंड पर हाय राम-महुकार की बड़ी या जग रहा है
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पशु-रे यह तो पर भी नाक चढ़ता है। घरे निय के सभी का है और तेरी गई वह है इसी से हम का बड़ा तरल लगता है ।
सब जाने थाई लोक महं गायें रवि राव गाथ | परशुराम मित्र नाथ को काव्य दिर निज हाथ !! और तुम मेरे मूह
क्षत्रिय की जाति को विरोध मानि गर्न का पेट रूम काटि डंड aण्ड करि डारे हैं। राजन के बंसल इस कार के र देश कडे मोर भूमि हरि हरि नारे हैं ।। वैरिन के लोह के उड़ा में भरि afरकै कुमाये मज कोध के अंगारे है। एक ही को न पिताहि दीन्ह कौन भूप
जानत सुभाव और न चरित्र हमारे है ||
राम- निर्दयी हो के सारता तो पुरुष का दोष है उसमें कौन डींग मारने की बात है।
परशुराम मरे चत्रिय के लक्ष्ये तू बहुत पकता है ।
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करि प्रहार टुमदार को
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वामद - वो हर इक भी की मानः पुर अनु हो ।
ཡབའཁཀྑ – -ཆབ 'ཚུདྡྷཾ མནཾ པཎ; g, ཚེ ལྷུ་ पता: विशेष कर तुम्हारे दर्शन से और.
p? % ས་སྨྱུ་ གྷཱ ནྟིཡ རྩིས མཱི་ཀཱི ཨཱཉྩy , ge- གལ पशु-पुरोहित जी, वेदराठी, भरलेवाला, यावलकर का शिष्य बड़ा नामानुल सुना जाता है। पर हम अतिथि लत्कार नहीं मानते, हम पाहुने नहीं। शान्ता ----पैति कुमारी के मन्दिर में तुम ऋष्ट किया गृहधर्म मा.
परशुभ-हम तो धनलाली ब्राह्मण है हम महाबाओं के घर की रीति अया जाने । ।
- आम्ही आप ) जिलने संसार को दान कर दिया। उसे राजाओं से गई जनाना केला असा लगता है। जनकाकत है हमारे केहि कारन छेड़त हो रघुवंशकुमार।
कंचुको माना है) कंचुको-कंचन छोरन रानि मिली वर जिये नाथन लाइव बारा :
उनक और शता--भैया राममन्द्र तुम्है तुम्हाली लास जुला रही है. जानो।
राम---महात्मा परशुराम जी देखिये बड़े की बात यह हैं।
पर कुछ योग नहीं है! लोकरीति कर दो। जायो सातु में हो आओपर वनवासी नारों में बहुत देर तक नहीं ठहरते इस से हम जाना चाहते हैं बिनम्व न करना
म. २
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प्रवीनन क विमाना
श्रम
-बहुत अच्छा।
{न्ध आता है }
सुमंत्र--षि और विमित्र जो चाय लोगों को परशुराम जो समेत बुला रहे हैं।
और सब
महात्मा कहाँ है ?
सुमन्त्र-साराज दशरथ के डेरे में
}
राम--दों को थाना से मुझे जाना पड़ता है ।
सब-चलो वहीं
दति ।
{ सब बाहर जाते है ।
तीसरा जङ्ग
1 स्थान -- जनकपुर महाराज दशरथ का डेरा
विशिष्ट, विश्वामित्र, परशुराह, जनक और शता लाते हैं। वनि और विश्वाः --परशुराम,
पूर्व लो शत्रु तसा प्रसिद्ध जु इन्द्र मिश्र पियारे । राज जो यहि लोक के बीच सुरेश समान कासमें सारे । आगे रहें हम से जन जासु विश्व में है मनु से पधारे। बृह नरेस करें पुत्र के मोह से मां से कर जोरि तुम्हारे || जो इस व्यर्थ गड़े को छोड़ो ।
रखा जाय मधुपर्क और घी में पार्क अन । सोतीमाये तिघर कर हम सवन प्रस ||
परशु० --जो आप लोग कहते हैं उसमें मुझे इतना ही कहना है कि मा करने में बार व नाता जो राम ऐसा बोर न होता । आप देखें तो,
हैं
बालक राम, है प्रविदित कर्म दिe । पुनि परशु घर कमौन साध्यो हानि पर सन पाइकै
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महावीरचरितमा
कम हुन्छ हुआ है।
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नह जाति जिय के गुरु वलय वान क्यों हो । हम यह कबीर कोड पर सन परिभव हो । जो जन अल हुइल फिरत कामत है सब रेल !
छोर
मिले जो तेहि चंजोग कहत फिरत एक एक न
कह निन्दा के स मोग कम सं हि कलाकार जनमसर इस आपका
प्रकाशमान
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लिये पिराम जी तुम कोषिय हो, तुम को पवित्र लय पर चलना चाहिये। तुम दासी तपस्वी हो तुम को चाहिये कि मैत्री करण और ऐसी ही जो माना है उनकी बात डाली जिम से दिए शुद्ध है जय और मायमान हो, शोक ले रहित हो सुख पावे और परशु को एक हो जय वित्त शुद्ध हो जाता है तो शुभ नाम ज्योति का ज्ञान हो जाता है जिल में फिर किलो प्रकार का विषय बिस में नहीं आता और जिल से प्रकरण में पूरी की है। ब्राह्मण को यहो करना चाहिये। इसी से पप और मृत्यु के परे हो जाता है। तुम तो भी कर रहे हो। देखो तो,
समाजाती
को कत. युधाजित बुढा राजा । लोप राह सहित निज मंकि समाजा जनक करत मित्र यह पड़े अमिष तारे याचक है यहि समय राम में बाऊ तुम्हारे ॥ परशु - ठीक है । परन्तु
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कैसे देखी जायके दिन खारि गुरुदेव त्रैलोकपति गुलिया ॥ विश्वार - जो तुम की शुरु का इतना विवाद है नो जो दम क्योंकि
कहते है
नृत्य प्रसिद्ध औ मंदिर में विधि सन ऋषि तीन ।
तुम मृगुवंशि वसिष्ट यह यह गिरस प्रवीन 7
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प्राचीन नाटक मणिमाला घर--करिहै। यश्चित मैं कति नमाम तुम्हार ।
न धर्म निगिहि नि हाय हश्चार और मी--- मुखिहु सल मित्र जर जल डाला
राखब निज जन सर लिन माना। तुम लव अन्धु, वाँह यह मारी।
अहं मुकरी समर मह डोरी विवा- प्रारही भाषा
पद पद महिना कनि प्रमर परशुराम की बात।
चिन उपजाबत मार हिर नित वेधत बात परशुभ-सुने नहाना कौशिक्षजी,
गुरु वलिष्ट नित ब्रह्म में रहे लगाये ध्यान । बीरन के कुल धर्म में तुमही गुरू प्रधान । सुगु के उत्तम बल में लहो जन्म जग जोय।
सो कर लोन्ही शस्त्र तेहि इह उचित का होय वसिष्ठ-( पाप हो आप)
है स्वभाव सन यह असर गुना सन यदपि महान।
महिमा लहि मर्याद तजि, जगत करै अभिमान विश्वास-भैया हम यह कहते हैं ।
तुम एक के पास से तजि धोरमति चित, कोपि के। बिन काज त्रिय जाति मारी व्यर्थ ही प्रण रोपि है। द्विन बीज के छत्रि इकाइस धार जग सबछानि के।
संहारि रोक्यो कोच पुनि मुनि य बन कहने मानि कै परशुरु-पिता के अध से जो नियों के मारने का बड़ा काम मिला था डल्ले तो मैं छोड़ बैठा इस में क्या कहना है।
बजखंड के सरिस परहा यद्यपि अति प्यारा! पम्यो छत्रवध छाडि इंधनै रा।
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महाकारवारतभावः
वह सरिस कोड बिना अति चीन चानः । आणि रवि भयो तो वसाना बीते कि तुम वानी ।
रुको
परशु श्री को आणि इवानी || फिरि वन लरिय विमाकि जन क्रियत बाड़ा,
सरोज
राम का लिए काटने का एक और को कार है। अब तो.
यह बालक कीन्हेति च
।
काटि वायु सिर में हीं वन || रघुनिमिकुलराजा ।
रहे फिरि न कह कर
काजा ||
शता- किस की इतनी सामर्थ्य है जो हमारे प्यारे यजनाम राजर्षि विदेहराज की परकाई भी लाँघ सके । दामाद के इना
दूसरी बात है,
चहि घर के आचरन मिल रहे धर्महिलागि । बहुदिन से तहँ रहन ज्यों गार्धपत्य की अ॥ सो बैरी के हाथ सों जो पावै अपमान ।
हम कि ब्रह्मण्य धिक् धिक अंगिर सन्तान | विश्वा -- वाह, भैया गौतम, वाह, राजा सी तुम ऐसा पुरोहित पाके धन्य है !
निवत्र होइन नहीं डि राज्ञ नहिँ तासु । दिन तप वल रक्षा करत तुम पंडित द्विन जासु ॥
परशु - आज गौतम तुम्हारे ऐसे कितने क्षत्रियों के पुरोहित ब्रह्मतेज से कुड़े थे। पर संसारिक तेज तो अलौकिक तेज के सामने वुझ से जाते हैं ।
शता०-( कोष से ) अरे बैल, निरपराध क्षत्रियों का वंश नास करनेवाले, महापापी बुरी चेष्टावाले नीच काम करनेवाले,
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प्राचीन नाटक मरिमाल"
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बेबिन ललकाले पानक पतित, घरे बोड़े, तू हम के भी चिल्लतः देता है।
अपने का आलम कहता है। माह के बाहरण का काम
काउच मातलीलबासन के युनिलियो।
यज्ञ करत नवनोद, हनन्द प्राइल सरि पर क्यों जयः लगाने वाले दुध चत्रियों पुरोहित, क्यों के प्रहित्या के पूत ही काम हैं । शतार नीच मल के कलंक जमा करें गुरु और माया अधिक सिल पाहि ।
तानन्द यदि अचान के बना कर माहि ।। इतना कहकर कडज लेनी हार लेता है । वसिष्म रे कई है साई. ननाओ, नाबारे । र यह तो पचे नेहीकी अनु को बाई कोको माले शतानन्द का ब्रह्मतेज
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शान्ता -- जल्दी से शाप के लिये यादी लेके देखें भापती
तुमहि धन चाहत यह पापी । तेहि हि करिक्रोध लापी। कसै वायु सँग नहुँ साना :
बल सहि छान समान परदे के पोछ। यह प्राकमा करते हैं, हम कीजिये। T4 की तपस्या का प्रवल तेज रेसे पर नहीं पड़ना चाहिये जो पप के घर आया है।
लगा बन्धु बाम्हन गुनी पाया है तब गेह । ताहि विनासल चहत तमकौन धर्म का एह: काड़े जो मर्याद निज लहे शास्त्र मह बोध ।
छत्री ताहि सुधारिहै, आप करिय जानि क्रोध वसिष्ट (शाप का पानी गिरा कर मैया शतानन्द देखो
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불화
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तो सुनो।
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महाबारचरितया
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मी महाराज द का कहते हैं और यह भी
हे मंगल प
करो शांति ि लाभवेद के मंत्र वामदेवमुजिहित सब शिम्य
जीवन के कना ।
नऊ
गले लगा के बाहर निकाल देशा
परगुरु देखी ब्रत्रियो का पाता वत्मा कैला गरजना है यह क्या करेगा। अक्षी हे कलराज और विदेहराज के पाले बाम्हन और सात कुपन और दीयों पर रहनेवाले क्षत्री, हमारी बात सुनौ।
तपका के हथियार का जोहि काहि मह हो ।
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समुझे निज निज वैरी प्रत यहि दिन भो कहाँ सेोड़ 8 बिन सोर करि जगत विनय औ राम |
दोड कुल के सब लोग हति स परशु विश्राम
१ परदे के पीछे ) परशुराम. परशुराम तुम बहुत बढ़ते जाने हौं : परशुराम - अरे यह तो हमको वाने का जनक बिगड़ रहे हैं। { जनक श्राता है
परशुः
जनक-मलत सकल विज शत्रुपक्ष चोपन
परमव्रत की ज्योति सांहि नित ध्यान लगाये ॥ वो गृहस्थी माहिं जु कत्रिय तेज ण्डा : प्रगट होय सो वापत कर सन कोदंडा ||
-अजी जनक,
तुम श्रर्मिक प्रति वूढ वहे परनाथ हम 1 बेद पढायो तोहि सूर्यकर शिष्य वध
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'जोन जानि यहि हेत करों आदर मैं तो
तू केह दित भय छांडि कहत भय त्रचन कठोरा ?
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बाग्लडर करे और द समक्ष हाबिरा।।
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केलको केस में सपना दिखावे का कुछ अटो लो का नोटो कोर्ट ने बिना
दरया है। नशरथ-परशुराम नुनो जी ।
जैले यहाँ जलकर धोर। तैले नहि तुम घरत शरीरा तुम अत्र वृथा गरि जनि करडू ।
हम सब करबीरज किमि हर परशु-तो फिर इशरथ- हम छमा न करेंगे।
परशुरु-तुम तो हमें और मालिक की माई तुक रहे हो : चूल गए कि जमदशि के लड़के पाराम जनल से स्वतन्त्र है। दशरथ-इसी ले तो जमा नहीं कर सत्तः ।
तडि मयाद करे जो कर्मा ! तिनहि सुधारच छत्रिय तुम मर्याद लॉषिपद धारे। हम छत्रिय तव दंडन हारे।। हाहु शान्त नतु एक छन माहीं । मिलहि वंड ताहि संशय नाही ! कई जप तप वाहन व्यवहार
कहँ यह ऋत्रिय जोग हश्यार परशुध-हंस के बहुत दिन पर परशुराम के साग खुले जो तुम छत्री उन को सुधारनेवाले मिले।
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I: –="#THỂ TA SẼ TẾT : = = হয় মই ল ছ ক জ ন ল ! বৃহ শুকু কঁ না তা কি যায় ?
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ঃ ত্বা স্ত্রী । * হি , মূল ল শ ম = ? লজ, দুয়া, মা, শিক্ষা-~~~ল লয় অং সাল? না, নাইল কাল ই ২ ট্রি ল ল ।
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মজুফা ঃ মালা । মুক্তি কাল ল ক্লা সাল সা নাহি মাৰি লব ।
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महाबीरचरितमा वाइल भी बह की . छत्रिय नाम है हिय हेरी करीमा त्रिकुनम:
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– ཡ ? – ; ཨ་་་ – g''' – སྔགས་ भवरकर हल न हि सहरको कोटी :
मड़कर अपना पाय यो प्राइन बाला । प्ररूप कान बहरत बलत जाकर बलिर..तसेशो की बन है।
यह है बाशु यह र? . चाहत करन काज प्रति बार। बई मदन पुनि गाई : केहि कारन बना होई . जौ में यहि कार ऋो निहार
है मासुतसंतति द्वारा विश्यावर परशुराम नु समाना कि इन * पानी ब्रह्मबल नही है वैसे ही इनके शस्त्र की शक्ति भी नहीं है । जिन्दत त्रि मो जिम समा हरिके के अनिष्ट हि मह कामरे । देने हैं दुःख हमैं अबतौलहि बोले है नाता नहीच के! जानी। केप की सागि यो दाहिने पर शासन के उजाबः पन्दी हाथ सौ बायें दुहावत है धनु बेनि चेताय कै बाल पुरानी । परा:-सुनो जो विश्वामित्र,
तुम्हरे ब्रह्मतेज जो भारी। होहु जाति बल कै धनुधारी निज तर प्रबल दह। तप तया: अंजे धनुहि पशु यह मेर
(परदे के पछि
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चान नाटकमामामाला महामः किमि का नारा हाथ जोड़ केविना
मालो, दशनुन कति नोकरलो हैहथईस।
जीरा पनुज, ताहि मैं जीती देह मलो दा-सेमा रामचन्द्रमाम अव दमाहामा जन-जो अच्छी बात है इले होने दीजिये।
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मलत्तन को वह हरिहैं जानिधान ।
नुनि वसिष्ठादिकलकल पाहि के मह मलान ।। -निज प्रजापालनधर्मरत जामा विदित सदा रहे।
कारे यज्ञ बेदविधान लित जो पुरुष रविकुलनपलहे। लोई बहाने श्रीराम माजहि जन्म मापन जनु लह्यो ।
सवज्ञ जानत ब्रह्म तासुप्रभाव जो यहि विधि कहो।। परशुराम्रो जीनाजकुमार परशुराम को जोतो (मुसकाके) 'त सका। रेणुका का लडका तुम्हारा काल है, वडा कठिन का जीतना है। अब तो
कटत नियत सीसवलत लोहू की धारा नड़कत शर की प्रबल आगि लब है छनकारा। बजत डोरि धुनि जि कुंज सम लहि ब्रह्मा । कालधोरमुखकाज कर यह मम कोदंडा ॥
(सव बाहर जाते हैं।
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चौथे अहु का विष्कम्भक स्थान--लक्षा, माल्यवान का र]
परदे के पीछे। नो जी सुनो देवताम्रो मंगल मनायो, मनाम्रो
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महावीरचरितारः जय शाश्व के शिष्यवर विश्वामित्र मुनीस: जय जय दिनपतिवसननि ऋध के इस अभय करत जगत को करिन मन्द : सरन देत लोक बह जयति का ?
