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महावीर चरितमादा हान और सुनीव-- पूजनीय है आपको यात के कौन
बिनीवर
हवाइ रहाने की जगह पर थे
धर्म
याली-मेवा मित्र जुन ब्रह्मा के न जाइकान से धर्म सोचा था इल ने नैत्री का धर्म ना कहा था ! सुप्री-नजिक द्रोह , कीजिये शानदै उपकार !
हिय में राखियनित हितै. यही मित्रव्यवहार ! साली-नया रामचन्द्र तुम ने नो नो मर्यवंश के पुरोहित वसिव जी से यही सीखा है ।
राम-जी हां।
बाली-तो अब तुम सो मैंनोधर्म का निकाह एक दुसरे के साथ करना। हमारे कहने से अग्नि के लाखो करने की प्रतिज्ञा मग । मयज्ञ को अग्नि पास ही है। राम और सुन्नीच-(एक दूसरे का हाथ पकड़के)
सावी अहै मतंग के मल की अग्नि पुनीत ।
रोहिय तेरो भयो तेरो हिय मन मोत ।। बालो-भया रामचन्द्र या विभापर जो हैं जिन्हे नुम ने बना के सामने लंका का राज देने को कहा है।
श्रमणा और नम -बाद बाह कैसा पा लगाते रहते हैं। राम-जी हो। विनीषण-माप को बड़ो का है। (प्रणाम करता है।
सुग्रीव-हम तो देखते हैं। कि हम से किया के श्रमणा का रामचन्द्र जी के पास जाना भी मुफल हो गया।
राम- दयारे मित्र महाराज सुनान बिभीषण यह हमारे छोटे साई लक्ष्मण हैं।
दोनों मामो मैया ( दोनों मिलते हैं)
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