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प्राचीन नारक मणियाला
দিন ই ল ঙ্গ গাজী ।
यदि धनु नग अन भयो तुम्हारा ( अनुश देता है)। राष-अनुव लेकर आप को जो आशा परशुल- भाटभर के ) अब लौट जा भैया ।
(बाहर जाता है) राम-आँखों में आंसू सर के महात्मा परशुराम · जो तो त्रले भये । हम भो किलो उपाय ले इंडक बल चले तो अच्छा ! मला हमारे माता पिता यह कैसे हो देंगे जो हमैं इतना मानन हैं।
भगुपति डालो अस्त्र और मैं औरल प्राधान। निशिधर निठुर सताइहैं तपसीजन अति दीन ।
परदे के पीछे ) भेजी भमिली माय की चेरि मन्थरा नाम ।
आई देखन को तुम्हें अवधपुरी ले राम । राम-माता पिता की प्रीति भो कैनी है। ऐसी ही रोति से लड़कों के विछुड़ने का दुख मिटाते हैं ! भैया लक्ष्मण ले आओ।
लक्ष्मण और मन्थरा के भेस में शूर्पणखा पाती है) शूर्प-आप ही आप ) मैं तो शूर्पणखा हूँ मन्थरा के शरीर मै धुली हूँ। समय ता अच्छा है, बलिष्ठ विश्वामित्र भी बले गये है। अरे यही तो परशुराम का जोतने वाला छत्री का लड़का रामचन्द्र है । ( देख के ) अरे इसको सुन्दरताई तो आँखों को रसायन सा सुख देती है मानो सारी सोमा इसी के शरीर में है। अरे इसे देख तो बचपन ही में रांड़ हो जाने से संसार का सुख सब छोड़ दिया और धीरज और मलमली से अपना जी एका कर लिया तो भी मेरा चित कैसा हो रहा है।
राम--(बिनय से } मन्थरा, अम्मा अच्छी हैं। शूप० भैया यदुत अच्छी है भैया तुम्हारी मंझली मा ने बच्चे