(घबड़ाए हुए शार्पशखा और माल्यवान नाते हैं। माल्य :-बेटी तुमते देखा देवताओं में कितना एका है कि इन्द्र आदि प्रापा ले बार बन्दीजन बने जाते हैं।
शूर्प-जो आप समझते हैं उससे और कुछ थोड़ा ही हो सक्ता है ! मेरा तो जो कांप रहा है, अब क्या करना चाहिये।
माल्या-करना यह है कि वह जो भरत कीमा रानी कैकेई है उसे राजा ने बहुत दिन हुवे दो वर देने को कहा था । आज कल दशरथ को कुशल छेम पूछने उसकी चेरी मन्थरा अयोध्या से मिथिला लेजी गई है, वह मिथिला के पास पहुंची है। उसके शरीर में तू समा जा और ऐसा कर (कान में कहता है)।
शूर्प-तुम्हें विश्वास है कि वह अभागा मान जायगा।
माल्या-यह भी कहीं हो लक्ता है कि इक्ष्वाकु के कुल में कोई मलमली छोड़ दे, न कि राम जो ऐसा वैरी का जय करने वाला है।
शूर्प-तब क्या होगा।
माल्य०-तब इस योगाचारन्याय से राम को दूर खींच कर राक्षसों के पड़ोस में और विन्ध्याचल के खोहों में जहाँ इन का कुछ जानाहुपा नहीं है, हम लोग इन पर सहज ही चढ़ाई कर लेंगे। दण्डकवन के मुनियों को विराध दनु आदि राक्षस सताने लगेंगे । तब यह हो सकैगा कि राम के साथ राजसी बड़ाई तो कुछ रहेगी नहीं, उस समय छलकर राम का उत्साह मन्द कर देंगे! यह तो तुम जानती ही हो कि रोवरण ले जो सीता को अपनी
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৪ ল ল হিল্প रानी बनाने का मन किया है लेल का नहीं सो उस समय भी हो जाय और बातमी निकल पावैगी। गु लाल के साथ रहने ने मा हो मान्यबतुर भत्र व्यवहार में धीर सो राम समान
म सन्त बोईड जो, बरिय हुन पर ध्यान !! पूर्ण ----मुझे तो दोनों नहीं की जान पाते । एक तो दशरथ * ME दी दूर है, तब हम लोगों के पास आजायगा और दूसरे अनी हम से उस ले और नहीं है नत्र स्त्री के कारन बड़ा कडा बैर हो जायगा।
माल्य ---धरती तो सब मिली ही है। जिसने सुन्दर और उप. सुन्दर लड़कों के लंगो साथियों के रोंडाला और ताड़का कभार उससे बैर होने में ना और चाहिये । एक बात और भी है जिला बाम और रावण का वैर छूट नहीं सका। देखो সুল সুর লীজ হইছি কিন্তু দা । लहि संग होइन साम जो बधि बन्धु शनु हमार है ।
हि देव मानत ईस तेहि धनदान में दीजे महा।
नहिं चले तेहि संग भेद सब इक दंड ही साधन रहा। जब ऐसा ही है तो सीता हरने के लेवाय और क्या कर सके
वली शत्रु को दंड नहिं होजा जनाय । विधि विपि ताकी हानि नित करिबो उचित उपाय ।
हर तासुरी जब नारी। देहे जीव, लाज बस मारी। ক শু শু যষ্টি দলীল।
करि है सन्धि राम दीना और अपमान बस जो खोजिउ पुलस्त्यसलंहार को सो रोकि है महि सिंधु हूँ रवि सरिस तेल अपार को।
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भारतिमाश नाय नेल लखि दे. का नाही; , अति चंड नुरपनि लन निशा के हौं ।
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माल्य घटी र बाहुना है और झती है। इली ले बुम चि की बडाहट ताले है :
ही कटु बीच कयनो इनहि सना। कबहुँ सो हमरे हाय रे दूर पर मई रजाहित नित्य नई नियुक्ति सं
निज लगनाइजेहि कवि कनिदेनलाली सपनि । मैं डरत लार मनाई सो रहत श के निकट यति । कुल्लक दिन रात लोबाही करता है और उसकी चाल भी
ही नहीं है. तो इसका होना न होना बराबर हैं : विभोपा कु कामम लोचता है और इन्ही गुना से लोग उन्ले साहले भी है । खरदूषण अपने कुरन की चाल बद के राजा की सेवा करते हैं। उन्हें कुछ भक्ति तो है नहीं जैसे ब लर के गाय दुहते हैं
ही वह रावन में अन खोचा है : अब काशित साई दिया गया तो वह भी वैसी ही बात लावते सुभाते है जिससे भला न होटेलो र दो घर की तले माता है रान तो बढ़ाई भर करे सब बिगड़ जाय। किसी ने सा कहा है कि जब किसी पर बढ़ाई होती है तो घोड़ा संकट सी उसके लिये पहाड़ हो जाता है और कुछ बनाये नहीं बनता { विसीपरा का दंड देनेही से काम बनेगा भी प्रकाशन हो । बुलेनुले कोई शेप लगा के उसे मार डालोदा चुपके से इसे सरवा डालो। या बन्दीघर में बन्द कर दो या बेल ले निकालो । ? प्रकाश रावलों के बहुत बुर लगेगा । माकि वह उसको मानते है
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४.
प्राचीन माणसाला गुम्न दंड मोजद चतुर लो समम मायने तो रस को बढ़ाई होने पर जाओ विनई गो तो बहुत बुरा होगा !
स्वर आदिक लक नासु सनेही। बिगारहि जो अरिबांधा नही। देल निसात मिति हैं जाई।
खर कर होशिश प्रथम अधाई। उन्सलेही शाम
शुपं देखिये तो पराधीन होना भी कैसी ही है। रान और बरम का शुलक है नरेलीप ऐसा सोच रहे हैं। माल्यासपूतों के ऐसे ही काम होते है। शुर्य मला बिन्दा खरदूपन के विभीपन का कर सकता है। माल्यभरे बह बड़ा आतुर है जन जागा कि बिगाड़ होने ला है तो आपका जायगा हम लोगों के चाहिये कि इस के सा जाने मानो कोई बात ही नहीं है यह डर निरा मूला विचहो का भ्रम है।
बालापन की अहै मिताई। सो मिलि सुग्रीवहिं जाई । इई वालि तहि केह महि जोई।
मुख्यमूक पर निवसत साई। तव वालिने मिलके उपाय का रामले न मिलेगा क्योंकि तब वाली के बुरा लगेगा !
शुर-और जो कहीं बालिका र जनाता देख परशराम का जीतनेवाला उसे भी मातब तो निमीषा और राम का मिलना अनर्थ हो जायगा। मालय-अरे बेटी
हत्यो बालि तिन हम कह मारा। विनसा तब रासकुल सारा
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लाई बलभाहि बचि है :
अर्पों में अन्न भर के
द फिर जो होता है है
माल्य:-श्री अभी जहाँ हनने का है। जय और दस लिद और विश्वामित्र वहीतर यह जान लह हो न जानी। हम भी लंका जाते है !
poto-हाय नाता नुस् म दुःख देना बड़ा है। माल्यः -हा खरपन नुहि हनन पापो से सगा
हाय बिलीयन हि का केस में सामा! हा भैया साल मन्त्र संकट तारे: हा कैति तय पुन मरे बीते दिन शेर ।
दोनों बाहर जाते है। चौधा अड : राहला स्थान--जलकपुर-~~-ए बुली जगह,
( राम और परशुरामाने हैं) TR- हाथ जोड़ के
सेवत ब्रह्मवादि पद जाके। निधि तप नेम ज्ञान विद्या के साइनिजोर मारि यह खेरी ..
उमर नाथ बिना कर जारी য~~~বা মল মা ছিষা ফি ব্ৰান্ধা কি? বাল কী ক্ষপি হল জাৰি ক ? সুম ভfখ কারা? बुद्धि समेत पुरान भी वेद का आन निघान समान अपारा
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प्राचीन नाटक मणिमाला
एक तक बहु दोष से युक्त इस इनको जिन एकहि बारा । म के काज से की प्रोति स तान हो महरोग हमारा ! राम- क्यों नहीं अपराध किया कि हथियार उठाके लड़ाई तक कर डाली ।
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परशु०यही तो तुमको करना उचित था,
अब पानि को दोप केउ मिटैन और उपाय ! राजा चैत्र समान तत्र साधत शस्त्र लगाय ||
राम- मैं आप की बातों का उत्तर नहीं दे सकता । चलिये इवर चलिये ।
परशुः --- कहाँ चलें भैया |
राम- जहाँ पिता और जनक जो है । (दांत तले जोम दबाके) जहाँ महात्मा वसिष्ठ जो और विश्वामित्र जो हैं ।
परशु० -वह तो बड़ा कठिन काम है । पर राजा की ब्राझा तो नहीं सकी। ( दोनों बाहर जाते हैं }
[ दूसरा स्थान -- जनकपुर में एक डेरा ]
( वसिष्ठ, विश्वामित्र और शतानन्द के साथ जनक और दश
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आते हैं। दोनों राजा एक दूसरे को मिलते हैं )
जनक - राजा, बधाई है धन्य है जो आप के मैा रामचन्द्र ऐसे हैं ।
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नित गून लसत न कछु साधारन ॥ नहिं केवल सुख हैत हमारे ! हैं जग दुःखनिचारनहारे ॥
वसिष्ठ - (विश्वामित्र से मिल कर ) भाई कौशिक । यदि हमरि प्रासीत सों चरिन कीन्ह जो राम । हम सब त्रिभुवन हूँ भये तेहि सन पूरनकाम ॥ विश्वा०-- ऐसो महिमा तो बड़े पुण्यों के प्रभाव से होती है। हम इस के लिये कहाँ तक हर्ष कर सके हैं
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महायात्वरित
उपाय—महात्मा कौशिकसी देवी व न कहिये,
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नये जिले ॥ भक्तिन पूजा
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कुलदेह जन भाव व हुजा ॥ के लिए सा
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साँचि ममीला
और
भाऊ ।
तिनही कर यह प्रय जो आप प्रसन्न ऋऋपिऊ ||
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afg-सच है, विश्वामित्र जी ऐसेही हैं ।
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प्रतिश की
प्रति । जहाँ न होत वचन चित की यति || राजन मे तपतेजनिधाना। का जग विश्वामित्र समाता ॥
विश्व बलिष्ठ जो,
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तुम विधित तुम गिरल गुरु विद्यातपखति । जल र सहि भयो सत्य तुम्हारी बानि ॥
रामचन्द्रजी ऐसे हैं तो कीम में अचरज की बात है. रामचन्द्र के पितातो महाराज दशरथ हैं ।
रवित मनु के वंस में भये जे पुण्यतरूप / तुम सन तित उपदेश लहि जग पाल्यो जे भूप ! जासु जगन पावन चरित, तिनकर यह पत्र पाय । वर महिपालमणि राजन गुणसमुदाय ॥ शत्रुदमन के काज इन्द्र जिन जम्म पचारा । सख्तन के जो ईस विश्व जाके बस बात || सेनाजोतनहार सुरघातक रनधोरहि । मला अनेकन बार समर यह नरपति बोरहि ॥
第
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, মন্ত্রীর লাল মিয়া। মুহুল শু : যা ল ছ ট ? = লিশ =? লিপ্ত ললল তা
=া সুললিৰ গুৰু হু ইল? বা আ ক ভ ল ছ ক ত ই । হা ঔ সানি লি ি হু?? ---
শ্রী শ্রী ! ~ি ~-ায় ?
# * ৪র্থ শূন্থী অবনত হল আর সুন্ন হই। লিঙ্গ ল সা ক্ষা । বি সি এত জ্বলল। ছিয়ে সি নিল তাৰ মনাঙ্গল।
{ব? মা হয় জাই ? --মাংস লীল, ২) নি এছু হল লাললি?
লাক্ষী মঙ্গ? নুি মহল ভূৰি ৰহৰ দাল নী হল?~~~-া, গা, জন ।
-- গাৰ নাথ # কা কলা । লজ-~-সন্স, গঙ্গা বহা { ভয় না শুন্য }}
হ-মম অতি সহিঙ্গা ব ও ক । * পঙ্ক! যg জল? ।
राम दीन्ह तो दंड मोहि रह्यो दंड के जोग না বস্তু ম ভ , । ত্র রাহুল बात न मानि बड़ेन की कीन्हों जो बड़ पाप না মন ভাই কি প্রতি অনান মাথ গাহি ম মুসঃ ২ গ জ মান্ধাই। .
সন্ত ব্রিজ সুমষ্টি স্ব স্ব জানা এবং सिष्टभैया तुम्हारा तो श्रोत्रियों के कुल में जन्म हुर
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मह व वरना ལུགཙ《 ཤུ སྨaཔ ཨོཾཡེ, དུ་ { नये रहे हैं, का दुस्सारी
जोज का दिन कारखी।
बहुना हिये न रही। विश्वास हाय दूर कर दिये । धर्म शास्त्र में माइंड भी पान का प्रारचित्त है : महामा बलिष्ट या कहने ।
यापही लोगों ने धर्म रचा है, तो मार के वक्त गंभीर और वावन मोन हों। दश महामा परशुराम जो!
सहज पवित्र शरीर, महि पावन कर काज है ।। पावक तीरथ नीर, शुद्ध और से हो नाहि परशुरु --- धरती माता तू हमें अपनी माद में जाह दे।
जनक-महात्मा जो जो आप प्रसन्न हैं तो इस पवित्र प्रासन पर वैठि कर हमारा घर पवित्र कीजिये।
परशु:-आप राजऋषि और सूर्य के शिष्य याज्ञवालमजी के शिष्य है, श्रार की जो इच्छा है वही किया जायगा।
(लक बैठते है ) दश:-तुम रहन सुनि तप करत तिन निदर पुर नाम
हमलब वृहस्थो में लइत अवकाश नहिं निज काम ते ।। तवचरनपकजइरस कर निज हिय मनोरथ जो रह्यो।
निज धन्य पुण्य प्रभाव हम सोइ आनुवहु दित पर जह्यो ।। पत्र परे बचतगति जानु गुन तिन कर कौन बखान ।
का कोऊ लेहि दै लजम दीन्हो जिन दाम दपलिन को यद्यपि नहीं कटुलेषक कर काज ।
त किंकर सम सुतनमा शानिय माहि मुनिराज परशुल-भाए लोग ऐसे ही योग्य है इसमें का अचरज है।
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प्राचीन नाम नणिमाला
राज का धाम बखान येह को राज हैं
ज्योतिनिध
सोस तो करै केहि भाँति को तालु बर लोक प्रधान्य राज दिन यज्ञ करें जब वेद निघाला । ज्ञान कल तो धर्म में जा गुरु हैं दक्षिष्ट मह रसाध्यो सुरपतिरमित तुम्हारा । हसत सातहूँ द्वीप पर तब जब सारा कीर्ति के खंभ जाए भागीरथ सागर
कह लाँग करें बखान करत तव भूप गुनागर ॥ feng और विश्वामित्र- यह भी सड़के ने सोखा है। परशु०- मैया राम हमें भी माता दो हम बन की उ विश्वा०-ह भी छुट्टी दीजिये ।
निमकरसहित उद्धाहा । देखे लरिकल कर बिवाहा ।
भूगुपतिमदमंजन -! इनना कह कर मूल रहता है ) भृगुपतिविदिततेजश्रीरामहि ।
सुख सन देखि जात निज धामहि ॥
दश० --- भैया रामचन्द्र तुम्हारे गुरु महात्मा विश्वामि ते हैं।
farare (खों में आँसू भर के राम को गले लगा रा भी जो तुम्हें छोड़ने का नहीं चाहता पर क्या करें विज्ञान सन नित प्रति रहत ससे गृहस्थी धर्म । शेकत सकल स्वतन्त्रता अविग्रहकर्म ॥ वलि -बाप का चाना जाना आपही के साधीन है । विश्वा०-- महात्मा जो तुम हम को रोकते हो तो चलो दोनों सिद्धाश्रम की बसें तुम को आगे करके जो हम मधुच्छन्दा को मा बहुत प्रसन्न होगी । afeo
-कार आपका इतना भी अधिकार हमारे ऊपर नहीं
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म. व एख स्वा
विनी होती है
दोनों राजा - जानन है इक एक कर བྷ།ཝཱཏྭཱ ཡ། ཝཙ ཝཱ ཝཱདེ (परदे के पीछे )
उन्कै बले सहदे
रामचन्द्र की वह ऋषि लोनी जानकी,
ནཱ ཁཿ ཝིཝཱ ༐
लोगों को करनी है ।
दाय के लौह विनयमित करत प्रका
जब जब तब पति और हसाको तय त्राला || चत्रियकुलतिरमौरनारि मिथिलेश कुमारी । पूजा मन मनध्याय क नवी तुम्हारी राम- बाप हो आप ) हम तो चाहते है कि यह राक्षसों उनकी जड़ खोदने का पहुंचे।
दोनों ऋषि- आप लोगों के मनोरथ पूरे हों। (लटते है परशु० - महालता लोग जमवृद्धि का लड़का प्रयास करता बलि और विश्वा०-
रहे शान्त तक विश्च तहि पूरन जोतिप्रकास | छोड़ें मन को वृत्ति न संपवितास ( राम और परशुराम को छोड़ लब बाहर जाते हैं ) परशु०- (थोड़ी दूर चलकर ) भैया रामचन्द्र यहाँ तो मा राम - ( पास जाके ) कहिये का आज्ञा है ।
परशु० - धारसों को दण्ड में हवि जय इत्रसमाज | सो यहि अवसर हैं गयो वित कारन वेकाज ॥
परशु का काम ईंधन काटने का है सो रहेगा ।
पावन नदी तीर दंडकवन | रहत करन हित तप जो सुनिगन || विचरत फिरत लङ्क सन आवत । पापी निशिचर विनहि सतावत
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प्राचीन नारक मणियाला
দিন ই ল ঙ্গ গাজী ।
यदि धनु नग अन भयो तुम्हारा ( अनुश देता है)। राष-अनुव लेकर आप को जो आशा परशुल- भाटभर के ) अब लौट जा भैया ।
(बाहर जाता है) राम-आँखों में आंसू सर के महात्मा परशुराम · जो तो त्रले भये । हम भो किलो उपाय ले इंडक बल चले तो अच्छा ! मला हमारे माता पिता यह कैसे हो देंगे जो हमैं इतना मानन हैं।
भगुपति डालो अस्त्र और मैं औरल प्राधान। निशिधर निठुर सताइहैं तपसीजन अति दीन ।
परदे के पीछे ) भेजी भमिली माय की चेरि मन्थरा नाम ।
आई देखन को तुम्हें अवधपुरी ले राम । राम-माता पिता की प्रीति भो कैनी है। ऐसी ही रोति से लड़कों के विछुड़ने का दुख मिटाते हैं ! भैया लक्ष्मण ले आओ।
लक्ष्मण और मन्थरा के भेस में शूर्पणखा पाती है) शूर्प-आप ही आप ) मैं तो शूर्पणखा हूँ मन्थरा के शरीर मै धुली हूँ। समय ता अच्छा है, बलिष्ठ विश्वामित्र भी बले गये है। अरे यही तो परशुराम का जोतने वाला छत्री का लड़का रामचन्द्र है । ( देख के ) अरे इसको सुन्दरताई तो आँखों को रसायन सा सुख देती है मानो सारी सोमा इसी के शरीर में है। अरे इसे देख तो बचपन ही में रांड़ हो जाने से संसार का सुख सब छोड़ दिया और धीरज और मलमली से अपना जी एका कर लिया तो भी मेरा चित कैसा हो रहा है।
राम--(बिनय से } मन्थरा, अम्मा अच्छी हैं। शूप० भैया यदुत अच्छी है भैया तुम्हारी मंझली मा ने बच्चे
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महावीरसरिताका बार मुम्है से गले लगा के म माना जादै हुन दिन हुये महाराज ने दो बर देने के है , लोवेटः नुन हमारी और में , बहनों । यह तुम्हारे पिता के गलचिट्टी है इस में लव निखा है"
"बर एकले न मरत अधिराजपा सरावही" । आयी बड़े दादा के होने कोटेदार के नए राज मांगतो (HET -- ''वर दूसरे बन जाँहिक राम बारामही
आप ही आप हाय मा दादा के: तू बन भेजना कों मांगती है। (प्रकाश)-"तह बास चौदह बरि लगि युनिवेष चोर घरे करें।
सिम लखन ही सगजाय जन परिवार सवर परिहर । (माप ही आप ) हाय पापिनि चंडालिनि,
सदा चारिह माय माय माय तोहि कहत हेर !
