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महावीर चरितमानस
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" जोन में हरांड के पास के धृषि मिलाओं : चैट रबैं जो प्राच लोकशिनिक घार यहाओं: ने मनाए जान इन काजमातु सखी नई राह चलानी। बत जोग दशा के स इन्पै महा अर्थह के दिग्याओं
वाली सोन नदी आती है। वाली घरझारांनी जी, इधर बांदी के सीढ़ियों का दुआर यह है।
मन्दो-चढ़कर या महाराज यहाँ ई हैं। देश के क्या असे.कवाटिका की ओर देख रहे है। (दुर जन्ना कर बैरी सिर पर चढ़ाया अब भी राज काज की सुध महाराज का नहीं है : { भागे बढ़कर }-महारज की जय हो ।
राबा- कार छिपाकर ) क्या महारानी गई? पास बैठाता है। अन्दो०- बैंकर महाराज, बाप ने क्या विचारा है।
रावण-कौन सी बात? मन्दो महाराज, बैरी बढ़ पाया है।
रावण-- अहारज जनाकार केला बैरी और कैसी बढ़ाई महारानी ने सुनी है: दशन दुगुन दिवान के हाथिन के धरि हाथन सो उहाई ।
ध्यों दियापति देवन को बहुवारल चारि जान बढ़ाई । धाव सहे उर में न हटो सुर मालोजोबज ले मल बलाई । ताह के जोड़ को वीर भयो यह भूल की बात कहांले धौं आई। तो भी सुनताले । कहो तो कौन है।
मन्दोल-लारे बानरों की सेना समेत सुत्रीव को पाने किये दशरथ का मासा राम और उस का छोटा भाई ।
रावण-अरे लपी और उसका भाई वह भला कर सकता है। मन्द महाराज सब मिलकर तो कर सकते हैं। और यह
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