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राजा - ( धनुष उठाकर अड़ी रह बाई ब
हृदय (मुलाखজীन । क्यों हो परीवारीक
मत्त सन जनधार समावः । सरि तजे मोटामा ?
है।
दोनों का बड़ा पुछा रामः-वाह वाह राजकुमार के कड़ा हाथ मारा है। गजल ---हाय वाटुका हम यह क्या हुआ. सोका ही मिल उताई।
यह अपमान मक्षुत्र सत पाई : वटी हाय रावन प्रभुताई । जिन सुबन्धुकर तास निहारा ।
दाय में अद्दु बस बगत हमारा |
विश्व-यहो तो श्रीगणेश हुआ है ।
राह--अजी हमारी बातका का उत्तर देते हो ? विश्व१२-- इस बात मैं
सीरध्वजहि प्रमान कुल
बोर्ड माय है।
कुलके पुरुपप्रधान कन्या के पिनु सूप ले !
राक्षस - मौर वह कहते है कुशन जा
विश्वा०-- ( आपही बाप | दिव्य देने का अवसर यही है। मुरतो मा है। प्रकाश ) भाई कुहने महात्मा कुशाश्वाजी की बड़ी सेवा की; तब उन्हों ने मेले दिव्य दिये जो मन्त्र से चलते है और जिनके मारने से सेना बेसुध हो जाती है । इस समय हम मैा रामचन्द्रजी को बोते हैं।
ars सहखन तप किया ब्राह्मादिक इन हेत । तय देखे ए मनु निज तप वेज समेत