ते सब प्राज भुलाय कहा हाय पापिनि किया। राम-वाह कैसी कृपा हुई है।
नहह जान अज्ञा मिली जलगि हिय धरान!
झूटो नाहीं साथ हुमाई मा लंग जात । लक्ष्मण बड़ी बान कि दादा ने अपने साथ रखना भान लिया। राम---मन्थरा हम तैयार है।
शूर्प-संसार भी पूजा के जोग है जहाँ ऐसे ऐसे कल्पवृक्ष होते हैं।
(बाहर जाती है। लक्षा-सामा युधाजित भरत के सय माप पा रहे हैं। राम-तो चलो मिल अच्छी बात है, पर बुरी भी हैं ।
चलत भरत भेटे विला आगे परे न पाय । मेरे दुश्खलो सो दुखी केले देखो जाय ।
( सव बाहर जाते हैं) •
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प्राचीन नारक मणिमाला
सरस महाराज दशरथ का डेरा महाराज दशरथ और जनश बैं हैं सुधाजिन और भरत
चुला -नये महाराजाज के लय राजमली एकमत हो के श्राप के बिल करने हैं ?
पोशाला दामन हारा। कर घोर जो पुत्र गुन्हारा ! अलिजनाथ पासोमा ।
प्रज' हाय सन पूरनलामा । देश-भाई जनकजी :
कहै प्रज्ञा यह करन के निज कल्यान विचार ।
विश्वामित्र अलि नहि जिन कह राम पियार ॥ जनक ऋषि परम सुजान, सुख पैहैं पुनि काज यह ।
__जाना वेदविधान, बामदेव मुनि हैं इहाँ ॥ दशा--जो ऐसा ही है तो फिर यह परशुराम के जीतने का उन्लव अभिषेक का भी उरलय हो जाय।
(राम और लक्ष्मण आते है ) राम-अव यह क्या हो रहा है।
श-नुमंत्र जानी अभिषेक की सामग्री इकट्ठा कशै और जो कोई जो कुछ माँगे उरले जि ना मांगै उतना दो।।
राम-(आगे बढ़ के हाथ जोड़ के ) मैं माँगता हूं। दशाय-भैया मा? किस के लिये? राम-कहे जो दुइ पर देन का सो अत्र मंझिली मात ।
चाहत है, लेहि देइ अब कृपा कीजिये तात॥ दश० --शांचे नित रघुवं नप यहि मैं कौन विचार ।
तुम जदूत तो प्राण हूँ केहि कहें देत पियार ॥ राम-सया पढी तो।
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( स्व पकता है। सद-वाय यह होगा: इश्य बहार !
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राम और लकन-किता जे., जानी उदो। जनक-जाकर
. तिलक सूप की रानी : जल्द जिस गुनखानी ! राम की करें पुनि लोई।
लनुमि माहि अचरज बड़ लोई। T-पिता, सत्य निशा अाप जानिय नुम कई जा राम !
बिनय मानिये मानु कह कोनिय पूरलकाम दशहाय मैं का करू। जनक-हा भैया रामचन्द्र भया लक्ष्मण
कीन्द जो वृद्ध ककुत्स्य नप है पुत्रन का राज!
स्लो बनवास तुहि मिल्यो बालपनहि मह आज टो जानकी दूधन्य है जो बड़ेही के कहने लेनुझे पति के साथ हना है।
देश - हाय बहू तुझे कान पहिनाये हुये हम लोग राशनों को भेंट कर रहे हैं।
दोनों बेजुध होकर गिर पड़ते है ) राम-पिता तो दुश्व में पड़े अब क्या होगा!
लक्ष्मण-दादा करुणा और मोह तो इतना बढ़ गया: अब क्या करें, भरत की माने काला भेजा है कि बेर न लगाना , को अब आप भी माह में न पड़ कर घबड़ाइए।
राम-वाह भैया, बाह, धर्म में पका ऐले हो रहना चाहिये। तुम्हारा मन संसार के लोगों का सा नहीं है बो जाबो भेया जानकी को ले प्रामो।
( लक्ष्मण बाहर जाते हैं) .
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प्राचीन नाटक मणिमाला भरल-मामा जी तुन्हारे घर की यही रीति है। सुधाजे -लैया मेरै तो कुछ समझ में नहीं पाता। परत इत्युमुख नाथ पुत्र द्वै वन कह जाहीं। धात बहू सह दिलमान सरून माहीं 12 होत लोक विन सरन मजल मह भारत पिताकुल ! मेरी वहित के यार करे सार जगन्याकुल !
नारा लीता लमेज लाते हैं) लक्षा-दादा भाभी आई।
राम---अक्षा इधर प्राओ । लन्ना और सीता समेत बाप और ससुर को पैकरमा करते हैं ) मामा जो
सुत समेह घबराय है सबै माय दोऊ तात।
धीरज लिन हि दिवाइये हम लव बन कहें जात ॥ { भरत ले )-नैया पिता को जगात्री।
(सीत बदमरा बराम बाहर जाते हैं) सुधाजित--(धरड़ा कर ) हाय बड़कों को बन में छोड़ दूं।
भरत-(पीछे चलकर) मामा हाय मैं क्या करू। पीछे । दौड़ता है।
(दोनों बाहर जाते हैं) ( चौधा स्थान - एक वन ) ( राम लीना लक्षण और खुधाजित आते हैं) युधानिक-भेरा रामचन्द्र पहरो देखो तुम्हारे पीछे भरत झोडा ओ रहा है।
(भरत आते हैं) राम-यह क्या आ रहे हैं। इन्हीं की तो प्रजा पालने का काम माता पिता ने सौंपा है।
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मर बार
भरततो यह काम बन्न नामका या प्र कार से रान-इसमें मिली कोर के काम है : भरत-हमारी दोघही रहि है। राम-कारे मने जीतेनुघा वाई और मावान की मात्रा
भारत- अमागेको कोई देते हैं।
नुध होकर गिर पड़ता है। युवा या धीरज धरी जापा। करत... सांस लेकर मामा जी मुझे लगा।
युधाक्ष-या वह कहो। (भरत के कान में कहता है । नया रामचन्द्र यह कहते हैं कि शरन जीने को सजा की जडी तुम्हारे लिये भेजी थी उले दे दीजिये।
राम-( उतार कर लो भया ! भरत सिर पर रख कर दादा---- रम-गले लगाकर भैया तुम्है हमारी सौह है लौर जाओ पिता का जगात्रो ! भरत-मैं अव, सिंहासन धरि पादुका नंदिनान कनि वास।
पहिरि चोर महि पालिहों प्रभु लौटन की प्रास (लीना और राम की पैकरमा करता है। लक्ष्मण-दादा भरत लाए प्रणाम करता है। भरत--( गले लगा के आंसू गिराता है) राम-भैया जानो पिता को धीरज धरायो। भरत-हाय वह तो अभी तक नहीं जागे । (वाहर जाते हैं। सुधा--मया रामचन्द्र, ,
धावत है इन सड़ सकल घरकाज बिसारी । उठे तक रोइ विशाल समदुर नर नारी॥ औरै कटुभा नगर थार सम दूग जान बरसत ! मई कोच मगमाधि वृष्टि के दिन सम दरसत :
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प्राचान नाटक मणिमाला रममामा जो लोट जाओ, भरत तुम्ही को लौंपते हैं। युधा-भेया मुझे भी अपने पीछे चलने देर
-~यह आर या कहते हैं आप बड़े हैं कि हमारे पीछे बलने वाले है। मा की माझा है कि तीन ही जने लग जाय।
युधा-हाय कला में अकेला जा रहा हूँ देखो लड़के बूढ़े सब
होम धेनु । निकिते आगे निज कीन्हे । गृहनी छे चलत आगि तिज कर मह लीन्हे । सख के रात्र बटारि कंध पर बाधि उठाये।
वाजय के यज्ञ लहे कर कत्र लगाये।। बम विवउ बयाकुल लाल धन के सँग विहीं । लग्नि घास परट व देह पर निज निज बढ़ावहीं ॥
राम-मामाजी अाए लोगों को चाहिये शिलडको के अधर्म से बचाइये आप हम पर कृपा करके लौट जाइये और इन सब को
पैरों पर पड़ता है) युधाo-मैया उठी उठो । मैं जाता हूँ प्रजा को भी धोखा हूँ।
एविदेहलन्दिनि लती, एसट लखन कुमार । विदा हात पायी, रहे नित ल्यान तुम्हार ।
(रोते हुये लौट के ) अरे युग युग यह पावन चरित गायन नित उठि भार । तरें नारि नर जात के शुटि पाय सन घार ।
(सब बाहर जाते हैं, ( पांच स्थान---जनकपुर महाराज दशज्य का इरा)
{जनक और दशरथ बेहोश पड़े हैं) जनक- जाग कर चारों ओर देख के ) हाय लुर गये
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महाबीरचरितमाया दशरथ-( जाग कर ) भैया रामचन्द्र न जात्रो,
कठिन पीर व्यापै तन नाही! चलें प्रान कछु सूझत नाहीं॥ उतर देहु मोसह सनुकाबहु ।
निज मुख चन्द्र मोहि दिखराबहु ॥ ( पागल की नाई ) हाय मैं अभागी कहाँ जाऊँ। (व्याकुल दशरथ को जनक और भरत उठा ले जाते हैं)
छठा स्थान बना ( राम लक्ष्मण जानको समेत आते हैं ) लक्ष्मण-दादा श्रृंगवेरपुर के राजा निरादपति ने प्रारले बिराध राक्षस के उस देस में रहने की बात कही थी।
राम-चलो बिराध को मारने के लिये प्रयाग के निकट मंदाकिनो के किनारे चित्रकूट पहाड़ पर चलें । उस्ल तीरथ पर बहुत से मुनि रहते हैं। वहां राक्षसों को मार दंडक में हो जनस्थान जायंगे जहाँ गृध्रराज रहते हैं।
(सब वाहर जाते हैं।
पाँचवें अंक का विष्कम्भक
स्थान –पञ्चवटी
(सम्पाति प्राता है) संपाति-हो न हो आज भैया जटायु हम से मिलने को मलयागिरि के खोह के घर में आता है। उसो से
खोलैं दिलान समेटत बार पलारि अकास छिपावत हैं। मेघन सों बरसावत नोर छुटी बिजुरीहि हिलावत हैं। टूटत शैल प्रहार चहूँ दिलि पाथरखंड उड़ावत हैं। श्येनी के पुत्र जटायु को पागम होलत पङ्कजनावत हैं ।।
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प्राचीन नाटक मणिमाला नागे प्रचंड बचारि तरंग उडै भड़कै जल्न बाढ़त ज्वाला। छेदन बायु के बेग ले जाय हिलाय दयो धुनि ज्यापि पताला॥ विश्व सँभारे जो आदिवराह भयो तिनके मुख शब्द कराला। गर्जत है सोइ मेघ समान लागे जब लेक सहारनकाला।
(जटायु प्राता है) जटा०-कावेरो जेहि चहुंदिसि घेरे ।
उतरौं शिखर मलयगिरि केरे ॥ तहाँ बलत खगपति बड़भाई । लगे पड गिरिवर को नाई ॥ मेरेहु उड़े थकावट लागत । मेरे पड उद्यम निज त्यागत ॥ प्रवल काल की शक्ति, बुढ़ाई।
शक्ति सकल तन केरि नसाई॥ यह तो मन्वन्तर के पुराने बड़े भाई धराज सम्पाति हैं। भाई की प्रीति भी कैली है।
दूर उड़न का खेल करत एक युग मह ागे। पहुंचि गयों रविपाल जरन तब मो पख लागे। महिं बालक तब जानि भपटिनिज पख फैलावा।
कीन्ह दया लम्पाति भ्रात तब मोहि बचावा !! ( आगे बढ़ के) भाई काश्यप। जटायु प्रणाम करता है। सम्पाति-पात्रो भया।
तोहि गीधन अधिराज लहि धन्य हमारी माय ।
बिनता ज्यों दादी रही गरुड़ सरिस सुत पाय ॥ (गले लगा के) भैया जटायु भला बहुत दिन बीतने से रामचन्द्र जी को जो बाप के मरने का सोक हुआ था वह कुछ घटा?
जटायु-मन स्वभाव से धीर अति मुनिगन को सतसङ्ग ।
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ནip' ཡག ལ ཤེལ་ – ཨ ཡུས་ཚེསྒྱུརྩེདཾ ཀཱ དི ཊཾབུ - ཨཱ་༔ ཅ།,
ཡུལྕཔ* སྒྱུ? མ ཛཱི ཧ ཨཱཙ སྤྲུལ་
ལྷ་ ༢༤ཚུ་ བས་ ེ ་ མཚུ་ ཡ ཞུ g''ལ་བ་ བ
*iའི ཀླུན་ཚུ་ '' – སྡེggའ པི ཙལ: སྩ་གསཱཙྪདེss ༔ , ནོ ཝེཊཙི * | རཱཛཱཡོ སྶ ཨ་ पंचवटी में रहते है।
ཝ་ཤུ་ ལཱི ཨཱ ཙེ ཚེ ཀུ་ཤ་ པཉྩ * རྒྱུ་ Tên: Hai gã 376 3: đá: K/H | E cạỂ ཝིཏྟཾ ཀཱ ཨཱཚུ* – རྒྱུང ཚེ ་་ རྒྱུ་ ཞུ་ཡེ
གྷཞུསྭཱ་ ཏཱཡཱ ཨུ ཨུཙྪལ་ བྷ ''་སུ་ཡུམས་པས་ གཡུའུ རྒྱུ རྒྱུ p: ཏེ་ ཤུ ཝཙའི ཝུ རྫ་ཙཱ– ཨུ་
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प्राचीन नाटक मणिमाला
हा शिव हुआ । मैं इस से बहुत बड़ाता हूँ | भैया क सीता और राम कम का छन् भर भी न छोड़ना । सगी बहन की होत मनुजहाथन सन तह गति । बंधु के नाल सबै कैले निरपति
रहें निकट महसंघ त्रु कल कल अधिकारी / लकिन की है सावधान करिये रखवारी || जो समुद्र की तौर पर निकर्म कर के काननेवाले ( बाहर जाता है )
ॐ जपणे ।
जटायु-( उड़के)
सिमित लावत व्रलय बतासा ।
धावत सुरत मनहुँ काला ॥ प्रलय शैल सन चति पहुंच्यो तह । मिनिट लगे हरे धन जन जह ||
नाम पहाड़ जनस्थान के ara में है जिस का
देखो यह प्रन्त्र नीला रंग बार बार पानी के बरतने से मैला सा हो गया है और जिस की कन्दरा घने पेड़ों के अच्छे बनों के किनारे गोदावरी के हजोरों से गूँज रही है । ( देख के )
गये दूरि मृगसँग रघुनन्दन ।
सोर दिल जात लखन व्याकुलमन || जोगी गया कुटी मह कोई हाय हाय राधन यह होई ||
हा बड़ा अनर्थ हो गया ।
जोते लहस पिशाबमुख खच्चर निलिवराय | र सोहि बैठाय के यह पाप कह जाय || रावन ! रावन !
