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________________ না ছিল। कुल जाने कैलास पिरिसाइरल त्रिनुबननाय । चरन बड़ा ताम्मु जन्न काटि सोल निहाय परदे के पीछे बडादा होता है मल्दो ... महाराज बचाओं बचायो। डर द देखती है। रावण मुत पर के पीछे }-अरे हे नंका के फाटक पर के रामक बन्द करील कारक बेग लगाय के अगलहू अति भारी ! भात पै अस्त्र और शनचढ़ाय करोलबहन को रबारी भोजन वत्त माय बरो निस घर सो नहि बालक नारी! माय गये तपसीदोउ सेन लिये संगशनर भालु की लारी परदे के पीछे से मुह निकाल के प्रतीहारी आती है। प्रतीहारी-महराज प्रहस्त लेनापति कुछ बिनती किय चाहते हैं से बाहर खड़े हैं। रावण-कोन : प्रहस्त सेनापति, आने दो। प्रतीहारी-बहुत अच्छा बाहर जाती है (महस्त प्राता है) प्रहस्त--मनुष्य के छाकरे का चरित कैला उजागर है. देश गोपद सरिस मरिनाथ लक्ष्यों लसत लहर मकर पुनि निडर निज घर माहि ज्यों पुर लंक विति निज पग धारा अति विषम शैल सुवेल पर निज कटक सकल मायऊ । संग कछुक बानद वीर अब पुर लौह अंगन मायक।। (आगे देख के) अरे ! महाराज लंकेश्वर यह बैठे हैं। रावण-सेनापति यह हल्ला कैसा हमा: प्रहस्त- आपही आप ) या महाराज अ तक कुछ न जानते! अच्छा तो काम ही की बात कहैं। (प्रकाश) री चहुँ ओर से कीन्हे बन्द किवार । रक्षा चार? दास करत राछस भर अपार - A * METE
SR No.010404
Book TitleMahavira Charita Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Sitaram
PublisherNational Press Prayag
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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