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प्राचीन नाटक मणिमाला भरल-मामा जी तुन्हारे घर की यही रीति है। सुधाजे -लैया मेरै तो कुछ समझ में नहीं पाता। परत इत्युमुख नाथ पुत्र द्वै वन कह जाहीं। धात बहू सह दिलमान सरून माहीं 12 होत लोक विन सरन मजल मह भारत पिताकुल ! मेरी वहित के यार करे सार जगन्याकुल !
नारा लीता लमेज लाते हैं) लक्षा-दादा भाभी आई।
राम---अक्षा इधर प्राओ । लन्ना और सीता समेत बाप और ससुर को पैकरमा करते हैं ) मामा जो
सुत समेह घबराय है सबै माय दोऊ तात।
धीरज लिन हि दिवाइये हम लव बन कहें जात ॥ { भरत ले )-नैया पिता को जगात्री।
(सीत बदमरा बराम बाहर जाते हैं) सुधाजित--(धरड़ा कर ) हाय बड़कों को बन में छोड़ दूं।
भरत-(पीछे चलकर) मामा हाय मैं क्या करू। पीछे । दौड़ता है।
(दोनों बाहर जाते हैं) ( चौधा स्थान - एक वन ) ( राम लीना लक्षण और खुधाजित आते हैं) युधानिक-भेरा रामचन्द्र पहरो देखो तुम्हारे पीछे भरत झोडा ओ रहा है।
(भरत आते हैं) राम-यह क्या आ रहे हैं। इन्हीं की तो प्रजा पालने का काम माता पिता ने सौंपा है।