जो सृष्टि के लयकाल मुनिवर वेद की रक्षा करी । तुम होय तिन के वंस मई करि ओतत मनतम ह
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Trum
བ་ r 'ཨེ་ཙྪཱ gs कह जिन लोशनीजनहार की रक्षकोई : हनिलकदक.कारन अनुमति में नई पह ने मामला नही. अरे की राजन बड़ा रह. ཚ འི་ ལ པྤབྦེ ཚེ དོམཤྩ བྷཱུ ཙཱམ་ = ས་ཛེr* निजी और रेरिनहि नोचिनिनारिक तन र बहा तारा रे मन्त्री नव हाइन अंगस बिलगाई। जि औलर बाइके बाहै येनी को मनाई।
बाहर जाना है।
Funny
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पन्
पाँचवा प्रह न्यान-इण्डक क
लनमा भाता है। दमण---भभी कहाँ हो । हाय भारीच ने नाई के मा श्रख दिया।
हप धरे यह भोध के चलत शोक की आखि।
दुखलन भरत देहदुख वाल हिये मह लागि और अटा नरिमन कुटिल देखि करिये अनुमाना।
दबी श्रीर बल देहगेह मह कापसाला । उठतम ज्यों लिधुमध्य प्रधान बड़वानल। हिपो बज चोंबीच लसत बिजुरी जिलि बादल !!
(राम पाते हैं) अपमान कील समान हिय मह गड़त मन धीरज हरे । मन शिलाज मलानि घोर अँधे मह यहिछन पर !! पिनुमित्र की वह विपति चेतत दुख सन सत्र तन धरै ।
दुनि हाय दला विचारि लिय की वित्त नहिं धीरज धी स्वचमष दादा तुम तो ऐने काम करते हो जेा संसार में कोई . कर सकता हो नहीं, अब विपचि में धीरज छोटे देते हो
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प्राचीन नाटक महिलाला
रामसेवा राम ने जो किया संसार के ऊपरही काम जिन भुजबल दीन्हा।
तीन लोक
यह महि मैं अपना आसिन कर कीन्हा ॥ बच्चो रहो हो योध होत हूँ लोकहा। मेरे कारन साज सेऊ परलोक सिधारा ॥
हाय कि जो फिर तुम ऐसे लोग कहाँ मिलेंगे हे पवत थे ।
तुम
लज्न- हाय मुझे भरते समय उनकी बात यात्र माती वन वन होइत फिरत है। जेहि तुम जड़ी समान । रावन दूतौही हरे से सीता मे। प्रान ॥
तना कह कर बेवारे परलोक को सिधारे ।
राम-मैया, इन बातों के कहने से छाती फटती है। समय- तो यही करना है जिस से उस पापी योनि ।
राम-हा का हो सका है जो इतनी बड़ी आपत् का सकें।
मेरे मन पहिलेहि रह्यो रात्रधनविचार : और कार से श्री तिनकर जोग संचार || केवल रावन के हने नहि कोधाशि बुझाय : करिहों ताके कर नास और उपाय ! ब भी मैया, समिट होय अति बाद हिये भोत सुनाये जारत बारह बार देह ज्वाला भड़काये ॥ भीतर डोवन पाय ज्वाल बाहर जनु शवै । सिgs बाडव आगि सरिस यह कि जये || लक्ष्मण - बलिये, यह तो दक्षिण की ओर जंगल फैले हु हाँ बड़ाये हुये हिरन के झुण्ड फिर रहे हैं और जहाँ मद गली पशुओं से खोटे मेरे हुये है उसी मोर चलें ।
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मह छारचारना नयान के इधर का
होगों ने
लन -5 से हम लेागों में गिरी को किया का པ ཙེ ཙེ '' པཚུ བུ ི ཀའི 《 ལྟཚེ: ཀླུ་ སྨ༧ बहुत दूर होगया अब तो यह आगे डरावने जंगल हैं और हैं: हो यो दाल कच्छम बन कर बहन है जहाँ बंध रहता है ।
रामजी उल पापी बाई के भर के देखन्दा आहे परदे के पीछे अरे दौड़ोदौड़ो एक शापो राजस कारन में एक श्री के साचे निये जाना है बवानो अरे बचाओ
जबर जाति की लापतो मैं आराम ARE तपबन रहतमग के पानी दम राम समसया लक्ष्मण जानो जाओ। स्तनप्रण -~-मैं अभी जाता है। बाहर जाता है। राम-हा, प्रायशिया तुम है। कहाँ चली बेगि सुनाउ ।
रे भुला दुःख लिज सोउ नहि सुलभ उपाय विना वापरावन बच्यो मेहि कलंक लगाय! मला लोह निज हाँ यह पहिले और बढ़ाय।
मा शवरी और लदमाश आते हैं लक्ष्मी लन निज दौल सो काटिकाटिरा बास
काजा सम मेहिन रस छिन छिन परत जात
कल शोजनाबाहु को देह कुर्ट विलाकि !
दादा सम अति धौरह सकते हैली न रोबिक सबरी जी, दादा व बैठे हैं।
शबरी महाराज की जय हो । राम-हमैं क्यों इंढ़ रही है ?
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खान नाटक मरिमन शबरी- सर परण के माप वार सभी शिजी कारद अपने भाई का कीड़, सुनील मित्र होने व्यक पनि घर विदा लाया है उसने मार विष्ट की है।
चिट्ठी देतो है। लम लेकर यहत्त: है } वस्ति श्री महाराजाधिराज राम
धोने जाकै भर हि ई गति संसार होय धर्म की वृद्धि का धर्मरखधान
अया को इतने बड़े मित्र या प्रसाराज विभी. प्रया का उन्टर रन्द
अदमण-शव आरने उन के परममिज हाशेश्वर कहा तो अब और बडेला क्या होगा ।
सर-दुमने ठीक कहा।। शबरोहन पर बड़ी कृपा हुई ।
लक्ष्मण-श्रमण जी कहिये विभीपा से आपको कुछ सीता जी की भी सुध मिली है।
शवरी-अभी तो नहीं मिली। जब वह पारी राक्षस सीता के लिये जाता था लव यह दुपट्टा शिल पर अनसूया का नाम लिखा है गिर पड़ा था सो इन लोगों ने उठा लिया !
राम-~-हाय प्यारी बन में तूही एक प्यारी संगिनी थी! हाय : MERधरी जी किसने उठाया और क्यों आया!
शवरी-ऋष्यमूक पहाड़ पर रामचन्द्र जी को मानने वाले सुग्रीव विभोपरा और हनुमान जी ने।
रामजी इन महात्माओं को देखना चाहिये । इन की महिमा तो संसार में उजागर है और हम पर विना कारण के इतनी कृपा करते हैं । बह कपड़ा सीता का गिरा है उन्ले भी देवता . 'बाहिये वो ऋज्यमुक हो बलें।
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স্বল্প মালি সস লিনি নিন। মাছ , চালুৰ-চী ইন্দ্র ছ , থঃ স্বাসী ঈ ফুট সুত্বং ঈল জী সল্লী উ গুম কুল” অ ল ন ই ল ক : ক মান জা জব্দষ্ট স্থী ই!
ত্যা শ খান্ট উ নী কল ভরে ধী অা খছি সু ঐ ন ল সুত্র বাম . সুল ঈ ও চন্দ্র সূন্নান প্রায় শুনুন সী গুড়ি খা ।
---হলী কিল ৪ ঞ্জাম পূর্ব ল দ্বী । জামাৰ লাখ ই ইলাঃ জী নি? স্বঃ
-~দুল মছু জিয়া। নলীলা পুঞ্জী ইস্ত ।
বা সখি জল্প নিশ সুনফ সং দূমি । লি = ষ্টার প্লান দল র স া ই । # ল ম ল লিল জুরি এই ক্ষুদ্র না । শ্রষ্ট স্থায় রুনুল ৪ ক্লাঃ গু নিজৰ লন কী ? | { সুভ ৰা ই ক ম জালাই।
~~ খ গীৰ দাল চা স} আমি গু ল র স দা লা লা बज गे पिल सिर भयों छुटे माज सब पाप ।
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मामाला
त्राथा : अ Ter की सात बार बार कहूँ ! अब तो आप मान से दानाधिक तेज मुशफिर मिल साया है। और
मोला है । से: मायने मेरा बड़ा उपकार किया मा को बताना उचित समझता हूँ ! मायाम कहन से तुम्हरे मारना। वेतन दल मुखमिला, बाली भारत आज
उदासीन के रहे मित्र का मह बोर । होस मिलन की राह में हमर विस अधीर - और सब-~-अरे रामचन्द्र जी के लिया और कौन ऐसा कहर मुक्ता है। राम-मया अध आयो अपने लोक में मान्दन्द करो। इनु- प्राज्ञा
(बाहर जाता है। ल ---शबरी जी वाशिव और रावण की मित्रता कैसे हुई । शरीलाल शैल उठाय भिनुबन जीति सर्व जनाइ।
इसकंट माग्यो युद्ध हि गहि बालि कांख दबाइकै । करि सात सिंधुन माहिं संध्याकर्म सेहि कपि त्यागेऊ!
মুবি পাথ সখ সুন্নাহ মিঃ মাল মুন মুক্তি । जन्म-मरे पायी पुलस्त्यकुलके कलंक इसी के बल से तू नियों को जलाता है।
राम-संसार में एक से एक बदर हुअा करते हैं यह तो मार की लीला है। लक्ष्मणरावरी यह सामने कौनला उजला पहाड़ है। शाबरो-वीर शालिक सुजन को राति, नहीं यह शैला ।
हाड दुन्दुभी दैत्य के, परे रोकि सब गैल।
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ནཱཛཱཙྪཱ ཙྪཱ नाम इससे को रह सकी है वो और राह ने रामले भी आ पैर से फेक देता है। राबरीमा चर सुररि दुनिहाइ युद्ध भई बनकर तोरो
क्या रिलमोजकर बलि रहारी॥ विना समय के मेघ लगिल उजलमा में !
अरनबूट प्रहार बोर. रघुवर से फै। नामए-पहाड़ के पास कैदीला और बनुन्दर नलान भूमि फैल रही है।
शरी~-यह ऋष्यमूक और पासर के पास की भूमि है। धागे मत मुनि का प्राश्रम है। शशिनही है तो भी यहाँ होल हो रहा है. लेम का कटोरा रक्या है, कुल बिका हुना है और भी की सुगन्ध पा रही है।
राम-बड़े नास्त्रियों के नप का प्रभाव नमक में नहीं प्राना! शवरी महाराज देखिये देखिये :
उगे वैत भिरननके ती। फूल द्वारि वालत सरितीर!
आरन डिपति बहु सावन ।
निज जोक्नमदमट सतावत । और माल के पो रहे इस गिरिलोहन माहि:
गजि उठाबत बन सल जब लय सिन गुराहिं। सिरत शाल के नाम से इह हाथ महम
दूध बहत पल्लव टुटन फैलन डुई गन्ध !! ____ लक्षा---पाई क्या है जिसे भाई पुरवाईसे हिलते हुए कदसबों को वन मैं आँखों में ऑल्लू भर के देख रहे हैं और धीर होने पर भी तुप पकड़ के संभल कर खड़े हो गये हैं।
शबरी-भैया तुम नहीं देखते।
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प्राचीन नाटक मणिमात्रा
फुले काम लचिव श्रोत । नावत मदन मत बलमा खिले जना पूरा अति सुन्दर । सत समशिखर पर ।।
परदे के पीछे) नाना जी, लौट जाओ। हनिहीं तुम्हरे वन से जन विनदोर सुजान ! पूजनीय जो नित्रासोनिज गुरु म । सम-शबीजो बह कौन हैं : शबरी महाराज देखो। लेने की है पहिर तुरनाथ को दोही सरोज की माला पिंग शरीर पै वोह ल से बिसुरी धन ज्यों रविचनकाला। अपना बन सिकारि उध्यो जानु मेरु के शैल विशाला। राह दनाव थेग दो स्वर्ग में प्रात इन्द्र को पुत्र कराल
लभम दादा बहुत अच्छी बात है कि इन्द्र का लड़का युद्धदान देने वाला हम लोगों का भिन्न आ गया। राम- आप ही अघ) बड़ा वीर है।।
बाली माता है) बाली-सात सिन्धु में ठेलिकै लोक अलोक पहारहि नीर उछारी
बीते कल्पका भजि त्रिलोक पतालहि मूल समान उखारी। फैकि के सुरज चन्द औ खारन देहुँ हिलाइ के भूमि डारी। रुख लमान उपारों ब्रह्मण्ड त यहि काज विवाद है भारी॥ देखो रामचन्द्र से हमसे कोई वैर नहीं है; व्यर्थ किसी से जड़ाई के लिये घेरने से लोग बड़े अनुचित काम कर बैठते हैं। प्राज माल्यवान ने रावन के साथ मित्रता की सुध दिला के रामइन्द्र के मारने का मुझे उतारू कर दिया। कितना हट किया सबेरे से मुझे घेरे था भव . 1 पदुचा के लोग हा,
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केहि दिनी धर्मविध जगतृष्य अतिथि सेनेवर सामा • कोहि कहीं महंगी ताहि मैं अहानी : S दूत से सुना है कि
धमाके मचन्द्र के पास बेजा है। का राज देने का कहा। अब इसी तो कब ( चल कर ) अरे कार्ड है.. जिन जोत्यो भृगुनन्दन रामः । सत्य धर्मप्रिय जो गुलधामा । अतिसुन्दर तेहि नवनवाहा . मावत वहाँ याति कपिनाह नैनन कहे ताह निज बाजू । निवरै आलु गर्न कर खाजू
-भैया लक्ष्मण | कह दो कि हम यहां हैं । लक्ष्मण-भाई यह खड़े हैं आप चलिये । बाली-तुम भी लक्ष्मण हो । लक्ष्मण- जो हो । ( दोनों पास जाते है वाली - ( आप हो आप }
पुरुपसिंह चरित अभियना । वीर धर्मद्दत यह मा
जो नित अद्भुत चरित दिखाचन: आगे के सब वरित दिपावन ||
राम
महावीरक
-
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श्रीक ने भी उसे आश्रम के पास है
( प्रकाश ) राम,
सुख मिलत होत चर्च तोहि लखि दु:ख पुनि पावत हिथे । इन दुगन तक छत्र देखि सुन्दर रूप मित्र मन भरि लियो । तब लंग सुख हमको बड़ो नहीं मन बिनतंत्र न कीजिये । जेहि हाथ जीत्यो परशुधर तेहि हाथ अब धनु लीजिये
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शावान नाटक माणसाला
नाव-मले मिले यह अन्य दिन जयहि बचन तुम्हार | शखन तुम कहें निरख कैसे गहीं हथ्यार || कालो -- हँस के } भरे महादत्री क्या तुम हम पर दया करते इसे नहीं है ।
हमरे बारेत सकल जग जाना । निज मुख सम का करें बखाना | तुम नर सदा लय प्रिय जानहु । यहि कर भेद न मन मानहु || जी हठ, देखिय परे पहारा ।
यही वानरत के हथियारा ||
तो खेत मे चलें।
हम-दादा लब तो कह रहे हैं लड़ाई अपनी जाति के धर्म से होती है।
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बाली और राम--( एक दूसरे से )
रहो यदपि मनचाहते लोग बीरसंबाद |
किन तुम बिन रोड है महि, चित यहै बिपाद ||
( बाहर जाते हैं ) लक्ष्मण - अरे धनुष उठाते हो बाली बिगड़ गया । देखो तो, गर्जत मेव समान भयंकर कोपकिये सोइ घावत है । लीलनको ब्रह्मण्ड सबै घुघुतीरङ्ग को मुहँ बात है ।
क में देह की बिजुरीसम पूछ उठाय लफावत है । गर्वसे पूँछ पसारि अकाल में इन्द्रको पुत्र हिलावत है । (परदे के पीछे । विभीषण ! बिभोषण !
नवघन गरज सरिस अति प्रेोरा ।
यह जरूर आई कर सारा ॥ मा यह कह टंकार भयंकर । साध्यो के पिनाक फिरि शङ्कर ॥
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लाए फैसल
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महावiraftaar
- शम्ररी जी यह कम है। -यह विशेष
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सत्र है औ रह है जिसे ओर जा रहे है
राह से उसी ओर भाग सब से बड़े बार भी
लक्ष्मण - तो हमें भी धनुष उठाना चाहिये शबरी--यह देखिये वा दाई के पहाड़ को फोड़ कर राम घुसता है ।
शरीर, डुन्डु के का तीर तरत
( परदे के पीछे )
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को नहीं grief धोरहि ठाड़े रहे कपिवीर है। लगि तुम्हार राम के हाथन पाइ के मृत्यु को सुनिये कविवर मैं तम मानिये सूर्य के पुत्र युवराज कुमा
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लक्ष्मण देखो इन्द्र का लड़का इस दशा में भी अपने से कैसा सोसा दे रहा है। सेवक सव कशा ने ही लड़ समय छोड़ के गाड़े दुःख में हमारे देख रहे है. भाई भी जख मेघां मरे हुये नेह से उसको निहार रहे हैं समय दिलाने शोध में पड़ा विनोषण भी बंधा हुआ है, बड़े पद और से घाव की पीड़ा का बड़ा रोकना हुआ बले लगने के ब सुग्रीव के गले में सोने के कपनों की झाला डाम रह ( सुग्रीव विभोरा बाली और गम बाते हैं । राम- नासु तौफिक जन्म वीर जगविदित उदारा लत पुण्य तन तेज शैल के समय खा ऐसन है का विवृरिम लिब जोई। बरे व तो सरिस कर जई नहि कोई 1 बाली -- मेवा विमीय देखो! तो भैया भी के गले में कमलों की माला कैसो अच्छी लगती है
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सुनीत्र ( अलग)
अकस्मात हनि बजनिपाता। करी हाय जलदी सह बाता। अच पुनि शपथ दिवाबत साई।
करौं का कछु नाहिं बसाई ।। बाली-भैया रामचन्द्र
----कहिये। नई दुध संग यद्यपि नहीं चाहत कोड संधान ।
त करि तहि मैं देवबस भयो उरिन दै प्रान तुम तनन तब देत अव उचित होय जो का बलत प्रान करिहैं। तक यथा शक्ति तेहि प्राज राम-लाज से सिर नीचा कर लेता है) सुनोच और विभोप-प्रमणा जी रामचन्द्र 'थे, उनके हाथ से हम लोगों को ऐसी विपत्ति सबरीमाल्यवान ने सब किया। दोनों के कान बालो-या सुग्रीव । सुप्रीध- आँखों में आंसू भर लेता है। वालो-- परे सुग्रीव भी नहीं बोलता । सुप्रीद--( करुणा से ) कहिये कहिये। बालो-कहो तो हम तुम्हारे कौन होते हैं? सुनीव----गुरु और स्वासो । बाली-और तुम? सुन्नीव-बेले और चाकर । बाली-तो हमारा तुम्हारा धर्म का हैं। अग्नीव-हम आप के बल रहै । बालो-सुप्रीव का हाथ पकड़ के ) हम त
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महावीर चरितमादा हान और सुनीव-- पूजनीय है आपको यात के कौन
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हवाइ रहाने की जगह पर थे
धर्म
याली-मेवा मित्र जुन ब्रह्मा के न जाइकान से धर्म सोचा था इल ने नैत्री का धर्म ना कहा था ! सुप्री-नजिक द्रोह , कीजिये शानदै उपकार !
