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( स्व पकता है। सद-वाय यह होगा: इश्य बहार !
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राम और लकन-किता जे., जानी उदो। जनक-जाकर
. तिलक सूप की रानी : जल्द जिस गुनखानी ! राम की करें पुनि लोई।
लनुमि माहि अचरज बड़ लोई। T-पिता, सत्य निशा अाप जानिय नुम कई जा राम !
बिनय मानिये मानु कह कोनिय पूरलकाम दशहाय मैं का करू। जनक-हा भैया रामचन्द्र भया लक्ष्मण
कीन्द जो वृद्ध ककुत्स्य नप है पुत्रन का राज!
स्लो बनवास तुहि मिल्यो बालपनहि मह आज टो जानकी दूधन्य है जो बड़ेही के कहने लेनुझे पति के साथ हना है।
देश - हाय बहू तुझे कान पहिनाये हुये हम लोग राशनों को भेंट कर रहे हैं।
दोनों बेजुध होकर गिर पड़ते है ) राम-पिता तो दुश्व में पड़े अब क्या होगा!
लक्ष्मण-दादा करुणा और मोह तो इतना बढ़ गया: अब क्या करें, भरत की माने काला भेजा है कि बेर न लगाना , को अब आप भी माह में न पड़ कर घबड़ाइए।
राम-वाह भैया, बाह, धर्म में पका ऐले हो रहना चाहिये। तुम्हारा मन संसार के लोगों का सा नहीं है बो जाबो भेया जानकी को ले प्रामो।
( लक्ष्मण बाहर जाते हैं) .
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