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________________ प्रासीन माटफ मणिमाला भी सुना है कि समुद्र के तट पर सेना ठहता के राम ने पुकारा और समुद्र अपने घर से निकला लब, जाने कहा हथियार अपूरक से तपती जलमोतर मारा। शाके प्रभाव उध्यो माथि अम्बुधि लोडू समान भजन सारा ज्याकुल है कटुए उबरे घबराय बले भर से परिवार ! बेसुध होई गिर जलमानुस फूटे हैं सूती मौ संख अपार रावण-मुँह नाकर तब फिर मन्दो-महाराज तत्र को समुद्रदेवला बाद से सरीर बिधे हुट जिलकी सी भर देख पड़ती थी श्राप ही निकले और पैरों पर पड़ हाथ जोड़ राह बात दो ! और सुना उस साहसी राम ने और भी कुछ किया है। रावण-हो ही सुनें कही तो महारानी। मन्दो-हजारों बन्दरों से पहाड़ मंगवा के लेनु बाना। रावण-महारानी तुके किसी ने बनाया है। समुद्र को गहि. राई किसी के मान की नहीं है। जेते जम्बूद्वीप में मौरी कहूँ पहार ! तिल स्लन एका कोन में अन सिन्धु अपार ! और जो तुम ने सहासी कहा तो मेरा साहल भूल गई। निज हाथन निज सील उतारी। धोये चरन रुधिर नव द्वारी सुखगजलयुत मुख मुसकाना ! तेहि अवसर खंडोपति जाना। मन्दी-महाराज और भी सुनिये एक बानर के हाथ का ऐसा प्रभाव है कि उस के आने से जल में पत्थर उतराये ही रहते है। रावण-(सिर हिलाके) पत्थर मी इतराते हैं। खियों के इन भोलेपन की तो कोई दवाई नहीं है, महारानी क्या कहैं। चतुरानन जाने सलों में श्रुतिज्ञान अपार । मका सुरपति, जस जगत, धीरज धज हथ्यार ।
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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