हिय में राखियनित हितै. यही मित्रव्यवहार ! साली-नया रामचन्द्र तुम ने नो नो मर्यवंश के पुरोहित वसिव जी से यही सीखा है ।
राम-जी हां।
बाली-तो अब तुम सो मैंनोधर्म का निकाह एक दुसरे के साथ करना। हमारे कहने से अग्नि के लाखो करने की प्रतिज्ञा मग । मयज्ञ को अग्नि पास ही है। राम और सुन्नीच-(एक दूसरे का हाथ पकड़के)
सावी अहै मतंग के मल की अग्नि पुनीत ।
रोहिय तेरो भयो तेरो हिय मन मोत ।। बालो-भया रामचन्द्र या विभापर जो हैं जिन्हे नुम ने बना के सामने लंका का राज देने को कहा है।
श्रमणा और नम -बाद बाह कैसा पा लगाते रहते हैं। राम-जी हो। विनीषण-माप को बड़ो का है। (प्रणाम करता है।
सुग्रीव-हम तो देखते हैं। कि हम से किया के श्रमणा का रामचन्द्र जी के पास जाना भी मुफल हो गया।
राम- दयारे मित्र महाराज सुनान बिभीषण यह हमारे छोटे साई लक्ष्मण हैं।
दोनों मामो मैया ( दोनों मिलते हैं)
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प्राचीन नाटक मणिमाला ygg ཡ་དི– ི ༔ ཀླུ་ཤུ }
बानी-शा बिमोपण तुम भी लाज लोय छोड़ने।। तुम है रा मिलता ही है। मेरी दल से जान लो कि रात्र मी अब नहीं है। तुम और राजन दोनों लड़के हो। परन्तु जो जरूका नबक खाता है उस का भला करना वर्म सस. झता है। तुम्हारे ज्ञान की बुक्ति शो कि निमीषद, नाम का मेल हो जाय। जितने बड़े है वह लव महाप्रतापियों का दोष
སུ ཚུ ཛཱཧཱ , # པ : ཤུལུ་ ཝུ ་་ཝེ ཙཱཚaf
नोल आदि-हाय आज हम लोग अनाथ हो गये
हा. हड़ मन्दर सरिस लीरा ! हा! जमाहि अतुलबलबीर हा! दुन्दनी दनुज के बालक ! हा सुरेखामुत कपिकुलपालक ।
रोले हुये वाली को संभालते है , वाली-सुनो जी वीर बानर,
सुनीष अंगद ईस रहि है तब या सन नास है। सब सहब इन की बात साप बड़ेन सो विश्वाल है। तव नेह जति है रामनयुद्ध. दिन थोरे अहै ।
तेहि हेतु जोर हाथ, तुम सब चोद हम कहु अषों कहै ।। मोकि, यह दिग्गजन सन युद्ध तब सिरि कान्द करि कायकै ।।
वह दिनो पताल पूछन सिंधुदपज बढ़ाइ। अनि भूलिया रिपुमथन मह वह शादि दुनि निज यांहको पितेज पारुप धर्म युन्नि वह लिमोतिनिधाही
(लब बाहर जाते है ।
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महावीरचरितारः छठे अड़ का विशम्भक स्थान का ले मान्दान कर
{माल्यकाल दुखी लाबाना है। मानहाय : ससा के बाला की बुरी बाल बल की जाई फैल रही है। इसकी निगाहा ओर बढ़ती ही जाती है।
स्लीय के, मात्र बीज है जाऔ अंकुर सुनता को पयार दनको कोया तुहर के. पल्लव नीच मारीच कामयविधान शाल है जानकीको हरियो दिलरे तेहि में बार
दृषनके वध, माई के महान खने के बाद मिलाना , थोड़े ही दिनों में फल भी इसमें लगाने चाहता है। हम तो चूई हैं। हमें प्रापर भी देख पड़ता है। (सान लेकर हा. इम को
यदष्टि के बल किया संकटातिकार ।
भये पथ एक एक न्यों बालसको व्यापार ! (घबड़ाहर ले) मंत्रोका काम भी बड़े दुःखका है,
जाजे अंकुसहान ना करें मगह बस काम।
सोचिये तानु उपाय नित. भित्रि रहै जो बाम अरे इस पापी छत्री के छोकरे की लीना तो दस के पर होमी है। इतने बड़े शूर बोर बानरों के चक्रत्तों को प्रानो त्र विद्या तो सच क्या नहीं कर सका। सोख के क्रिष्किंधा से लौटे दूत ने यह भी कहा है कि सीताका दुने चारों ओर बड़े बडे बानर नेले गए हैं।
(परदे के पीछे) धूमि से लए चहुओर लले जनु सातहुँ लो बड़ी उबालः । जाति परै नहि बारन के कव धाय धरै हुनौल बिशाना : जालि के सालों ले कर काल मजे मरसे भट होय बेहाला सिन्धु तरंग समान घडू विसि वकाह लीलत पनि
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rain नाटक मणिमाला
( घबड़ाई हुई त्रिजटा आती है ! विजरा-कोटे नाना जी, बचाच्चो बच्चायो । ( छाती पीट कर गिर पड़ती है ) मा०म्ररी क्यों घबड़ा रही है क्या बिपत पड़ी ।
त्रिजटा - ( उठ के } नाना जी का कहूँ | हाय, मेरे माग फूट गये। हाय, एक वानर नगर भर जलाके राक्षसों को तोरकी नाई खींच खीच फेंकता रहा और जब कुमार अक्ष ने उसे घेर कर बांधना चाहा तो उसे मार कर निकल गया ।
सात्य०- ( दुख से ) अरे क्या नगर जल गया और अक्षकुमार मार डाला गया । यह बन्दर कौन है | ( सोच के । हाँ दूत ने उस का नाम हनुमान बताया था | हा
कई सम लंका पुरी असम किया हनुमान | के लंकापति का प्रबल तेज प्रताप बुझान ॥ बेटी, वह सीता से मिला था ?
त्रिजटा—छोटे नाना जी, कुछ बेर पहिले एक नन्हा सा बन्दर उस से कुछ बात कर रहा था, उस ने भी अपने सिर स्टे चूड़ासनि उतार के पहिचान के लिये दिया, मैं इतना जानती हूँ ।
माल्य० - तो और क्या चाहिये। ( डर के ) इस नन्हें बन्दर ने तो इतना किया। ऐसे करोड़ो बन्दर सुग्रीव के राज में हैं । त्रिजटा - ( सोच के ) अरे, ऐसी सुकुमार, ऐली सुन्दर, ऐसी मीठी बोलनेवाली मानुस सीता हम राक्षसों को भो राक्षसी हो गई। माल्य० - बेटी सब कुछ हो सक्ता हैं,
रहत शान्त जारत तॐ पतिव्रत तेज प्रताप । { सोच के ) और वह भी बेचारी क्या करें,
अपने पापन को उदय भसम करत है माप ॥ त्रिजटा - छोटे नाना जी, पहिले तो हम लोग सब राक्षल और सारे जम्बूदीप में
दंडकवन के पास पहाड़ों में रहते थे
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महामोरचरिलभा
करा करते थे। अब यहां की रहना कदिन है
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माल्पाकी इतना क्यों डरती हैं देख तो,
हैले आस्य निकट. अपर ताकै बालीमा है। खाई है हिंधु छुवै नस जाहुरंग, औ धात दिवार घिरी है।
(साच के इस कासी कौन काम है बीस भुजा जिन भत्तरियून संहारन को अनु लौंह करी है । रामललाथ भी आई आँख का फड़कना मानके, दुःस्वसे)
हाय है सुख अनि ऐसी इला बिगरी है। बेटी, मेधा कुम्मनाकी नींद टूटने में कितने दिन और हैं।
त्रिजटा-छोटे चाना जी, अब की अधेरी चौदस के बाद महीने पूरी हो जाये।
माल्यारक्या अभी उस के जागने दिन बहुत हैं। सोच के बड़े भानन्द की बात यह है कि छोटा लडेका आप सोचता हैं। उस का वेखमझ का काम भी अच्छा फल देगा। कुछ भी हो उसी से कुल को प्रतिष्ठा रहेगा यही मैं भी समझता
त्रिजटा---(घबड़ा के ) दई इई भगवान कुशल कर यह मायने क्या कह डाला।
माल्या क्या कहा?
त्रिजटा-आप तो अपनी नोदि की दात कह रहे थे उस में সুল হই । না লিঙ্গ বাস্তু। माल्या-हम ने समझ के कहा। बात तो यही होगी।
সহ বন্দর স্থান ভ্রহ্মাৰ নি । कह शुकुलमन्म, कहँ नारिहरनकर पाप !! निज इच्छा दिननाथ ज्यों विचरत सदा अकास।
अस्ताचल जो ना चले घटेन दिवसउजास भय तो निरी बुद्धि से जो कुछ हो सकता है सेा होगा। मर
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प्राचीन नाटक मणिमाला
हम का नाम क्या लें । बेटी इल समय महाराज बुशटक्या कर रहे हैं ?
त्रिजटा – छोटे नाना जी महाराज सर्वतोभद्र अटारी पर बैठे. वही राक्षसवंस की बात जिस में रहती हैं उसी वाटिका का देख रहे हैं। मैं जब धरती थी तो यह लुक कि मह/रानी जो नगर की यह दसा सुन के उदास होकर महाराज की समयने नहीं जा रही हैं।
माल्यः -- श्री है तो क्या इतना ही बहुत है कि मन्दोदरीराज के समाने के लिये घबड़ा रही हैं। महाराज को न देखो जो समझाने पर भी नहीं सकते । श्रानो, फिर भीतर चल कर सेवें कि दून कैसे भेजना चाहिये । ( दोनों बाहर जाते हैं ) इति
छठा अङ्ग
[ स्थान - लंका राजमन्दिर में सर्वतोभद्र महल ]
( राव सोना हुआ बैठा है ) रावण - कहा चन्द्र सोतामुख देखे !
जगन सौंह पंकज केहि लेखे ॥ कहां कामधेनु लखि भंग चंचन । कहाँ श्यामघन लखि शुचि कुम् ॥ कहिय ताहि श्रिय के सम कैसे । ताके अँग अनूपम ऐसे ।।
( सोचकर प्रसन्न होकर ) अजी धरती पर हल चलाने से यह वीरत नहीं निकला बग्नू बहुत दिनों पर मेरा मनोरथ पूरा हुआ । ( सोनकर ) ब्रह्मा जब अनुकूल होता है तो ऐसा ही करता ई (गर्ष से ) मी ब्रह्मा ही का है
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महावीर चरितमानस
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" जोन में हरांड के पास के धृषि मिलाओं : चैट रबैं जो प्राच लोकशिनिक घार यहाओं: ने मनाए जान इन काजमातु सखी नई राह चलानी। बत जोग दशा के स इन्पै महा अर्थह के दिग्याओं
वाली सोन नदी आती है। वाली घरझारांनी जी, इधर बांदी के सीढ़ियों का दुआर यह है।
मन्दो-चढ़कर या महाराज यहाँ ई हैं। देश के क्या असे.कवाटिका की ओर देख रहे है। (दुर जन्ना कर बैरी सिर पर चढ़ाया अब भी राज काज की सुध महाराज का नहीं है : { भागे बढ़कर }-महारज की जय हो ।
राबा- कार छिपाकर ) क्या महारानी गई? पास बैठाता है। अन्दो०- बैंकर महाराज, बाप ने क्या विचारा है।
रावण-कौन सी बात? मन्दो महाराज, बैरी बढ़ पाया है।
रावण-- अहारज जनाकार केला बैरी और कैसी बढ़ाई महारानी ने सुनी है: दशन दुगुन दिवान के हाथिन के धरि हाथन सो उहाई ।
ध्यों दियापति देवन को बहुवारल चारि जान बढ़ाई । धाव सहे उर में न हटो सुर मालोजोबज ले मल बलाई । ताह के जोड़ को वीर भयो यह भूल की बात कहांले धौं आई। तो भी सुनताले । कहो तो कौन है।
मन्दोल-लारे बानरों की सेना समेत सुत्रीव को पाने किये दशरथ का मासा राम और उस का छोटा भाई ।
रावण-अरे लपी और उसका भाई वह भला कर सकता है। मन्द महाराज सब मिलकर तो कर सकते हैं। और यह
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प्रासीन माटफ मणिमाला
भी सुना है कि समुद्र के तट पर सेना ठहता के राम ने पुकारा और समुद्र अपने घर से निकला लब, जाने कहा हथियार अपूरक से तपती जलमोतर मारा। शाके प्रभाव उध्यो माथि अम्बुधि लोडू समान भजन सारा ज्याकुल है कटुए उबरे घबराय बले भर से परिवार ! बेसुध होई गिर जलमानुस फूटे हैं सूती मौ संख अपार
रावण-मुँह नाकर तब फिर
मन्दो-महाराज तत्र को समुद्रदेवला बाद से सरीर बिधे हुट जिलकी सी भर देख पड़ती थी श्राप ही निकले और पैरों पर पड़ हाथ जोड़ राह बात दो ! और सुना उस साहसी राम ने और भी कुछ किया है।
रावण-हो ही सुनें कही तो महारानी। मन्दो-हजारों बन्दरों से पहाड़ मंगवा के लेनु बाना।
रावण-महारानी तुके किसी ने बनाया है। समुद्र को गहि. राई किसी के मान की नहीं है।
जेते जम्बूद्वीप में मौरी कहूँ पहार !
तिल स्लन एका कोन में अन सिन्धु अपार ! और जो तुम ने सहासी कहा तो मेरा साहल भूल गई।
निज हाथन निज सील उतारी। धोये चरन रुधिर नव द्वारी सुखगजलयुत मुख मुसकाना !
तेहि अवसर खंडोपति जाना। मन्दी-महाराज और भी सुनिये एक बानर के हाथ का ऐसा प्रभाव है कि उस के आने से जल में पत्थर उतराये ही रहते है।
रावण-(सिर हिलाके) पत्थर मी इतराते हैं। खियों के इन भोलेपन की तो कोई दवाई नहीं है, महारानी क्या कहैं।
चतुरानन जाने सलों में श्रुतिज्ञान अपार । मका सुरपति, जस जगत, धीरज धज हथ्यार ।
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না ছিল। कुल जाने कैलास पिरिसाइरल त्रिनुबननाय । चरन बड़ा ताम्मु जन्न काटि सोल निहाय
परदे के पीछे बडादा होता है मल्दो ... महाराज बचाओं बचायो। डर द देखती है। रावण मुत
पर के पीछे }-अरे हे नंका के फाटक पर के रामक बन्द करील कारक बेग लगाय के अगलहू अति भारी ! भात पै अस्त्र और शनचढ़ाय करोलबहन को रबारी भोजन वत्त माय बरो निस घर सो नहि बालक नारी! माय गये तपसीदोउ सेन लिये संगशनर भालु की लारी
परदे के पीछे से मुह निकाल के प्रतीहारी आती है। प्रतीहारी-महराज प्रहस्त लेनापति कुछ बिनती किय चाहते हैं से बाहर खड़े हैं।
रावण-कोन : प्रहस्त सेनापति, आने दो। प्रतीहारी-बहुत अच्छा
बाहर जाती है (महस्त प्राता है) प्रहस्त--मनुष्य के छाकरे का चरित कैला उजागर है. देश गोपद सरिस मरिनाथ लक्ष्यों लसत लहर मकर पुनि निडर निज घर माहि ज्यों पुर लंक विति निज पग धारा अति विषम शैल सुवेल पर निज कटक सकल मायऊ । संग कछुक बानद वीर अब पुर लौह अंगन मायक।। (आगे देख के) अरे ! महाराज लंकेश्वर यह बैठे हैं। रावण-सेनापति यह हल्ला कैसा हमा: प्रहस्त- आपही आप ) या महाराज अ तक कुछ न जानते! अच्छा तो काम ही की बात कहैं। (प्रकाश)
री चहुँ ओर से कीन्हे बन्द किवार । रक्षा चार? दास करत राछस भर अपार
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प्राचीन नाटक मणिमाला
प्रहसत--
आप ही आप
घर भी वही दशा है प्रक
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अनु सहित एक मी जर घेरी दुरी तुम्हार: मिन्द मोजन्न हूँ समस्त याकुल है नारि ।
भितीहारी आती है) प्रतीहारी-महाराज बन्दर कहता है कि हम राम के ___ और बाहर खड़ा है।
गा--(मुह बिगाड़ के बन्दर, अण्डा बिन्दर । प्रतीहाही.--जो बाला(बाहर जाऔर असंद के साथ मार हावा यह बैठे है जाओ।
– সত্ত স্থলাস্থি মজনুর ! रावणा--तुम सुग्रीव के सेवक हो । अंगद-जी नहीं। रावण--फिर किसके झो। अगद-लंकेश्वर सुनो हम जो हैं और जिस्व लिये आये हैं।।
धापी रासन के हित दयामि रघुराई।। मायों सिखवन ताहि नानु अनुशासन पाई। दै सीता परिधार पुन तिय सहित दशानल ।
परु लछिमन के पास नतर मरिहै प्रमुवानन। रावण-अन्दर बड़बड़ाय तो ठीक ही है। अंगद-अजी हम जो कुछ हो तुम दो टूक बात समझ लो रिहर लखन के पांय, के ताके सरमुखन पर । कहु जो ताहि सुहाय, बदे माजतव सोस यह ॥ रावण-क्रोध से ) अरे है कोई इस बकवादी बन्द पबिगाड़ दो।
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নামালো ।
महस्त-महाराज यह दूत है, इस पर शोधनको उचिन है रावा--इस का कप चियाइनाही नलियों का उत्सर है। अद- रो लाकर कद के! का एक तेरे सास निशित्रर बेगि एकरि भरि के । नरवारि से निजनन काटिकिरीटबन्धन तोर के। माहि जात किरिनिज का दिन पनि दिये इसह दिखानका। जाहेत परवाह माह में दृत कृपानिधान की।
बाहर जाता है। प्रहस्त-महाराज प्राहा पाने के लिये जो बहुत बड़ा रहा है। रावण-अजी क्या पूछते है?
