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________________ महाबीरचरितमाया दशरथ-( जाग कर ) भैया रामचन्द्र न जात्रो, कठिन पीर व्यापै तन नाही! चलें प्रान कछु सूझत नाहीं॥ उतर देहु मोसह सनुकाबहु । निज मुख चन्द्र मोहि दिखराबहु ॥ ( पागल की नाई ) हाय मैं अभागी कहाँ जाऊँ। (व्याकुल दशरथ को जनक और भरत उठा ले जाते हैं) छठा स्थान बना ( राम लक्ष्मण जानको समेत आते हैं ) लक्ष्मण-दादा श्रृंगवेरपुर के राजा निरादपति ने प्रारले बिराध राक्षस के उस देस में रहने की बात कही थी। राम-चलो बिराध को मारने के लिये प्रयाग के निकट मंदाकिनो के किनारे चित्रकूट पहाड़ पर चलें । उस्ल तीरथ पर बहुत से मुनि रहते हैं। वहां राक्षसों को मार दंडक में हो जनस्थान जायंगे जहाँ गृध्रराज रहते हैं। (सब वाहर जाते हैं। पाँचवें अंक का विष्कम्भक स्थान –पञ्चवटी (सम्पाति प्राता है) संपाति-हो न हो आज भैया जटायु हम से मिलने को मलयागिरि के खोह के घर में आता है। उसो से खोलैं दिलान समेटत बार पलारि अकास छिपावत हैं। मेघन सों बरसावत नोर छुटी बिजुरीहि हिलावत हैं। टूटत शैल प्रहार चहूँ दिलि पाथरखंड उड़ावत हैं। श्येनी के पुत्र जटायु को पागम होलत पङ्कजनावत हैं ।।
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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