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________________ महावीरसरिताका बार मुम्है से गले लगा के म माना जादै हुन दिन हुये महाराज ने दो बर देने के है , लोवेटः नुन हमारी और में , बहनों । यह तुम्हारे पिता के गलचिट्टी है इस में लव निखा है" "बर एकले न मरत अधिराजपा सरावही" । आयी बड़े दादा के होने कोटेदार के नए राज मांगतो (HET -- ''वर दूसरे बन जाँहिक राम बारामही आप ही आप हाय मा दादा के: तू बन भेजना कों मांगती है। (प्रकाश)-"तह बास चौदह बरि लगि युनिवेष चोर घरे करें। सिम लखन ही सगजाय जन परिवार सवर परिहर । (माप ही आप ) हाय पापिनि चंडालिनि, सदा चारिह माय माय माय तोहि कहत हेर ! ते सब प्राज भुलाय कहा हाय पापिनि किया। राम-वाह कैसी कृपा हुई है। नहह जान अज्ञा मिली जलगि हिय धरान! झूटो नाहीं साथ हुमाई मा लंग जात । लक्ष्मण बड़ी बान कि दादा ने अपने साथ रखना भान लिया। राम---मन्थरा हम तैयार है। शूर्प-संसार भी पूजा के जोग है जहाँ ऐसे ऐसे कल्पवृक्ष होते हैं। (बाहर जाती है। लक्षा-सामा युधाजित भरत के सय माप पा रहे हैं। राम-तो चलो मिल अच्छी बात है, पर बुरी भी हैं । चलत भरत भेटे विला आगे परे न पाय । मेरे दुश्खलो सो दुखी केले देखो जाय । ( सव बाहर जाते हैं) •
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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