सदै द्वारकापुरी के उधारों: अरे अर्गल बेगही नारिद्वारी बले राजलों की लोई लेन बाँकी । मनो लोक में शक्ति के धूम नाकी चहुँ ओर संग्राम भारी मवाओ। परे शव सेना भगाओ भगायो । घुमायो भुजा हाथ लै मत मारी । दलै शत्रु के पक्ष की भीर सारी ॥ वृथा बर्व के बानर दौरि डाटौ।
चढ़े कीस भालू अरे बेगि काटौ।। प्रहस्त--जो महाराज की आज्ञा वाहर जाता है।
(परदे के पीछे बड़ा इजा होता है) (सब बड़ा कर सुनते हैं)
(फिर परदे के पीछे) धार भयङ्कार रूप धरे कपि शत मारि गिरावत हैं। कादि कै, इन चारिहुँ ओर सो देदो सीमानों बनावत हैं ।। कॉडत सीस और हाथ गिनन ज्योंहो तो बाहर बावत है ? मरन को पुरद्वारी यामर शैल सलावत हैं।
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Rafare मणिमाला
रवा - ( ऊपर देख के क्रोध से ) मरे यह देवता अपने के भूल से गये और राम का पक्ष लिये कूद रहे है। अच्छा महारानी' तुम भीतर जाओ। अब हम भी
धरि कछुक भुज महमन्च बानर बोर दिलन महावहूँ । रन खेल के नइ सरिए तपसिन पसि धूरि मिला हैं ॥ रन देखि है मंत्र मन्ध बै आज कटुक विचार में जोति न सोइ सुरन गहि भरौं कारागार में
( free घूम के मन्दोदरी समेत बाहर जाता है ) 1. दूसरा स्थान - समर भूमि के ऊपर आकाश ] ( रथ पर पैठे मातलि समेत इन्द्र आते हैं )
मातलि -देव स्वराज अब तो लंका पहुँच गये। प्रन काल जब सात पयोनिधि |
करत प्रबण्ड भँवर मिलि जेहि बिधि ॥ यहि अवसर निसिचर को पांतो । आवत मडि मड़ि तेहि भांती |
हम समझते हैं कि निशाचरों का राजा लड़ने को बाहर
निकला है।
इन्द्र- मातलि देखो देखो.
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सुत लोदर सेनन के लाथा । कपिन भिरत लखि निश्चरनाया || पटि खोलि र दुर्गा किवारे । खेदे पुर बाहर कपि सारे ॥
कुछ सुनने का लाभाव बताकर ) अरे, यह कौन है जो उत्तर fter से सोने की घंटियां विमान में वांधे हुए आरहा है !,
मातलि चित्ररथ तो हैं जिन्हें आप ने गन्धों का राजा बनाया है ।
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महाचोरचरितमाया (बिमान पर बैठा हुमा चित्ररथ आता है। चित्र:-देवराज की जय ! इन्द्रधराज हो लड़ाई देखने को जी चाहः । जिनऔर भी एक कारन है। इन्द्र-और कमा है। चित्र:-धनेश की आज्ञा इन्द्रकै शE चित्र:- यहि की जनमधरी सनाढ़ा :
मेरे हियेनार का गाना ललि करनी सब के हित सरका: रह्यो च्यापि अब सोइ लोक तासु मरनदिन आज दैव बस ।
देखें अब परिणाम होत कल हो जानने का हमें भेज दिया। इन्द्र-अजी वह दोनों एक ही बंश के हैं उन्हें भी दी
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चित्र-इल में क्या अचरज है यह दोनों तो एक दृल्लने के जनम ले वैरी हैं। धनेश पर रावत का कल लो प्रविही है जो इस रे निधि और पुष्पक आदि के हरने में किया और यह भी क्या है।
जेले जोत्र जन्तु जग जाये। सब यहि के दुश्चरित सत्ताये। आज मनात सकाल लप्रीती
श्रीरघुवंशतिलक की जीती। इन्द्र-देख के गंधर्व राज हमें जान पड़ता है कि राम ने थियार चला दिये क्योंकि देखो बन्दरों को लेना कैसी तिलर बतर भाग रही है हल्ला ऐसा मचा है मानो समुद्र की बड़ी भारी बहर नट की पाली पर करवा रही है।
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प्राचान लायक माणिमाला
चित्र-देवराज देखो देखो।
बैठो गिरि के अंग सरिस रथ निशिचरलाहा। युद्ध करन के हैत छलक मन सहित उहाहा!! कहा जब करन नि जुटकारा
दिसाम के चिरिन नजि वाजतनी सारा । इन्द्र --- ज, इन दोनों बोरों को समर की सामग्री रबर नहीं है। (घबट्टा के मातलि सातलि हमारा संग्रामिक
वन्द्र जी के पास ले जाओ, हम राज के रथ पर बैठ जायगे } {लाही करते हैं।
मातलि-जो स्वामी की प्रा । ( रथ लेकर बाहर जाता है। चित्र:-देवराज बड़ा गड़बड़ मच गया ?
दोऊ ओर लो ज्यों चली असमारा। लगे शास्त्र के होन ज्योंहो महारा सबै बुद्धि औ जुट्टमर्शद छूटी। भिरे दौरि एकेक सों पांति टूटी ।। गहे पाय के एक के केस एका । हनी नुष्ठिका एक योधा अनेका ॥ कहूं रासे कीस साधा पछारें।
हूँ दाबि के हाथ लौ मीजि डारें ।। जली देह सो रक्त की यो प्रयाहैं ।
सबै युद्ध भू की भई बन्द राहै ॥ भी, लागत वन समान हथ्यार शरीर सुबीरन के बिलगाहीं । हाथ उ छर सिर नाचत रूपड सबै यहि में परिजाहीं॥ युद्ध के आंगन बीच कही यह शैल को देखि परै जेहि माहीं।
शत्रु को मार सो होय विहाल अनेकन कोरसे सर विलाही !! इन्द्र-गन्धर्वराज इधर इधर देखों, दन लगत बान प्रचंड सै उड़त मामिपखंड
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महावीरचरित मा तोह मखन पख फैलाय । बहु गिद्ध पाबत काय :
सन्मान क्षेत्रमा : शिन, एक निनकी चोइ ! " सम्म अंश रकन नहार हिन्ध अन्तला खटाय: किये सिथिल सकाम शरीर । जिलेत मांस मुनी नो. उद बढ़ास धनि धीर बीरबनिरहे।
अत्र शारू की चोर रह जोहन रन पडे , नलमिलो जादु नादि बटन नन बाल विवाह
इटन र के हाई पर ललि प्रति माह बिदेवर. पदका लत्रा में उतरना कैलाश
सेवक रू नकर सामोरल बैंका। मेघनाद निकाल अनुजसा तग लाये। रन के काज जगाय नींद लोक्त प्रति बोरः ।
कुम्भकर्ण कीरवीच देखिय इकारा कैकसी बन्धु को वर्ष यह विकटम पीछे हो, इन सदन बीच जनु विन्धपिरि निशिचरपति रथ पर के इन्द्रधराज इस भौति बैरी को बढ़ने दुवे देश पर रामचन्द्र जी निडर खड़े हैं। क्यों न हो. होना ही माहिये चत यदाद बहु और जारभार नभासमा डिरें नहीं कुलशैल डाव अपने सन धोरा तनही मर्याद यदि बहुलोर उछारा
খাজ কা কত্ত্ব অভিনিমি ৪ ? चित्र:-देवराज देखो।
धनु डोरि लाये तीर अनुजहि बिनय करत निहारिकै । तजि मेघनादविनाल हित कर विशिन फेरि सुधारक रन चतुर अनुज समेत राक्षलपतिहि बेध वनायक संघुवंशभूपन बार फिरि करि कोप चाप बढ़ायम तो बा कठिन जान पता है कि
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प्राचीन नाटक मणिलाला
fe शिवरवर अगनित युद्ध श्रातुर धावही । एक बार प्रवल हथ्यार रविकुलचन्द्र पर बरसावहीं ॥ अजी कुछ भी कठिन नहीं है ।
रथ लागे सुग्रीव, पीछे है अंगद बड़ो | दोऊ और बलसीव. जास्वषात रावणमनुज ॥
ए दो अभिभाव महिमामगम रघुकुलवीर हैं । रिपु अन डारत काटि एकहि बार मारत तोर है । ( चारों ओर देख कर ) क्या यह बन्दर भी बड़ी भरी लड़ाई अपने नाम के अनुसार काम दिखाकर रामबन्द्र हो के पास खड़े है। देखिये तो.
( सोच के ) हनुमान जी छोटे कुमार के साथ हैं ( सोच के ) अत्री वा इsi रहें चाहें उहाँ दोनों ओर से राम हो के पास हैं देखो इन लोगों का
स्वामिभक्ति औ धीरता दिखरावत निज गात । औरत की और दसा रन मैं जानी जात ॥
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इन्द्र-गंधर्वराज संसार में स्नेह भी सारी इन्द्रियों को बस करने का मन्त्र है क्योंकि
गुलबान तेज निधान लक्ष्मिन चतुर रनव्यवहार में । है मेघनाद सूरवीर प्रसिद्ध जस संसार में ॥
इन दुहुन को वुधि राम रावन यदपि तुल्य विचारही । रिपु और सर की वृष्टि, दृष्टि दुहून पर दोउ डारहों || चित्र०—ठोक है बड़े लोग स्नेह नहीं छोड़ते ( अचरज और
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चाव से ) देखिये सुरराज,
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लगें यज से खंड सौमित्र तोरा । करें बेगही घाव भारी गंभीरा ॥ पलक की सेन के वीर कैसे गिरै भूमि पै धावते सैल जैसे | परे खेत में पुत्र थोरै निहारी । तजी राम सों युद्ध. धावा सुरारी ॥ खरै पुत्र जेठो जहां बोर बँका । गयो बेगि भारी घरे विससका
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महावीरचरितमापा पथ तो हम समझते हैं कि बुरा हुआ :
इन्द्र-अजी धर्मराज बमा बिगड़ा है। ये दोनों का धि के राजकुमार बड़े बीर है इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा !
एकहि वार लाधि घटना। मारे सहल निशाचर और
सहि समर दशानन भाज।
बोरन सई भूपन सम राहत चित्र-देवराज बहुत से एक ही पर बढ़ा दौड़े उस पर ई तो समझ लेना चाहिये की जनसंख्या के अधीन नई अचरज से ) यह देखिदे देवराज जो। বলি ঔ জন্তু স্বাভ। ইংখা লিছিলাখ रन कुम्भकर्ण अधीर ! आयो जहाँ रघुबीर । तन लागत भनित वानमा कील जरो समान यह दसा पितु की देखि । घवराय कुम्भ दिलेखि ।
आय पहार लमान । कै गर्व मूरतिमान अचरज से) वाह वाह बन्दरों की जाति भी कैसी होती है रह पाई धुल पड़े।
झपटत रघुबर भोर दूर सन कुम्भ बिलोकी ।
बोधहि में चट पाय राह बानर इक रोकी ।। ध्यान से देख के) मा सुग्रीव है ? (लाच के)
खंभ सरिल दोउ करन दाबि तेहि धनि पछारा।
क्रोध अन्धदि बेहि पोति पीठी करिडारा डर जना के) कुम्सकणे सुतदला निहारी।
झपटि हेलि तेहि वल भरि भारी॥ कटकि छुड़ाय हरी कपिराजा।
तासुनाक सगिनीमनलाजा। इन्द्र गर ,धर देखो इधर,
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प्राचीन नाक रिमाला दिव्य र इह जन सुनाए। रश्चन मेघनाद दिलि मा हि मानत लखि अन्ति बहराये !
को दोउ तेहि पर आये हुए हाय हाय रघुवंशी इस से बड़ा संसदमा जान पड़ता है।
नशन अति विषम मनन नागफोन चला गति होकि शारड़वाद हनि ज्यों कान ताहि गिरथ ऊ सो केपि शक्ति शतानि सिलबलाय उर मह सारे। महि पिरत वेध तखन पोनकुमार कपाट संसार
चित्र- देवराज जी बड़ी अद्भुत माद हो रही है, एक ओर तो विनोपन से छोटे भाई की मूळ का हाल सुनकर श्रीरामचन्द्र जी रचित महणाले कैसा हो गया है और तेज दब सा गया है और एक ओर से ऐसे दुभ में पड़े हुये के भी कुम्भकर्ण सेना समेत चारों ओर से घेरे है। लेा रामचन्द्रजी ने लक्ष्मण को देखने के लिये कैला उपाय किया है देखो,
निपुर विजय के काल धरी जो शम्भु सरीरा। স্বস্থি অদ্বি জ স্থায় স্ত্রী দুবাল হলী राजन अनुजहि खंड लंड कीन्हे निज बानन ।
जारि तातु इज अनुज पास आये आतुर मन ।। ( देख के ) अहा! हा ! रघुनाथ जी का भाई पर स्नेह कैसा है भाई की सी दशा अपनी ही रही है (चारों ओर देख करहर्ष से बाह : कैसी अच्छी बात हुई है जब यह दोनों दुखसागर में पड़े हैं तभी रासन परिधार समेत कुम्भकर्ण के मारे जाने से व्याकुल होरहा है (फिर देख के } अरे क्या अभी तक मूर्ख नहीं गई. इनका बेसुध होना तो बड़े ही कुअवसर का हुआ। क्योंकि
মাথা খাজুল ই মিন ও মী! बानर रहे सहाय सोठ न्याकुल धरै न घोर ।
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দীগুখিস? काही जागने देव क्या करैगर !
इन्द्राय:जस्यों बचा रहे हो , देखोनी जागते है हनुमानजी की महिमा मिली के ध्यान में नही असती:
कल्प को जो अरि की वृष्टि नई नहि के कामलाई दीजियेक हिलाम अक्षास के नारन तोरि गिराई वि को आतुरता अनुरूप स वैगजनाय र ऋदि बाद
हाथ में शैल विशाल काहि में मह नई चित्र:- देखके हर्षदेवराज देहिये, देखिये
ज्यों कुमददन ससितेज पावत, लहान सुस्तक लोहनी भवसिन्धुलर इन पावत हान हटन माह इस स्वी लगत सैलवधार तन मह उन लगि यात्रा दोऊ :
संसार वस्नुपूर्वगुन हि भाति जानि स के (दक्खिन की ओर देख कर ) अरे यथा यह पवन है: यह नो इलय के समय हिलते हुये समुद्र के जल की काई राजललेन को बढ़ाता फिर बेशरी पर चढ़ा रहा है। लोच के समय तो धर्मयुद्ध हाले लगा। बड़े बड़े निशाबर जितने सन मिद गथे: रावन और घनाइदोई बच गये। ये देई हैं नो क्या हजार छोटे राक्षन के बराबर हैं। ( फिर ननमय को देख के) यह न
तजियान ज्यों सरकार। ज्यों नाग कन्वुल द्वारा घननद सन ज्या सातु। न्यों रतन उनन्त बाद फिर से नल कुमार । न घरे निज अपार
यह दिव्य औषधि याच परताप करि जनाम (देख के क्या जो जन्दर और राक्षस आगे बढ़े हुऐ थे उन है फिर लड़ाई होने लगी।
संत्रास महि इक ओर राक्षस बाद तीन मारही। इक भोर बानर झपटि नत्र सन शव देह विदारही।
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माहान नारक सगिमाला
इक एक सबदि बलत झपटत धूरि खोदि उड़ावहीं।
दोनहान सरीरलगत अधीर सरिल देखावही , कर दान से देख के इन दोनों सेनाओं की दसा सबेरे के बेरे उजाले की सी हो रही है। __ ज्यों ज्यों राक्षसलेन यह कोन परत नित जात
त्यो त्यो बानरमालुबल सहस गुनो अधिकात ॥ इन्द्र- धर्वराज इधर तो फिर बड़ी मार होने लगी। राम से प्राय भिमो दलकाधार लक्ष्मण से पुन्नि तातु कुमारा धर्म के युद्ध में ही जनाय दिखावत शस्त्र को झान अपारी। कारत एक चलावत दूसर दिव्य हथ्यार अनेक प्रकारा। बीतत कन्यकी मागि समान किये तिन सेन दुह दिशि छारा । चित्र:- देवराज ये दोनों बड़े कार है, इन को लड़ाई लड़ी मंटन है। सिंह की नाद से गर्जत सों दिसि अन लोगूज उठावत हैं। बैरिसरोरन सो रन, नभ बानन वीर छिपावत हैं। देखनहारन के तन राम बरे करि बेग कपावत है। नूमि परे जो इसा तिनकी लखि आँसू भरे दुग प्रावत हैं।
(चारों ओर देव के कौतुक और हर्ष से) लिये केतु से हाथ में अस्त्र नाना। अलैं गर्व ला फूलि जे यातुधाना। करें दुन्द ज्यों राम के सौह प्रा।
घुमा सुजा अस्त्र भारो चला। सोच के ) देखिये संसार मे पंचसूत की दृष्टि पेसी है,
नहि समात त्रयलोक में रहे जु राक्षस सुर।
होय जीवबिन देव बस मिले आज लोघर ।। इन्द्र-गन्धर्वराज देखा इन दोनों राम और लक्ष्मण का धोखा खाना भी दिखाता है
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महावीरचरितमा
काटे जल कौतुकी दिलवल कोटेड
सोस इकल और नलकुमार के। ज्ञानत अनेक एक एक के ठिकाने देगि !
