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प्राचान नाटक मणिमाला रममामा जो लोट जाओ, भरत तुम्ही को लौंपते हैं। युधा-भेया मुझे भी अपने पीछे चलने देर
-~यह आर या कहते हैं आप बड़े हैं कि हमारे पीछे बलने वाले है। मा की माझा है कि तीन ही जने लग जाय।
युधा-हाय कला में अकेला जा रहा हूँ देखो लड़के बूढ़े सब
होम धेनु । निकिते आगे निज कीन्हे । गृहनी छे चलत आगि तिज कर मह लीन्हे । सख के रात्र बटारि कंध पर बाधि उठाये।
वाजय के यज्ञ लहे कर कत्र लगाये।। बम विवउ बयाकुल लाल धन के सँग विहीं । लग्नि घास परट व देह पर निज निज बढ़ावहीं ॥
राम-मामाजी अाए लोगों को चाहिये शिलडको के अधर्म से बचाइये आप हम पर कृपा करके लौट जाइये और इन सब को
पैरों पर पड़ता है) युधाo-मैया उठी उठो । मैं जाता हूँ प्रजा को भी धोखा हूँ।
एविदेहलन्दिनि लती, एसट लखन कुमार । विदा हात पायी, रहे नित ल्यान तुम्हार ।
(रोते हुये लौट के ) अरे युग युग यह पावन चरित गायन नित उठि भार । तरें नारि नर जात के शुटि पाय सन घार ।
(सब बाहर जाते हैं, ( पांच स्थान---जनकपुर महाराज दशज्य का इरा)
{जनक और दशरथ बेहोश पड़े हैं) जनक- जाग कर चारों ओर देख के ) हाय लुर गये