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प्राचीन नाटक मरिमाल"
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बेबिन ललकाले पानक पतित, घरे बोड़े, तू हम के भी चिल्लतः देता है।
अपने का आलम कहता है। माह के बाहरण का काम
काउच मातलीलबासन के युनिलियो।
यज्ञ करत नवनोद, हनन्द प्राइल सरि पर क्यों जयः लगाने वाले दुध चत्रियों पुरोहित, क्यों के प्रहित्या के पूत ही काम हैं । शतार नीच मल के कलंक जमा करें गुरु और माया अधिक सिल पाहि ।
तानन्द यदि अचान के बना कर माहि ।। इतना कहकर कडज लेनी हार लेता है । वसिष्म रे कई है साई. ननाओ, नाबारे । र यह तो पचे नेहीकी अनु को बाई कोको माले शतानन्द का ब्रह्मतेज
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शान्ता -- जल्दी से शाप के लिये यादी लेके देखें भापती
तुमहि धन चाहत यह पापी । तेहि हि करिक्रोध लापी। कसै वायु सँग नहुँ साना :
बल सहि छान समान परदे के पोछ। यह प्राकमा करते हैं, हम कीजिये। T4 की तपस्या का प्रवल तेज रेसे पर नहीं पड़ना चाहिये जो पप के घर आया है।
लगा बन्धु बाम्हन गुनी पाया है तब गेह । ताहि विनासल चहत तमकौन धर्म का एह: काड़े जो मर्याद निज लहे शास्त्र मह बोध ।
छत्री ताहि सुधारिहै, आप करिय जानि क्रोध वसिष्ट (शाप का पानी गिरा कर मैया शतानन्द देखो