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________________ ना सुनीत्र ( अलग) अकस्मात हनि बजनिपाता। करी हाय जलदी सह बाता। अच पुनि शपथ दिवाबत साई। करौं का कछु नाहिं बसाई ।। बाली-भैया रामचन्द्र ----कहिये। नई दुध संग यद्यपि नहीं चाहत कोड संधान । त करि तहि मैं देवबस भयो उरिन दै प्रान तुम तनन तब देत अव उचित होय जो का बलत प्रान करिहैं। तक यथा शक्ति तेहि प्राज राम-लाज से सिर नीचा कर लेता है) सुनोच और विभोप-प्रमणा जी रामचन्द्र 'थे, उनके हाथ से हम लोगों को ऐसी विपत्ति सबरीमाल्यवान ने सब किया। दोनों के कान बालो-या सुग्रीव । सुप्रीध- आँखों में आंसू भर लेता है। वालो-- परे सुग्रीव भी नहीं बोलता । सुप्रीद--( करुणा से ) कहिये कहिये। बालो-कहो तो हम तुम्हारे कौन होते हैं? सुनीव----गुरु और स्वासो । बाली-और तुम? सुन्नीव-बेले और चाकर । बाली-तो हमारा तुम्हारा धर्म का हैं। अग्नीव-हम आप के बल रहै । बालो-सुप्रीव का हाथ पकड़ के ) हम त SA - Darel .
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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