SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * aur prapeuti takka - ht . . महामोरचरिलभा करा करते थे। अब यहां की रहना कदिन है , कहो M human ars माल्पाकी इतना क्यों डरती हैं देख तो, हैले आस्य निकट. अपर ताकै बालीमा है। खाई है हिंधु छुवै नस जाहुरंग, औ धात दिवार घिरी है। (साच के इस कासी कौन काम है बीस भुजा जिन भत्तरियून संहारन को अनु लौंह करी है । रामललाथ भी आई आँख का फड़कना मानके, दुःस्वसे) हाय है सुख अनि ऐसी इला बिगरी है। बेटी, मेधा कुम्मनाकी नींद टूटने में कितने दिन और हैं। त्रिजटा-छोटे चाना जी, अब की अधेरी चौदस के बाद महीने पूरी हो जाये। माल्यारक्या अभी उस के जागने दिन बहुत हैं। सोच के बड़े भानन्द की बात यह है कि छोटा लडेका आप सोचता हैं। उस का वेखमझ का काम भी अच्छा फल देगा। कुछ भी हो उसी से कुल को प्रतिष्ठा रहेगा यही मैं भी समझता त्रिजटा---(घबड़ा के ) दई इई भगवान कुशल कर यह मायने क्या कह डाला। माल्या क्या कहा? त्रिजटा-आप तो अपनी नोदि की दात कह रहे थे उस में সুল হই । না লিঙ্গ বাস্তু। माल्या-हम ने समझ के कहा। बात तो यही होगी। সহ বন্দর স্থান ভ্রহ্মাৰ নি । कह शुकुलमन्म, कहँ नारिहरनकर पाप !! निज इच्छा दिननाथ ज्यों विचरत सदा अकास। अस्ताचल जो ना चले घटेन दिवसउजास भय तो निरी बुद्धि से जो कुछ हो सकता है सेा होगा। मर
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy