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प्राचीन नाटक मणिराल.
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सातवें अङ्क का विकासक
। ती हुई लंदा आती है। का--(चलाके , हाय महायज दशकभर । तीन लेक की औरत के मतवाले नगर कहीं नये, हाय तुम्हारी भुना से मान रक्षसा पलते थे, हाय तुम्हारे इस ले तो महादेव के दोनों चरण पड़े थे जब तुम अपने हाथों अपने सिर उतार उतर कर पड़ाय ? हाय काली के सड़क के शिरोमणि
दमाई बनने बाहनेवाले हाय अब मैं तुम्हें कैसे देखें। कहा पा ॐ हा कुमार कुम्भकर्ण हाय भैया याद कहाँ हो । वालले भयो नहीं: { चारों ओर देख के हाथ कोई भी नहीं बोलता! ऊपर देख के) हाय कापी दे तुझे यही सरना था! और तेशही दौर दे अपने पायो ६ है। रोती है)
अलका मानी है) अनजा-अरे राक्षसों के राजा की कैसी दशा हो गई। इतने रामल थे उन में विभीषण ही बच्चा (सुनने का सामान बताकर श्रम के ) अरे क्या मेरी छोटी बहिन लंका अपने स्वामी के नये विरह में चिल्ला रही है। आगे चल के) बहिन धोरज धरो।
लंका देखके ) अरे का अलका बहिन हो।
अलका-बहिन धीरज घरी संसार में सब की रेसी ही गति होती है।
लंका-बहन धीरज कैसे धम अवतो शुभ में खिमा ही रह गई है नुनते हैं कि कुल में नाम की एक बिभीषण बचा है सो भी मेरै असाग से बैरी से मिला है। ___ अलका-अती बहिन ऐसा न कहीं बह हम लोगों का बैरी