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महावीरचरितारः छठे अड़ का विशम्भक स्थान का ले मान्दान कर
{माल्यकाल दुखी लाबाना है। मानहाय : ससा के बाला की बुरी बाल बल की जाई फैल रही है। इसकी निगाहा ओर बढ़ती ही जाती है।
स्लीय के, मात्र बीज है जाऔ अंकुर सुनता को पयार दनको कोया तुहर के. पल्लव नीच मारीच कामयविधान शाल है जानकीको हरियो दिलरे तेहि में बार
दृषनके वध, माई के महान खने के बाद मिलाना , थोड़े ही दिनों में फल भी इसमें लगाने चाहता है। हम तो चूई हैं। हमें प्रापर भी देख पड़ता है। (सान लेकर हा. इम को
यदष्टि के बल किया संकटातिकार ।
भये पथ एक एक न्यों बालसको व्यापार ! (घबड़ाहर ले) मंत्रोका काम भी बड़े दुःखका है,
जाजे अंकुसहान ना करें मगह बस काम।
सोचिये तानु उपाय नित. भित्रि रहै जो बाम अरे इस पापी छत्री के छोकरे की लीना तो दस के पर होमी है। इतने बड़े शूर बोर बानरों के चक्रत्तों को प्रानो त्र विद्या तो सच क्या नहीं कर सका। सोख के क्रिष्किंधा से लौटे दूत ने यह भी कहा है कि सीताका दुने चारों ओर बड़े बडे बानर नेले गए हैं।
(परदे के पीछे) धूमि से लए चहुओर लले जनु सातहुँ लो बड़ी उबालः । जाति परै नहि बारन के कव धाय धरै हुनौल बिशाना : जालि के सालों ले कर काल मजे मरसे भट होय बेहाला सिन्धु तरंग समान घडू विसि वकाह लीलत पनि
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