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নামালো ।
महस्त-महाराज यह दूत है, इस पर शोधनको उचिन है रावा--इस का कप चियाइनाही नलियों का उत्सर है। अद- रो लाकर कद के! का एक तेरे सास निशित्रर बेगि एकरि भरि के । नरवारि से निजनन काटिकिरीटबन्धन तोर के। माहि जात किरिनिज का दिन पनि दिये इसह दिखानका। जाहेत परवाह माह में दृत कृपानिधान की।
बाहर जाता है। प्रहस्त-महाराज प्राहा पाने के लिये जो बहुत बड़ा रहा है। रावण-अजी क्या पूछते है?
सदै द्वारकापुरी के उधारों: अरे अर्गल बेगही नारिद्वारी बले राजलों की लोई लेन बाँकी । मनो लोक में शक्ति के धूम नाकी चहुँ ओर संग्राम भारी मवाओ। परे शव सेना भगाओ भगायो । घुमायो भुजा हाथ लै मत मारी । दलै शत्रु के पक्ष की भीर सारी ॥ वृथा बर्व के बानर दौरि डाटौ।
चढ़े कीस भालू अरे बेगि काटौ।। प्रहस्त--जो महाराज की आज्ञा वाहर जाता है।
(परदे के पीछे बड़ा इजा होता है) (सब बड़ा कर सुनते हैं)
(फिर परदे के पीछे) धार भयङ्कार रूप धरे कपि शत मारि गिरावत हैं। कादि कै, इन चारिहुँ ओर सो देदो सीमानों बनावत हैं ।। कॉडत सीस और हाथ गिनन ज्योंहो तो बाहर बावत है ? मरन को पुरद्वारी यामर शैल सलावत हैं।