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rain नाटक मणिमाला
( घबड़ाई हुई त्रिजटा आती है ! विजरा-कोटे नाना जी, बचाच्चो बच्चायो । ( छाती पीट कर गिर पड़ती है ) मा०म्ररी क्यों घबड़ा रही है क्या बिपत पड़ी ।
त्रिजटा - ( उठ के } नाना जी का कहूँ | हाय, मेरे माग फूट गये। हाय, एक वानर नगर भर जलाके राक्षसों को तोरकी नाई खींच खीच फेंकता रहा और जब कुमार अक्ष ने उसे घेर कर बांधना चाहा तो उसे मार कर निकल गया ।
सात्य०- ( दुख से ) अरे क्या नगर जल गया और अक्षकुमार मार डाला गया । यह बन्दर कौन है | ( सोच के । हाँ दूत ने उस का नाम हनुमान बताया था | हा
कई सम लंका पुरी असम किया हनुमान | के लंकापति का प्रबल तेज प्रताप बुझान ॥ बेटी, वह सीता से मिला था ?
त्रिजटा—छोटे नाना जी, कुछ बेर पहिले एक नन्हा सा बन्दर उस से कुछ बात कर रहा था, उस ने भी अपने सिर स्टे चूड़ासनि उतार के पहिचान के लिये दिया, मैं इतना जानती हूँ ।
माल्य० - तो और क्या चाहिये। ( डर के ) इस नन्हें बन्दर ने तो इतना किया। ऐसे करोड़ो बन्दर सुग्रीव के राज में हैं । त्रिजटा - ( सोच के ) अरे, ऐसी सुकुमार, ऐली सुन्दर, ऐसी मीठी बोलनेवाली मानुस सीता हम राक्षसों को भो राक्षसी हो गई। माल्य० - बेटी सब कुछ हो सक्ता हैं,
रहत शान्त जारत तॐ पतिव्रत तेज प्रताप । { सोच के ) और वह भी बेचारी क्या करें,
अपने पापन को उदय भसम करत है माप ॥ त्रिजटा - छोटे नाना जी, पहिले तो हम लोग सब राक्षल और सारे जम्बूदीप में
दंडकवन के पास पहाड़ों में रहते थे
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