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kinaru
प्राचीन नाटक मणिमात्रा
फुले काम लचिव श्रोत । नावत मदन मत बलमा खिले जना पूरा अति सुन्दर । सत समशिखर पर ।।
परदे के पीछे) नाना जी, लौट जाओ। हनिहीं तुम्हरे वन से जन विनदोर सुजान ! पूजनीय जो नित्रासोनिज गुरु म । सम-शबीजो बह कौन हैं : शबरी महाराज देखो। लेने की है पहिर तुरनाथ को दोही सरोज की माला पिंग शरीर पै वोह ल से बिसुरी धन ज्यों रविचनकाला। अपना बन सिकारि उध्यो जानु मेरु के शैल विशाला। राह दनाव थेग दो स्वर्ग में प्रात इन्द्र को पुत्र कराल
लभम दादा बहुत अच्छी बात है कि इन्द्र का लड़का युद्धदान देने वाला हम लोगों का भिन्न आ गया। राम- आप ही अघ) बड़ा वीर है।।
बाली माता है) बाली-सात सिन्धु में ठेलिकै लोक अलोक पहारहि नीर उछारी
बीते कल्पका भजि त्रिलोक पतालहि मूल समान उखारी। फैकि के सुरज चन्द औ खारन देहुँ हिलाइ के भूमि डारी। रुख लमान उपारों ब्रह्मण्ड त यहि काज विवाद है भारी॥ देखो रामचन्द्र से हमसे कोई वैर नहीं है; व्यर्थ किसी से जड़ाई के लिये घेरने से लोग बड़े अनुचित काम कर बैठते हैं। प्राज माल्यवान ने रावन के साथ मित्रता की सुध दिला के रामइन्द्र के मारने का मुझे उतारू कर दिया। कितना हट किया सबेरे से मुझे घेरे था भव . 1 पदुचा के लोग हा,
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