SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मर बार भरततो यह काम बन्न नामका या प्र कार से रान-इसमें मिली कोर के काम है : भरत-हमारी दोघही रहि है। राम-कारे मने जीतेनुघा वाई और मावान की मात्रा भारत- अमागेको कोई देते हैं। नुध होकर गिर पड़ता है। युवा या धीरज धरी जापा। करत... सांस लेकर मामा जी मुझे लगा। युधाक्ष-या वह कहो। (भरत के कान में कहता है । नया रामचन्द्र यह कहते हैं कि शरन जीने को सजा की जडी तुम्हारे लिये भेजी थी उले दे दीजिये। राम-( उतार कर लो भया ! भरत सिर पर रख कर दादा---- रम-गले लगाकर भैया तुम्है हमारी सौह है लौर जाओ पिता का जगात्रो ! भरत-मैं अव, सिंहासन धरि पादुका नंदिनान कनि वास। पहिरि चोर महि पालिहों प्रभु लौटन की प्रास (लीना और राम की पैकरमा करता है। लक्ष्मण-दादा भरत लाए प्रणाम करता है। भरत--( गले लगा के आंसू गिराता है) राम-भैया जानो पिता को धीरज धरायो। भरत-हाय वह तो अभी तक नहीं जागे । (वाहर जाते हैं। सुधा--मया रामचन्द्र, , धावत है इन सड़ सकल घरकाज बिसारी । उठे तक रोइ विशाल समदुर नर नारी॥ औरै कटुभा नगर थार सम दूग जान बरसत ! मई कोच मगमाधि वृष्टि के दिन सम दरसत :
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy