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प्राचीन नाटक मणिमाला
प्रहसत--
आप ही आप
घर भी वही दशा है प्रक
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अनु सहित एक मी जर घेरी दुरी तुम्हार: मिन्द मोजन्न हूँ समस्त याकुल है नारि ।
भितीहारी आती है) प्रतीहारी-महाराज बन्दर कहता है कि हम राम के ___ और बाहर खड़ा है।
गा--(मुह बिगाड़ के बन्दर, अण्डा बिन्दर । प्रतीहाही.--जो बाला(बाहर जाऔर असंद के साथ मार हावा यह बैठे है जाओ।
– সত্ত স্থলাস্থি মজনুর ! रावणा--तुम सुग्रीव के सेवक हो । अंगद-जी नहीं। रावण--फिर किसके झो। अगद-लंकेश्वर सुनो हम जो हैं और जिस्व लिये आये हैं।।
धापी रासन के हित दयामि रघुराई।। मायों सिखवन ताहि नानु अनुशासन पाई। दै सीता परिधार पुन तिय सहित दशानल ।
परु लछिमन के पास नतर मरिहै प्रमुवानन। रावण-अन्दर बड़बड़ाय तो ठीक ही है। अंगद-अजी हम जो कुछ हो तुम दो टूक बात समझ लो रिहर लखन के पांय, के ताके सरमुखन पर । कहु जो ताहि सुहाय, बदे माजतव सोस यह ॥ रावण-क्रोध से ) अरे है कोई इस बकवादी बन्द पबिगाड़ दो।