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प्राचीन नाटक मणिमाला
हम का नाम क्या लें । बेटी इल समय महाराज बुशटक्या कर रहे हैं ?
त्रिजटा – छोटे नाना जी महाराज सर्वतोभद्र अटारी पर बैठे. वही राक्षसवंस की बात जिस में रहती हैं उसी वाटिका का देख रहे हैं। मैं जब धरती थी तो यह लुक कि मह/रानी जो नगर की यह दसा सुन के उदास होकर महाराज की समयने नहीं जा रही हैं।
माल्यः -- श्री है तो क्या इतना ही बहुत है कि मन्दोदरीराज के समाने के लिये घबड़ा रही हैं। महाराज को न देखो जो समझाने पर भी नहीं सकते । श्रानो, फिर भीतर चल कर सेवें कि दून कैसे भेजना चाहिये । ( दोनों बाहर जाते हैं ) इति
छठा अङ्ग
[ स्थान - लंका राजमन्दिर में सर्वतोभद्र महल ]
( राव सोना हुआ बैठा है ) रावण - कहा चन्द्र सोतामुख देखे !
जगन सौंह पंकज केहि लेखे ॥ कहां कामधेनु लखि भंग चंचन । कहाँ श्यामघन लखि शुचि कुम् ॥ कहिय ताहि श्रिय के सम कैसे । ताके अँग अनूपम ऐसे ।।
( सोचकर प्रसन्न होकर ) अजी धरती पर हल चलाने से यह वीरत नहीं निकला बग्नू बहुत दिनों पर मेरा मनोरथ पूरा हुआ । ( सोनकर ) ब्रह्मा जब अनुकूल होता है तो ऐसा ही करता ई (गर्ष से ) मी ब्रह्मा ही का है