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________________ साबीन पावक प्रशियाला यि कुरामा करना रहे हैं। रामोशा भात. दिन सुलन बस अभिराम । मेरे लिये सोहि लेकिन शेति होति विसेषि ॥ कुपने किए जहाँ उशन महारा । तेहि शर मारि कुमारा । मी जर तु वीर कि पुलकित । सावन नहीं कहीं चांबी तित सखियाँ कुमारी जो देखो तो कुरजी कैसे तेजकारी हैं तुम की मदा हो सकती हो। सीता-" कालू कर के सांस लेती है । -महात्मा जी पेंट तो जिन के लिये आप आये हैं उनके विरुद्ध है। कवियों-कुर जी का विलय घोरता के साथ कैसा अच्छा बनता है. परशु आप ही आप ) अरे यह क्षत्रिय का लड़का कैसा सुजन है। अपने और पराये गुणों को कैसा लगता है और उन का कैसा भाइर करता है । विनय इतना बढ़ा हुआ है कि उस के आने अहंकार द्विप सा गया है। ܢ ना अचरज है यदपि न मोहिं लौकिक नर मानत | मेरे सुन खरित्र सब जानत ॥ न बोलत निघरक तजि मासा | यदपि बिनय मन करत प्रकासा || हे कौन यह बालक बोरा । कुन महिमालन रच्यो शोरा | त्रिभुवन प्रभव देव के काजा । यहि को देह लेखिय सब साजा ॥ नाम विनय बल धर्म समेता । प्रिय सात्विक युन तेत्र निकेता | ५
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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