दूजे के प्रभावबाहि गेवर विचार के देखन हैं लौह जायला ला विचिन्न ।
तर देत विते माहल मार के । घरको न पोरन घटत न उता भूप।
काटनेई जातील वान बनसार के परदे के पोछे भया कामचन्द्र का इल पापी का खेला रहे हो जो एक तनिक सी बात से निपर जाय इसके लिये इतना बखेड़ा क्यों करते हो। समझ तो लो,
आप सीय, नि(लोक लोगान सुखसनुदाई : यह निज अमर सरूप लंक यहि कर शुभाई। परम जोति जिन ज्ञाननन सन र निहारी।
पाबैं सो मुनि शान्ति एक ही बाल तुम्हारी चित्र:-(सुन के) देव ऋषि भी इन दोनों को मारने के लिधे राम लक्ष्मण से कहते हैं कि देर न करो । दुध का मारना किसको अच्छा नहीं लगता। (घबराहट से देख के हर से देवराजदेखिये
धारि ब्रह्मरित्र बान दोड और चलाये। जन अह सबननादविर काटि गिराये !! राक्षसह गिलो पीछे पुनि राक्षसनाटी।
देड धिसिर दृष्टि नुनि देवन डारी इन्द्र--(नेपश्य की सोर देख कर धर्मराज यह देखो दीनों लोक के दैरीरावन का मार जाना सुनार महरि लोग फले नहीं समाते. किसी बड़े उत्सव मानने के लिये मुझे बुला रहे हैं। तो मैं अब वलकर इन का मनोरथ पूरा कर, और तुम भी यह वृशाल सुनाके हमारे मित्र अलकेनर को सुन हो!
(दोनों बाहर जाते हैं।
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प्राचीन नाटक मणिराल.
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सातवें अङ्क का विकासक
। ती हुई लंदा आती है। का--(चलाके , हाय महायज दशकभर । तीन लेक की औरत के मतवाले नगर कहीं नये, हाय तुम्हारी भुना से मान रक्षसा पलते थे, हाय तुम्हारे इस ले तो महादेव के दोनों चरण पड़े थे जब तुम अपने हाथों अपने सिर उतार उतर कर पड़ाय ? हाय काली के सड़क के शिरोमणि
दमाई बनने बाहनेवाले हाय अब मैं तुम्हें कैसे देखें। कहा पा ॐ हा कुमार कुम्भकर्ण हाय भैया याद कहाँ हो । वालले भयो नहीं: { चारों ओर देख के हाथ कोई भी नहीं बोलता! ऊपर देख के) हाय कापी दे तुझे यही सरना था! और तेशही दौर दे अपने पायो ६ है। रोती है)
अलका मानी है) अनजा-अरे राक्षसों के राजा की कैसी दशा हो गई। इतने रामल थे उन में विभीषण ही बच्चा (सुनने का सामान बताकर श्रम के ) अरे क्या मेरी छोटी बहिन लंका अपने स्वामी के नये विरह में चिल्ला रही है। आगे चल के) बहिन धोरज धरो।
लंका देखके ) अरे का अलका बहिन हो।
अलका-बहिन धीरज घरी संसार में सब की रेसी ही गति होती है।
लंका-बहन धीरज कैसे धम अवतो शुभ में खिमा ही रह गई है नुनते हैं कि कुल में नाम की एक बिभीषण बचा है सो भी मेरै असाग से बैरी से मिला है। ___ अलका-अती बहिन ऐसा न कहीं बह हम लोगों का बैरी
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E
tr
महावीरचरितभाषा
संत्रा - कैसे !
मनका-जिन का वैसे थामे गया।
जन्म का दिन दशरथ का लडका राम है जो
मका | साँस लेकर ) नव सुच
अलवा - हो हो ।
mara
941524
लोगों क
मकान है
संका नोभमा उसने हमारे खानी का क्यों नान करा:
★
अलका-वात बिगड़ गई।
पितु के भवन अनुज के लाथा । आये दंडकवन रघुनाथः । यह तेहि छति जो अनुचित कामा । रावण कोन्हा परिणाना |
लंका तो
तुम कहां जाती है। ।
अलका कुबेर ने जो रारा के सले भाई हैं जब राज से यह हम सुना तब हम को शक्षा दी कि जाम्रो जो हमारे साईबन्ध बचे हैं उन को समझा बुझा बानो । विभीषण का राज तिलक देख पात्रो और पुष्पक विमान जो रावण ने हर लिया था उस ले कहाम्रो कि रामचन्द्र जो की सेवा में रहें ।
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लंका - अरे क्या भूतनाथ के मित्र कुबेर भी रामचन्द्रको सेवा में रहते है :
अलका - इस में अचरज क्या है।
ब्रह्मज्ञानि यहि नित प्रति यावत । श्रुति यह पुरुष कुरारा कहावत । 'लगंजन मंजन सहितारा ।
जग भगवान लीन्ह मारा ||
का जो ऐसे ही हैं तो हमारे खामी राजयों के राजा ने क्यों न जाना।
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प्राचीन नाटक मणिमाला अलका-तुम बडीशोधी है। शाप के अल उसकी मनि भी हो साई चीन की उलझनी होप न था।
(परदे के पीछे हुल्लड़ ही है।
दोनों बड़ा कर सुबती है। फिर परदे के पीछे सुनो जी तीनों लोक के जीव जन्तु ! रुद्ध अर्क असु के सहित यहि अवलर सुरक्षा सोय लता का देत है बन्यवाद हरयाय । तानु अनि मह शुद्धिवान रघुबीर उभर
बंशति का तह फिर की सीकार __ मलका- क्या देखता रमन के घर में सीता जी के रहने से जो चबाय का डर है उसको मिलाने के लिये सीता जी की आर से निकलने पर बड़ाई कर रहे हैं? ह, सचिन लौकिक तेज यह पलिबरता की जोति ।
यह अचरज पर जानियत लोकरीति यह होति । लंका--(सुनने का भाव बताकर अरै बधाई के शाजे गों बज रहे हैं और नाना क्यों हो रहा है।
अलका--( नेपथ्य की ओर देख कर ) अ यह तो सीता जी की शुद्धिके अनुदान के लिये जो अप्लर उतरी थी और देव ऋषि आये थे वह सब रामचन्द्र जी के कहने से मिलकर बिभीघर को राजतिलक करने गये थे अब लौटे जा रहे हैं अच विभी. पता शुल्पक को आगे किये हुये पा रहा है। तो अब बलो ऐसे सहज सहिसाबाले और उदारचरित रामचन्द्र जी के दर्शन से अपने लोचन सुफल करें।
(दोनों बाहर आते है।
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স্থাষাৰছিল
सातवां अ
स्थान--सुवा, सुचेन पर्य {श्रीरामचन्द्र लक्ष्मण सीता सुनाव श्रादि खड़े हैं :
पुष्पक को आगे किये विभीपण आता है। विभीषण-मैंने श्रीरामबन्दजी को प्रामा दूरी की मार का सत्कार किया अटी.
मुख गिरत गजलधार बारहिवार पी लकीर है। नहिं कत कंकन हाथ में बदलांति कृशिलशन है। सुरलारिटी बन्दि सन मुसुकानि नभ दिसि जात है। इक बेनि बाँधे केस, विचरत महि, भलिन समान है। आगे बढ़बार महाराज रामचन्द्रजो की जय हो, आपने जो शादी थी उनमें से इतनी पूरी की गई।
छोड़े बन्दीलो सब, दीन्ही या सजाय ।
सोने को जजोर घर बहुदिलिद जमाया। यही पुष्पक नाम विमानयाज है,
मन जाने, बस में रहै, रुन गति सब काल :
रहै मनोरथ के सरिस यहि विमान की बात राम-वाह, लंकेश्वर वाह, बहुत अच्छा किया। सुत्रोत्र मित्र सुग्रीव अब क्या करना है। सुग्रीव-फूला गर्न, गत्तम काहु, बन घरे अपारा
कालम जगहृदय पड़त, प्रभु, ताहि उखा मिटो शनिअपमान, बदन आगे जो दोहा।
देड विभोपन राज ताहि घूरन प्रभु कीन्हा । अब तो यही काम है कि हनुमानजी का भरतजी के पास दीजिये : जब हनुमान जी द्रोणपर्वत लेने गये तो उन्होने हाल सुना होगा। सावह बहुत घबड़ा रहे होंगे और आप कर विमानराज की शोभा बढाइये।
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पाबीन नाटक मणिमाला
हुन प्रया।
(सबदिमान पर बैठते है । लीला--- नालापहम लोग अब नहीं लेंगे। सल्यानमाली, रघुकुल की राजधानी अयोध्या को। लीना-तो क्या बनमाल के दिन पूरे हो गये। मुलगा--आज ही एक दिन और है।
बिमान चलता है सब बाहर जाते है।
दूपर स्थान-शाकाश विमान पर बैठे हुए रस लीता लत नावादि पाते हैं।
लोना. नरज आर्यपुत्र यह कौन सा देश दक्खिन की ओर बहुर दूर तक फैला हुआ है और नोला सा देख
भाम-हानी बह पृथ्वो का देश नहीं है परन्तु,
पाहिली ही वृषकेतु को मूरति परम लखात !
यह सागर, महिमा अगम जासुन जानी जात सीता-वही जो हम बुढ़ियों से सुनते आये हैं कि हमारे लसुरों ने बनाया था। इसके बीच में यह सा देख पड़ता है जो नई घास पर उजाली चादर साबिधा हुआ है।
लक्ष्मण-भाभी, জান স্বাস্থ ক ম ব ল সুন্নি লু ক্লাহ ম হ রাখ। यह रच्या लेनु बिलाल दानरबोर पाथर लाय कै। यहि मानि हैं प्रादर सहित नित लोग सब संसार में । जयस लम प्रभुचरित कर लखि परत सिन्धु अपार में। राम---(उगली दिवा कर) या,
पहिचानौ यह भूमि कुन जह अमित निहारे। धन तमाल की कोह बीच सीतल अंधियारे ।। मलयाचल सन् गिरत इहां भिरने बहुतेरे । मर तडागन माहि नोर निर्मल तिन केरे।
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महाबीरचरितमापा
लक्ष्म---- हा बह खोहा इहाँ से दूर नहीं है। असे जर्जर होत दिला धुनि फोरदान कासली आई।
डेड जयारि कीरन सो अनघोर घटा धुमरो नम काई । भू धार लगो बरसै जाल कुज अंधेरे में राह ल पाई । पेड़द के रसगुन्ध से बालित खोह में बैठि के रैन बिताई ।।
मीता-मामहा पाप हाय मुभा प्रभागिनी के कारन हैन इतना दुल सहना पड़ा है। विमी-~-महाराज कावेरी के किनारे का देस देख पड़ता है।
अहिवेल के रस चुवत विकसत गवस धन्द कुश में सखि परत गिरि नः विविध धाम पुरान सोखनपुद्ध में। मानिसृष्टिके लायी, तहांसि तत्वज्ञान विचारहीं।
पदि वेद विधि अनुसार तप करि ब्राजाति निहारही । से थोड़ो दूर पर लोपामुद्रा समेत अगस्त्यजी विराजते हैं। राम-मा हम लोग अगस्त्यानम के आगे निकल पाये।
जिल लहजहि मह सकल सिंचकर बोर सुखाया। हरि बिब्याचलग स्वरोलगि बढ़त छुड़ावा । पाया जो वातापि पेट के प्रवल कसाना !
ऐसे मुनि के चरित करै जग कोन बखाना । हो नमस्कार अवश्य करना चाहिये। ये ऐसे महात्मा हैं कि घट का हाल जानने हैं और इनका प्रभाव अपार है।
सब हाथ जोड़ते हैं) काश में ) माइन सङ्ग पाली प्रजा जल निल रहै तुम्हार ।
तरहै नाम सुमिर तव जन भरमागरपार ॥ राम सुन कर ) का महामुनि को प्रणाम करने से आकाश . आशीर्वाद देतो है । ( सब सुनकर प्रसन्न होते हैं। विभीषण महारान यह देखिये यह सा पम्पासर के पास
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प्राचीन 24 अणिमाला के देश है जहा हम लोग बहुत दिन तक रह चुके है ना मो इसे देहरे को जी नई चाहता।
छेदः एकाह हलदेशिद यह आप वनों खिलोन कालियां तक शर के लगे। ॐके दुन्दुभि हाई करि बरनवहार
इहाँ गति को सोर हनुमतपाल निहार लीता--(भापही मार या मेरा दुपट्टा हनुमान जी के हाथ में मार्गपुत्र ने नही देखा था।
म सुध करके रानी यहीं जम हम लोग तुम्हारे हरे जाने पर व्याकुल फिर रहे थे तो अनसूया का दिया दुपट्टा पहिला चिन्ह मिला था,
दन मह मानहुँ कपूरपागा : এল সৰ্ছ জঙ্গি লা ? हगन हेतु अनुसार बन्दा । तेहि देखत में लहाँ अनन्दा
(लीताल जाती है। लक्ष्मणजी. सुधराज पितु के अड़ मोता।
इह लरि मये पंख भुतता ।
छाँड़ि वृद्धपन जर्जर गाता। ___ लयो बिमल जस तनयवदानास सीता--( श्रापही आप } हाय मेरे कारन ऐसे पसे लोगो की ऐसी दशा हो गई।
सुग्रीव महाराज हम लोग दंडक वन के आगे बढ़े पा रहे
पाये हदन काज नाक कान निज बहिन के }
बिनले सहित समाज वरदूशन निसिराहा , सीता- कौपती हुई ) अरे फिर भी राक्षस सुन्न पड़ते है। राम-रानी डरो मत भव वमका नाम ही रह गया है।
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নাম্বারোপ নিধল বিপ বিহা । .न्या सजन एक बार सिंहगरम जय जय देख के अरे विमानराज कैसे बन रहा है। विवरण-महाराज सा नाम पहाइ बहुन ऊँचा बाच ने गया है। इस के आगे प्राव है इस के पार बनने के लिये विमान भी मध्यम लोक से कुछ दूर जा रहा है ।
लहानबह जगह देखने की है जहां विष्णु के पैर पड़े थे :
सोल स्पा----2 राम- देख के, जिन्द के भानुशतन्याना:
प्रमट देवो तेजानिशन्दा
इतन्य लोई मूरनिया
चदत यान ने नि हमारे
{सव खिड़की से प्रणाम करते हैं। सीता-(ऊपर देख के अरे क्या दिन का भी सार देर पड़ते हैं।
राम-रानी तारे ही हैं। दिन का सूरज को बम से नहीं देख सक्त इतले ऊँचे चाहि आने से अध बह बात नहीं रही।
माता-(कौतुक से } अरे आकास तो बाम या ज्ञान है इस में मानों फूल खिले है।
राम-(चारों ओर देख के ) जगत का तो कुछ भार पार समझ में नहीं पाता।
दुरी वस निगरे नहीं महि लरिवाहि पहार
देखि परत आकास को बस्तुन प्रगट अभार : सुनीव-महाराज भाई के स्नेह से मैं खिड़ी ना हो गया थः तब इधर उधर भटकता यहा रहुँचा था।
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प्राचीन
नगिनाला के ईस अहः हम लोग हुन दिन तक रह चुके हैं तो भी इसे - छोड़ने को कहीं शाहता;
छन्द कहि काजल जिया ཀཱ'ཨེg ཙྪི རྣཚུ་ ཧུ ཨུ ཞུ ། ། फेंक दुन्दुभि हाइहाँ करि चरनमहा।
यहाँ रानि के भीर हनूमता निहाल स्वीता--( आपडी श्र! या मेरा दुपट्टा हनुमान जी के हाथ में सार्यपुत्र के यही देखा।
दाम-सुधारने रालो नहीं जब हम लोग तुम्हारे जाने पर या फिर रहे थे तो अनसूया का दिया दुपट्टा पहिला दिन मिला था.
तन मह मानहुँ कपूरपागा । मन महें अमियवृष्टि लम मा दृमन हेत जनु लारद चन्दा तेहि देखत में लछौ अनन्दा ।
(लीता लजाती है। लक्षारण-जो, मृधराज पितु के बड़ मोता।
इह लरि भये पंख भुजीता। घोधि वृद्धपन अर्जर गाता।
लहरे विमल अस निघदाता सीता--( प्रापही आप) हाय मेरे कारन ऐस ऐसे लोगों की ऐसी दशा हो गई।
सुनीत----महाराज हम लोग दंडक बन के आगे बढ़े पा रहे
प्राये दन काज नाक कान निज बहिन के ।
बिनले सहित समाज दूधन त्रिलिरा इह ।। सीता--{ कोपती हुई ) अरे फिर भी राक्षस सुन पडते है। राम-रानी डरी मत अव उनका नाम ही रह गया है
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महाबीरचरितभाषा
लछिमनधनुटंकार प्रलय सरिस निशिचरन कर । हन्या सबन एक बार सिंहगरज गजयूथ ज्यौं ॥ ( देख के ) अरे विमानराज कैसे चल रहा है।
विभीषण- महाराज सह्य नाम पहाड़ बहुत ऊँचा बीच में गया है । इसके आगे आर्यावर्त है इस के पार चलने के लिये बिमान भी मध्यम लोक से कुछ दूर जा रहा है।
लक्ष्मण—वह जगह देखने की है जहां विष्णु के पैर पड़े थे | ( विमान ऊपर जाता है )
[ तीसरा स्थान -- आकाश ]
राम
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( देख के ) जिन के भानुवंश लन्ताना | प्रगट देव सों तेजनिधाना || वेदतत्व सोइ मूरतिधारे । चढ़त यान से निकट हमारे || ( सब खिड़की से प्रणाम करते हैं )
सीता - ( ऊपर देख के ) अरे क्या दिन को भी तारे देख पड़ते हैं ।
राम-रानी तारे ही हैं। दिन का सूरज की चमक से नहीं देख सक्ते इतने ऊँचे चढ़ि आने से अब वह वात नहीं रही।
सीता - ( कौतुक से ) अरे आकास तो बाग सा जान पड़ता है इस में मानों फूल खिले हैं ।
राम - (चारों ओर देख के ) जगत का तो कुछ बार पार समझ में नहीं पाता ।
दूरी बस निगरे नहीं महि सरि खोहि पहार |
देखि परत आकास की वस्तुन प्रगट प्रकार ||
सुग्रीव - महाराज भाई के स्नेह से मैं लिड़ी ला हो गया था तब इधर उधर भटकता यहां पहुँचा था ।
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प्राचीन नाटक मणिमाला
ब्रस्तान ग्रह उदयगिरि यह दोऊ साह नखायें । रबि खसि जाकी याद में निति दिन कूद जायें ॥ महाराज इधर भी देखिये,
इंजन और कैलास गिरि सहित हुन परिमान । नाम से लसे वरती उन समान ॥
सुमेद पवत है जो सेाने का है । दूसरी ओर गन्धमादन है जो माकाल से बातें कर रहा है। इस के उस पार हम लोगों की पति नहीं है ।
६ब्य
राम - ( बारों ओर देखके अबरज से ) यह क्यों सारी पृथ्वी अकस्मात् देख पड़ने लगी है। और संसार को सब वस्तु स्पष्ट दिखाई देती हैं।
सोता अरे यह क्या है। इसे तो मैं ने कभी देखा ही नहीं यह तो न मनुष है न पशु ।
राम-रानो यह घोडमुहें किन्नरों का जोड़ा है इस देश में ऐसे ही जीव चलते हैं ।
विमषण - यह तो सामने हो या रहे हैं हो न हो कुबेर ने मेजा है।
[ किन्नरों का एक जोड़ा आता है )
किन्नर - महाराज दिनकरकुलचन्द्र रामचन्द्र, हम लोग धनेश जी की आज्ञा से आप की स्तुति करने अयोध्या को जा रहे हैं सो हमारे भाग्यों से आपका दर्शन बीच दो में हो गया । हमें लोगों की पराधीनता भी धन्य है ।
( दोनों प्रदक्षिणा करके प्रणाम करते हैं )
किन्नर - ज्ञानिहंग के हित कमलाकर । दीनवन्धु कुलकुदसुधाकर । जन्म प्रन्न सन जो घबराने । गुनें से मुजस तुम्हार सयाने
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লগুৰিণাম? शिनरीजब लाम रहै शेषसिर भरनी !
अन अकाल बीच ललि सरनी । ঘু ম ন প্রঙ্গলা।
गामनुष्ठि नित लारी। दोनों प्रख थोड़ी देर यल कर बड़े बदले हैं फिर ब्राहा जाने लक-बड़े अानन्द की बात है ! राम-विभोवह इस राह पर AAP WE नहीं है
विभीषण-~-महाराज देविये,
मंदाकिन्नोजल सैन्न धीवत सये बिमल कपूरसे। तन भोज की धषि का हिनमिरिलिमर नजियत हरसे : तम बटन मन कर ज्ञान लहि भवसिंधु ने नहि रन है: ते नहातेजानिधान मुनि के वृन्द इस तय करना है लम-दादा यह कैसा देस है जिसे देखते टकटकी वंध जाती है पाखें फेर लेने केजी नहीं चाहता।
राम--(देख के घबड़ाहट से या यह बह तपोभूमि है. जहाँ गुरु कौशिकजी दहते हैं यही यज्ञावल्यन के शिष्य वाटे विदेहराज के साथ गुरु ओ ने बैठ कर बातचीत की थी ।
सीता-आप ही आप छोटे बाबाजी की बात कर
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चारों ओर देखती है। राम-( लंकेश्वर, यह उचित नहीं है कि जिस भूमि वर गुन जी के चरण पड़े है वहां हम लोग विमान पर चढ़ कर !
परदे के पीछे सुनो सुनो राम नाम, मान के शिष्य तुम को प्रामा देते हैं:
रा और लन --( विमान को उंगली से हरने के बाद कर ) हम लदेव सावधान हैं।
.. फिर परदे के पीछे )
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प्राचान नाटक मशिमाला
चले जानो लिजमार दिलि रुको न डगर संहारि। अधतोपति ज्योति ऋषि इखत राह तुम्हारि भी लिपक्रिया करके दो घंटे में आते हैं। दोलाजो गुरू जी की आज्ञा (विमान फिर चलता है।
नाम-वाह महात्मा भी स्नेहवस होते है जिसको महिमा से नरस्या और वेद पाठ से जो थोड़ा भी अवकाश मिना तो अयोध्या ब्रायेंगे। और ठीक भी है ऐसे लोग तो तपोवन के हरिन और पड़ों घर करुणा करते हैं मनुष्यों की कौन बात है, विशेष करके
यो भानुकुल भूपधर केवल जन्म हमार।
अस्त्र शस्त्र सब के लहो इन सन ज्ञान अपार। विभीषण- देख के ) यह काा है जो घर ले दिसा एसो जा रही है जैसे पानी सा बरस रहा है।
(लब अचरज से देखते हैं) राम----( सोच के } हम समझते हैं कि हनुमान जी से हम लोगों के माने का हाल सुन कर लेना समेत भरत पा रहे हैं।
( हनुमान जी पाते हैं) हनुमान-(पांच घड़ के महाराज,
करत रहे बैंड भरत प्रभुचरितन के ध्यान । सुनि मे लन व प्राममन तुरतहिं कीन्ह पयान ।। स्टत राम वांधे जटा चीर घर निज अङ्ग।
हर्ष सहित प्रावत इनै प्रभु मंत्रिन के सङ्ग ।। राम-प्रसन्न हो कर ) बड़े प्रानन्द की बात है कि बहुत दिन पर आज भाई का हाल मिला।
नमण-बड़े चाव से ) हनुमान जी, भाई कहां हैं। हनुमान ---सेना के आगे जो पांच छः जने हैं उन्हीं में भरत
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सीता
देखफर ) मरे इनका रूप कैसा हो रहा है
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महावीरचरितमाया बिमो-अजी विमानराज महाराज भाइयों से मिलना चाहते हैं हर जाओ।
विमान उतरता है)
चौथा स्थान --- अयोध्या के बाहर सडक एक ओर से राम लक्ष्मण सीता सुग्रीव आदि और दूसरी और से भरन शत्रन आदि आते हैं।
शाम--- जल्दी ले पांव पड़ते हुए भरत के उठा कर , आओ 'या, लागत ब्रह्मानन्द सम प्रमट रूप यहिकाल । देरे तन को परल यह सीनल मनमृनाल
गले लगाते हैं। (लक्ष्मण पैरों पड़कर भरत से मिलते हैं।
(शत्रुघ्न राम लक्ष्मण को प्रणाम करते हैं । ___ राम, लक्ष्मण-(भरत और शत्रा से अपने कुल में जैसे ग हो गये हैं वैसेही तुम भी हो।
भरत और शत्रुन तोता को दंडवत करते हैं। सीता-मैया जेठे भाई के प्यारे हो ! ___ गम--भैया भरत शत्रुन,
इमर दुखके सिंधु में आये पोत समान ! यह कपोम लंकेल यह धर्मिक मित्र सुजान { सुमीत्र और बिनोश्रा को दिखाते हैं )
। भरत और शान दोनों से मिलते हैं। भरत-माई हम लोगों के कुल गुरू महात्मा बनिनो अभि काप्रबंध करके आपकी राह देख रहे हैं आपकी आज्ञा है
राम---(भापही आप ) महात्मा कौशिक का सी आलर खना चाहिये और वसिष्य जी यह कहते हैं । अच्छा समय प गत बना लेंगे। प्रकाश ) जो कुलगुरु की आज्ञा ।।
सष षाहर जाते है
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प्राचीन नायिका
स्थान अबाव्या राजमन्दिर (वलि अहमवतो कौशल्या सुमिना कियो बैठी हैं अग्निष्ट-- अापही प्राप
मालिन्धु गुमान के मानहु घरम निश्राद । मारतजन के दुपद का उपय से मूरतिमाम इन खिसईदेखि कपाराम श्रीराम
भये लो पर मन्द सन हम सम पूरनकाम !! • तो भी लोति करनी ई बाहिद ! { प्रकाश बहू कौशल्या
सुमित्रा:
कोशल्या और भिना काहेथे गुरुजी , वधि --हम लोगों की मार से लड़के लौटवाये। . . कोयत्या और नुमिनाप की भरसों से।
महन्धती-( कैशी को जाकर) तुम परें उदाल फैटी हो।
कैकयी माता मेरे अनाग ले सब लोग यह कह रहे हैं कि मनोमाने मन्थरा लेसनेसा कहला कर लड़कों को वनवास दिया तो अब मैं बच्चों की क्या मुँह दिखा।
अरुन्धती-बहू तुम सोच न करो। इसका भेद तुम्हारे गुरु: जो ने समाधि से जान लिया है।
सब-क्या ? क्या?
अरुन्धती-माल्यवान के कहने से शुर्पणखा में मन्थरा का रूप ঘ ঈ অ এ স্কি । ____ लव स्त्रियाँ-राक्षस भी बड़े ही पापी होते हैं देखो यहां तक की स्त्रियों को भी दुख देते हैं। | অলি-মজী মল্ল জ ম স জ ঞ্জ ক্ষী এ রুল हो। राक्षसों की पढ़ाई की बात का यह कोन अवसर है। ( राम लक्ष्मण भरत शत्रन सीता विभीषण भारि माते है)
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महार्थ रयरिमाणा
राम---१ बलिष्ठ को देखकर हर्ष से वहीं मि ' विनि ।
जाके पावन दरतें
करते हैं ।
{ में ) भैया
राम और समय- गुरुजी राम लक्ष्य तुम को
मन के सरिल रामादि करें देखि
भाओ।
--
ज्ञान के नयन तय निज निज अवसर पाय राजनीति श्रधर्मरत रहो दूह
|
को प्रणाम करते है |
[ राम और लक्ष्मण अरुन्धती - तुम्हारो मनोकामना पूरी हो ।
[ राम और aer कम से सब माताओं को महान करते हैं । सब माता --- लड़कों को गले लगाके । जियो बे
( सीता आगे बढ़कर वसिष्ठ को प्रणाम करती है) afe-बेटी तुम चोरों की माता हो
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( सोता तो को प्रणाम करती है |
S
अदन्ती--( सीना को गले लगाकर ) बेहो मुद्रा मनसूया और हम यह तीन ही प्रति संसार में कह जातो व तुम्हारे होने से चार हो गई।
( सीता सासों के पैर छूती है । सब-- वह तुम्हारे सपूत लड़का हो
( परदे के पीछे )
उत्सव घर घर ना करें सब प्रजासमाजा ! Hear अधिकारि करें लव तिज निक काना | fe अभिषेक निमित्त विधान सकल करि राखै । मुनि कृशाश्व के शिष्य कुशिकनदन यह भाषै ॥
बसिए - ( सुनकर ) भैया भी कैला साम्यमान हैं जिस कं सिंहासन पर बैठाने को विश्वामित्रनी आप भा रहे हैं।
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प्राचीन लिन
स्थान-अध्याः राज सिव असम्वती कौशल्या अनुमिका यी बैठी हैं : वस्लिापही त्रास
भाजन के तुम कर उदय रे भूमिधाम इन खिन लोई इंडियन कपाश्रीरा"
मये लो परम न हम लव पूरनामा " तो भी लोकरीति करजी ही वाहिए। प्रकाश बहु कौशल्या
कोरल्या और सुमिना....हिये गुरुजी बलिष्टम लोन की माले लड़के लौटाये। कौशल्या और सुमित्रराय की मौत है।
मान्यती कमी को देखकर बहू तुम यो उदाल बैंठो हो।
कैकयी-माता मेरे भाग से लब लोग यह कह रहे है कि बालो माने सन्धरलेलनेला कला का लड़कों को बनवास दिया तो अब मैं बड़ों के का मुंह दिखा। ___ अरुन्धती-ब तुम सब करी । इसका भेद तुम्हारे गुरु । जो ने समाधि से जान लिया है।
सब-यया: क्या
असन्थनी-माल्यवान के कहने से अपगला ने मन्थरा का रूप घर के यह सब किया। __ सब निया-राक्षस भी बड़े ही पापी होते हैं तो यहां तक की स्त्रियों को भी दुख देते हैं।
असिह-अजी मंगल के समय अभ' का दुख की बात करतो हो। राक्षसों की चढ़ाई की बात का यह कौन अवसर है। (राम लक्ष्मण भरत शत्रुध सरता विभीषण मादि पाते हैं)
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মানি, -- মল্লিকা উজ্জ্বল ঈম ? ? কান্না খালদুন্নী ,
া ই হল মা - ৪ লিৰি ।
গালমাল দাশ রুশান গাঙ বিজ্ঞ { ল শ ক ? ? ? ফাঙ্গা।
বল্প ক্ষী -- যা বলব? দু * গুন
~ি-র কি ই ল খ মিৰি গাৰ , | লাভ মী লী পুল সুখ ২ স্কৗহ ইলয় মন কা ধষন দান ।
স্পী -- শৰীক্ষাৰ গুৰী স্থা। { গাঁ। কম দ ন ল ম দ য় ল :
স্বল্প ব্লাশা~{ লুজ । নষ্ট নাই । লিঃ না । { বা মা এখন ব জ ম ভ = } জমি---ছা নুন স্বামী জ ন ; { স্বাৰঃ মা ই এখয়াম স্কুল ই}
ফখর-- স্কী? জামাই গঙ্গ} ই ঈ অঞ্জ হয়? মু লপুৰা মোৰ ই ই নীল নিননন, # সারা : সু ৪ান ও না হা
| { ল ভ জ ম না । -হু ব্রা খুন বা স্থা
{ কে জ ই } ভবে খ গ সা * স্বল্প সাল্লালা। বাথা ক্ষিনি ব লিঙ্গ লিল জালা ! ল্লি অংশ নিমি ছিল লক্ষল ক্ষতি না । মুনি ? ঈ fাগ্র শুলল গন্তু ঋষ্টি। অভিg~{ লজ} না । ঈহু মান নিশ ক্ষ নিহা= ২ বাই কা সিমল্লা ম্যত্ব মা ই ই।
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M
प्राचीन नाटक मणिमाला और ब-बहुत अच्छी बात हुई ।
विमिन शिष्यों के साथ आने हैं ) . s:: विकासन मिलोमन वाधी।
पुहि निकाह उपाय लेल या बिन नरो रह्यो । नाशिक्षि अतुल व अभिबेक की आई घरी
हि होन परम आनन्द अब तक खोज जो बिन्ता हरी ॥ प्रसिद-यह वही विश्वामित्रजी हैं।
शिवितेज बहातेज अधिशाय । लोभस के धाम हुन सबै हार ! । सिट और विश्वामित्र एक दूसरे से मिलते हैं)
-~महाल बागि अब किल का आसरा देश
बाल-कुछ नहीं, लोपरीति कोजिये। विमित्र अषियों से चलो रामचन्द्र का अभिषेक कर
सब बाहर जाते हैं। स्था - सध्या राजमन्दिर ; লাল জা ২ ছাত্ৰ গ্ৰ সখ্য শহর মসুন্ন
वरिष्ट विश्वामित्र आदि आते है) समलोग साल्याभिषेक की ति मांति करते हैं) . मपश्य दुन्दुभी बजती है और रंगभूमि से फूल बरसते हैं।
वशिष्ठ-अधा लोकपालों के साथ इन्द्रभी भया रामचन्द्र के अधिक से प्रसन्न हैं।
राम-( अभिरेक पाके वसिष्ठ और विश्वामित्र से प्रणाम करने है। अलिष्ट और विश्वा---
लिज भाइन के साथ, रामचन्द्र गुनधाम तुम। रही धनि के नाथ, जो पाली
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་་ ་ ས ཀླུ་བྷོ } দুশি গন্সয়া। মূলাল শীলা ৰনি। འདུ་༼ཆུ་སrལྕེ ལ* = { gr }}
Pented oy RAVZA
SH* at the V
Press llisand
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केदारनी के हाथ का लिखा हुआ
नारायण अयोध्या आण्ट
समानुष ध्वनि।
दरम्य
उमा पुपीकत इस लीग का कारण उन्होंने लिखा है जन्मभूमि कलापुर
है।
रामायणों में बा हो गया
"लेख लाता सीताराम वीट ने उसकी दो याचक बड़े विम से वार्ड और रामायण के प्रेमियों के लियन दिया है। उसके साथ दोवामी जी का जीवनजोश व चिक, उनके राजापुर और काशी में निवास स्थान डाक दिन. राजापुर की पीधी के पृष्ठों का फोटोग्राफ यात्रा का कशा अयोध्या और चित्रकूट के प्रसिद्ध स्थानों केकिको विज्ञायत से उपर आये हैं, लगे हैं सुन्दर कपड़े की जर तुम्हारे कक्षों के साथ है। इसमें दो हजार से ऊपर ब का है। और पेडी ही सो प्रतियां दागी गई है।
"
२६.४ है कि उसकी शिखी अकोल्याण्ड को योगी शुभ है। एक और बड़ा ॐ पाही इट अन्न के कारण
इस बार महसून )
मिलने का पता
रामनरायन लाल बुकसेल
कटरा---इलाहाबाद ।
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